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मूढता-मूलिक -चेता,-बुद्धि,-मति-वि० मूर्ख, नासमझ ।
मृर्तता, ठोसपन। -कला-स्त्री० मूर्ति गढ़नेकी कला । मूढता-स्त्री० [सं०] मूर्खता, नासमझी।।
-कार-पु० मूर्ति बनानेवाला। -प,-पूजक-पु० मूढात्मा(त्मन्)-पु० [सं०] मूर्ख भौचक ।
मूर्तिकी पूजा करनेवाला, पुजारी, बुतपरस्त । -पूजामूत-पु० मूत्र, पेशाब।
स्त्री० देवप्रतिमाका पूजन । -भंजक-पु० मूर्तियोंको मूतना-अ० क्रि० पेशाब करना ।
तोड़नेवाला, बुतशिकन । मूत्र-पु० [सं०] रक्तसे गुर्दोके द्वारा सवित पीतवर्ण द्रव जो | मूर्तिमान(मत्)-वि० [सं०] मूतिविशिष्ट, साकार । मूत्राशय (मसाना)में जमा रहता है और मूत्रमार्गसे | पु० शरीर । बाहर निकलता है, पेशाब। -कृच्छु-पु० शक्कर और
पु०सं०] मूर्धाका समासमें व्यवहृत रूप। कष्टके साथ पेशाब आनेका रोग । -ग्रंथि-स्त्री० मूत्राघात -खोल-पु० [हिं०] छतरी, छत्र । -ज-वि• सिरसे रोगका एक भेद ।-जठर-पु० मूत्राघातके कारण उत्पन्न उत्पन्न होनेवाला । पु० केश। -वेष्टन-पु० पगड़ी। विकार ।-दोष-पु० पेशाबमें कोई खराबी होना प्रमेह । (द)धन्य-वि० [सं०] मूर्धासे उत्पन्न; मूर्धासे उच्चरित; -निरोध,-रोध-पु० पेशाब रुक जानेकी बीमारी। श्रेष्ठ, शीर्षस्थानीय । -वर्ण-पु० देवनागरी वर्णमालाके -पथ-पु० मूत्रमार्ग, मूत्रनली । -परीक्षा- मूर्धासे उच्चरित वर्ण ('ऋ', 'ऋ', टवर्ग और 'ष')। स्त्री० पेशाबकी जाँच, मूत्रके दोषोंको मालूम करना। मूर्द्धा(ईन्), मूर्धा(धन)-स्त्री० [सं०] शिर । -ल-वि० अधिक पेशाब लानेवाली (दवा)। -वृद्धि- मू( )र्धाभिषिक्त-वि० [सं०] जिसके सिरपर अभिषेक स्त्री० मूत्रका प्रचुर परिमाणमें उत्पन्न होना।-शुक्र-पु० किया गया हो; श्रेष्ठ, सर्वमान्य (मत, नियम)। मूत्रके साथ वीर्य निकलनेका रोग। -शूल-पु. मूत्र मूद्धाभिषेक, मूर्धाभिषेक-पु० [सं०] राजाओंके राज्यानली में होनेवाला शूल (यूरिनरी कालिक)।
रोहणक समय सिरपर किया जानेवाला अभिषेक । मूत्राघात-पु० [सं०] पेशाब बंद हो जानेका रोग। मूल-पु० [सं०] जड़, कंद; आदि कारण; उत्पत्तिस्थान; मूत्राशय-पु० [सं०] पेडू में स्थित थैली जिसमें पेशाब आरंभ; ग्रंथकारकी मूल शब्दावली (टीका, व्याख्यासे इकट्ठा होता है, मसाना।
भिन्न); मूल धन; हाथ-पाँव आदिका आदि भाग (भुजमूल, मूत्रित-वि० [सं०] मूत्रके रूप में निकला हुआ; जो पेशाब पादमूल); वस्तुका निचला भाग, पादप्रदेश (पर्वतमूल); लग जानेके कारण गंदा हो गया हो।
चरण; २७ नक्षत्रोंमेंसे उन्नीसवाँ गुणित राशिका मूल; मूर-पु० उत्तर-पश्चिम अफ्रीकामें बसनेवाली एक मुसलमान निकुंज; सूरन । वि० आद्य, प्रधान । -कर्म(न)-पु० जाति; * मूल; मूल नक्षत्र; जड़ी; मूल धन ।
उच्चाटन, वशीकरण आदिका प्रयोग जी मंत्र और जड़ीमूरख-वि० दे० 'मूर्ख' । -ताई*-स्त्री० मूर्खता। बूटियोंकी जड़से किया जाय, टोना। -कार-पु० मूल मूरछना*-स्त्री० दे० 'मूर्च्छना' । अ० क्रि० मूच्छित ग्रंथकर्ता। -कारण-पु० आदि कारण, प्रधान हेतु । होना।
-ग्रंथ-पु० मूल ग्रंथकारकी रचना, असल किताब मूरछा*-स्त्री० दे० 'मू.'।
(जिसकी टीका, व्याख्या की गयी हो)। -च्छेद,मूरत-स्त्री० दे० 'मूर्ति'।
च्छेदन-जड़से उखाड़ देना, समूल नाश। -धन-पु० मूरति-स्त्री० दे० 'मूर्ति' । -वंत-वि० मूर्तिमान् । व्यापार आदिमें लगायी हुई पूँजी ।-धातु-स्त्री० मज्जा। मूरध-स्त्री० दे० 'मूर्धा' ।
-पदार्थ-पु. भौतिक जगत्का उपादानभूत अयोगिक मूरि, मूरी-स्त्री० मूल, जड़ी बूटी।
पदार्थ, तत्त्व । -पाठ-पु० (टेक्स्ट] किसी लेखक, विधामूरुख-वि० दे० 'मूर्ख' ।
यक या प्रस्तावकके वे मूल शब्द जिनका प्रयोग उसने मूर्ख-वि० [सं०] मूढ, नासमझ, अश। -पंडित-वि० स्वयं ही अपने लेख, विधेयक, प्रस्ताव आदि में किया हो। पढ़ा-लिखा मूर्ख ।-मंडल-पु०,-मंडली-स्त्री० मूलंकी -पुरुष-पु. वंशका आदि पुरुष । -प्रकृति-स्त्री० टोली, दल।
प्रपंचकी कारणरूप शक्तिः सत्त्व, रज, तमकी साम्यामूर्खता-स्त्री०, मूर्खत्व-पु० [सं०] मूढता, नासमझी। वस्था, प्रधान (सांख्य)। -भूत-वि० मूल, आधाररूप, मूर्खिनी*-स्त्री० मूर्खा, मूर्ख स्त्री।
जड़का काम देनेवाला, बुनियादी। -मंत्र-पु० कुंजी, मूर्छन-पु० [सं०] मूच्छित होना या करना; पारेका | मूल तत्त्व । -वित्त-पु० मूल धन । -व्याधि-स्त्री०
तीसरा संस्कार बेहोश करनेका मंत्र; दे० 'मृहना।। मुख्य रोग, असल मर्ज। -व्रती(तिन्)-पु० केवल मूच्र्छना-स्त्री० [सं०] मूर्छा; संगीतमें ग्रामका सातवाँ जड़ें-कंद, मूल खाकर रहनेवाला । -स्थान-पु० आदि भाग, सातों स्वरोका क्रमसे आरोहण-अवरोहण ।
स्थान, बाप-दादोंका वासस्थान; परमेश्वर; राजधानी मूच्र्छा-स्त्री० [सं०] बेहोशी, संशालोप, सम्मोह मूर्च्छन; मुलतान नगर । -स्रोत(स)-पु० झरने, नदी आदिवृद्धि; व्याप्ति । -रोग-पु० बेहोशीकी बीमारी, हिस्टी- का उद्गम-स्थान; मुख्य धारा। रिया रोग।
मूलक-वि० [सं०] (समासके अंतमें) मूलवाला मूलसे उत्पन्न मूञ्छित-वि० [सं०] मूर्छायुक्त, बेहोश संस्कार किया (पापमूलक, भ्रांतिमूलक)मूल नक्षत्रमें उत्पन्न । पु० मूली । हुआ (सोना, लोहा आदि धातु)।
मूलतः(तस्)-अ० [सं०] मूल रूपमें; आदिमें, प्रथमतः । मूर्त-वि० [सं०] मूतियुक्त, साकार ठोस, कठिन । मूलिक-वि० [सं०] मूलगत; मौलिक; प्रधान, मुख्य; जो मर्ति-स्त्री० [सं०] शरीर स्वरूप या शकल, प्रतिमा अभी प्रथम बार हुआ हो।
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