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मचाना।
घोडिया-चंडा लकड़ी आदिका टोड़ा । -गाड़ी-स्त्री० वह गाड़ी जिसमें घोल-पु० [सं०] बिना पानी डाले मथा हुआ दही; लस्सी घोड़ा या घोड़े जोते जायें। -नस-स्त्री० एड़ीसे महा; घोलकर बनायी हुई चीज, द्रावण (सोल्यूशन)। ऊपरकी ओर जानेवाली मोटी नस। -बाँस-पु० एक घोलक-पु० (सालवेंट) जो घुला दे, घुला देनेवाला; वह तरहका बाँस । मु०-उड़ाना-घोड़ेको सरपट दौड़ाना। द्रव-पदार्थ (पानी, मथसार आदि) जिसमें डालनेसे कोई -कसना-घोड़ेपर जीन या चारजामा कसना । स्थूल (या द्रव पदार्थ बिलकुल घुल-मिल जाय । -डालना-फैकना-घोड़ेको किसी दिशामें तेजीसे घोलना-स० क्रि० किसी चीजको पानी आदिमें इस तरह दौड़ाना। -फेरना-घोड़ेको सधाना, सवारी या गाड़ीके | मिलाना कि वह उसमें घुल जाय । लायक बनाना। -बेचकर सोना-बेफिक्र होकर सोना, घोप-पु० [सं०] ध्वनि घोषणा; अफवाह बादलकी गरज खुर्राटे भरना। -पर चढ़ भाना-लौटनेकी जल्दी अहीरोंका गाँव, बस्ती; चरवाहा, ग्वाला; मच्छड़ा नारा
वर्गों के उच्चारणके बाह्य प्रयत्नोंमेंसे एक; तट तालका एक घोडिया-स्त्री० छोटा घोड़ा, कपड़े टाँगनेकी खूटी। । भेद; बंगाली कायस्थोंकी एक उपाधि; शिव; * गोशाला । घोड़ी-स्त्री० घोड़ेकी मादा; पाटा; ब्याहमें दुल्हेका घोड़ी-घोषक-पु० [सं०] घोषणा, मुनादी करनेवाला । पर चढ़कर दुलहिनके घर जाना; ब्याह में वरपक्षकी ओर- घोषण-पु०, घोषणा-स्त्री० [सं०] जोरसे बोलकर जताना, से गाये जानेवाले गीत; जुलाहोंका एक औजार; धोबियों मुनादी या एलान करना; ध्वनि । की अलगनी; पानीके घड़े रखनेके लिए खंभोंके सहारे घोषवती-स्त्री० [सं०] वीणा। लगायी हुई पटरी।
घोसना-स्त्री० दे० 'घोषणा' । स० कि० घोषित करना । घोर-वि० [सं०] डरावना, भयानक धन, निबिड़; गाढ़ा, घोसी-पु० अहीर मुसलमान अहीर । गहरा; कठिन, कठोर; भारी; बुरा । * स्त्री० ध्वनि, शब्दः | धौर, घीरा-पु० दे० 'घौद'। पु० मट्ठा; जोर ।
घौद-पु० फलोंका गुच्छा। घोरना-स० क्रि० घोलना । अ० क्रि० गर्जन करना। घौर, धौरा-पु०, घौरी-स्त्री० दे० 'धौद'-'काहु गही घोरा-पु० घोड़ा खूटा टोड़ा।
केराकै घौरी'-५०। घोरिया -स्त्री० दे० 'घोड़िया' ।
घ्राण-पु० [सं०] गंध; मूंघना; मूंघनेकी शक्ति नाक ।" घोरिला*-पु० बच्चोंके खेलनेका मिट्टीका बना घोड़ा धोड़े | घ्राणेंद्रिय-स्त्री० [सं०] नाक । जैसे मुहवाला खूटा।
Jघ्रातव्य-वि० [सं०] सूंघने योग्य ।
हु-व्यंजन वर्णका पाँचवाँ और कवर्गका अंतिम अक्षर ।
। -पु०.[सं०] इंद्रिय-विषयः विषयेच्छा।
च-देवनागरी वर्णमालाका छठा व्यंजन ।
( अस्थिरडाँवाडोला कंपित; चुलबुला, चपल; शोख कामुक । चंक-वि० समूचा । पु० उत्तर भारतका एक उत्सव । चंचलता-स्त्री० [सं०] अस्थिरता; चपलता । चंक्रम, चंक्रमण-पु० [सं०] घूमना; टहलना; कूदना। चंचलताई*-स्त्री० दे० 'चंचलता। चंक्रमित-वि० [सं०] घूमा या चक्कर खाया हुआ। चंचला-स्त्री० [सं०] बिजली; लक्ष्मी; पिप्पली । चंग-वि० [सं०] स्वस्थ, सुंदर; चतुर । पु० [फा०] डफकी चंचलाई*-स्त्री० चंचलता। शकलका एक बाजा । स्त्री० पतंग ।
चंचु-पु० [सं०] एरंड; बरसातमें होनेवाला एक साग, चंगना*-स० क्रि० सी चना, कसना।
चैच । स्त्री० चोंच। -प्रवेश-पु० किसी विषयका अल्प चंगा-वि० स्वस्थ, नीरोग निर्मल; भला ।
शान । -प्रहार-पु० ठोरसे मारना । चंगु*-पु० दे० 'चंगुल' ।
चंचुमान् (मत्)-पु० [सं०] पक्षी । चंगुल-पु० (चिड़ियोंका) पंजा; पकड़, काबू । | चचोरना-स० क्रि० दाँतोंसे दबाकर चूसना । चंगेर(री)-स्त्री० फूल रखनेकी डलिया; छिछली टोकरी; चंट-वि० चतुर, चालाक, उस्ताद । मशका टोकरीका रस्सीसे बनाया हुआ झूला ।
चंड-वि० [सं०] तीक्ष्ण उग्र गरमहानिकर । -कर,. चंगेरा-पु० दे० 'चंगेर'।
-दीधित,-भानु-पु० सूर्य । -मुंड-पु. शुंभ-निशुंभ चंगेरिक-पु०, चंगेरिका-स्त्री० [सं०] टोकरी, डलिया। के दो सेनापति जो दुर्गाके हाथों मारे गये । -रश्मिचंगेली-स्त्री० दे० 'चंगेरी'।
पु० सूर्य। चंच-पु० [सं०] टोकरी, डलिया; * स्त्री० चोंच । चंडता-स्त्री० [सं०] उग्रता; तीक्ष्णता । चंचरी(रिन्), चंचरीक-पु० [सं०] भ्रमर ।
चंडांशु-पु० [सं०] सूर्य । ३०] भ्रमरोंका समूह; एक वर्णवृत्त । चंडा-वि० स्त्री० [सं०] उग्र स्वभाववाली, कोपनशीला चंचल-वि० [सं०] एक जगह, एक स्थितिमें न रहनेवाला, (स्त्री)। स्त्री दुर्गा अष्टनायिकाओं से एक; एक गंधद्रव्य ।
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