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बड़ाई
-बद
बड़े नाम, प्रतिष्ठावालेका बेटा, बड़े घरानेका आदमी । - बोलका सिर नीचा- घमंडीको नीचा देखना पड़ता है। बढ़ाई - स्त्री० बड़ा होना; विस्तार, डील; बड़प्पन, महत्ता प्रशंसा |
बड़ी - स्त्री० उरदकी पीठीमें पेठा, मसाला आदि मिलाकर बनायी और सुखायी हुई टिकिया, कुम्हड़ौरी; पकौड़ी | धडूजा * - पु० दे० 'विडौजा' |
बड़ेरर* - पु० बगूला, बवंडर ।
बड़ेरा - * वि० दे० 'बड़ा' | + पु० दे० 'बँड़ेर' । बड़ेरी - स्त्री० दे० 'बड़ेरा' |
बड़ौना* - पु० बड़ाई, प्रशंसा ।
बढ़ती - स्त्री० दे० 'बढ़ती' |
बढ़ई - पु० एक हिंदू जाति जो लकड़ीका काम करती है । - गिरी - स्त्री० बढ़ईका धंधा |
बढ़ती - स्त्री० बढ़नेका भाव, वृद्धि, अधिकता । बढ़ना - अ० क्रि० डील, आकार, फैलाव, संख्या, मात्रा आदिका अधिक होना, लंबा ऊँचा होना, वृद्धि होना; धन-धान्य की वृद्धि होना; आगे जाना; दूसरेसे आगे निकल जाना; लाभ होना; महँगा होना; चिरागका बुझाया जाना; दुकानका बंद किया जाना । बढ़कर - अधिक अच्छा श्रेष्ठ | मु० बढ़कर बोलना- दूसरोंसे अधिक दाम लगाना, बड़ी बोली बोलना । बढ़-बढ़कर बोलना | - डींग मारना; ढिठाई, गुस्ताखी करना । बदनी - स्त्री० झाड़, बुहारी; पेशगीके रूपमें लिया जानेवाला अन्न या रुपया । बढ़वारि - स्त्री० बढ़नी । बढ़ाना - स० क्रि० आकार, विस्तार, संख्या, परिमाण आदिमें वृद्धि करना; पहलेसे अधिक लंबा-चौड़ा, ऊँचा करना, ऊपर उठाना; धन, मान आदिकी वृद्धि करना; तरक्की देना, उन्नति करना; ऊँचा, महँगा करना (भाव); आगे करना; आगे निकालना, ले जाना (घोड़ा); मरा हना, बढ़ावा देना; समेटना, उठाना (दुकान, दस्तरख्वान ); बुझाना (दिया); उतारना (चूड़ियाँ, गहने) । * अ०क्रि० चुकना, समाप्त होना ।
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बढ़ाव - पु० बढ़नेकी क्रिया या भाव; बढ़ना; आगे जाना (सेनाका), फैलाव |
बढ़ावा - पु० हिम्मत बढ़ानेवाली बात; प्रोत्साहन, उत्तेजन । बढ़िया - वि० अच्छा, उमदा, अच्छी किस्मका । स्त्री० एक तरह की दाल; * बाढ़ - 'जिन्हहि छाँड़ि बढ़िया माँ आये, ते विकल भये जदुराय' -सू० ।
बढ़या - 1 पु० बढ़ानेवाला; * बढ़ई ।
बढ़ोतरी - स्त्री० बढ़ती; बढ़ाया हुआ अंश, क्षेपक । बणिक ( ) - पु० [सं०] बनिया, बनिज व्यापार करनेवाला; विक्रेता ( शाकवणिक् ) ।
arraत्ति - स्त्री० [सं०] व्यापार, कारवार । बत- स्त्री० 'बात' का समासमें व्यवहृत लघु रूप । - कहाव -५० बातचीत; विवाद । कही * - स्त्री० बातचीत । - चल* - वि० बकवादी । -बढ़ाव - पु० बातका बढ़ जाना, झगड़ा, विवाद । -रस-पु० बातचीतका सुख,
मजा ।
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बतख - स्त्री० हंसकी जातिका एक जलपक्षी । बतर* - वि० बदतर ।
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बतरान* - स्त्री० बातचीत |
बतराना * - अ० क्रि० बातचीत करना । स० क्रि० वतलाना ।
बतरौहाँ * - वि० बातचीत करनेका इच्छुक । बतलाना-स० क्रि० दे० 'वताना' |
बताना - स० क्रि० कहना, बयान करना; जताना, समझाना; सूचित करना, प्रकट करना; गाने नाचने में उँग लियोंसे गान या नृत्यके भावोंको प्रकट करना; (ला० ) खबर लेना, मरम्मत करना (आने दो तो बताता हूँ) । बताशा - पु० दे० 'बतासा' ।
बतास * - स्त्री० वायुः वातरोग ।
बतासा - पु० खालिस शकरकी बनी हुई एक मिठाई, शर्कपुष्प; एक आतिशबाजी; बुलबुला ।
बतिया - पु० कुछ ही दिनोंका लगा हुआ छोटा फल | बतियाना। - अ० क्रि० बात करना । बतियार* - स्त्री० बातचीत ।
बतीसा- पु० बत्तीस दवाओं और मेवोंके योगसे बनाया हुआ लड्डू या हलवा जो प्रसूताको पुष्टिके लिए खिलाया जाता है; । दाँत काटनेका घाव, चिह्न | बतीसी - स्त्री० नीचे ऊपर की दंतपंक्ति, बत्तीसों दाँत; बत्तीस चीजों का समूह। मु० - खिलना - खुलकर हँसना । - झड़ना - दाँतोंका गिर जाना ।-दिखाना-दाँत दिखाना; हँसना । - बजना -अधिक जाड़ा लगना । वतू * - पु० कलाबत्त ।
बतोला- पु० धोखा देनेकी बात, भुलावा, झाँसा । बतौर - अ० [फा०] दे० 'ब' के साथ | बतौरी - स्त्री० उठा हुआ मांस, सूजन, ददौरा | बत्तक-स्त्री० दे० ' बतख' । बत्तिस - वि०, पु० दे० 'बत्तीस' |
बत्ती - स्त्री० रुई, पुराने कपड़े आदिकी ऐंठ या वटकर बनायी हुई पतली पूनी जिसे तेलमें डालकर दिया जलाते हैं; बुना हुआ, निवाड़ जैसा, फीता जिसे लंपोंमें डालकर जलाते हैं; कपड़े की कड़ी ऐंठी हुई धज्जी जो घावके भीतर भरी जाती है; मोमवती; फलीता; सींक आदिपर गंधद्रव्य लपेटकर बनायी हुई बत्ती जो पूजन आदिमें जलायी जाती है; चीरेका ऐंठा हुआ कपड़ा; चिराग; छाजन में लगानेका कास आदिका पूला । मु०-दिखाना - रोशनी दिखाना। - देना - दागना ( तोप आदि ) । - लगाना - जलाना, आग लगाना ।
बत्तीस - वि० तीस और दो । ५० बत्तीसकी संख्या, ३२ । बत्तीसा- पु० दे० 'बतीसा' |
बत्तीसी - स्त्री० दे० 'बत्तीसी' |
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बथुआ - पु० एक तरहका साग । बद-स्त्री० गिलटी; चौपायोंका एक रोग; बदला, एवज | वि० [फा०] बुरा; दुष्ट, खोटा; अशुभ। - अंदेशवि० बुरा चाहनेवाला, बदख्वाह । - अंदेशी - स्त्री० बदख्वाही । - अमनी - स्त्री० अशांति, उपद्रव । - अमलीस्त्री० अव्यवस्था, कुशासन - इंतज़ामी - स्त्री० कुप्रबंध ।