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अस्थावर - वि० [सं०] जंगम, चल (संपत्ति) |
अस्थि - स्त्री० [सं०] हड्डी; गिरी। -बंधन - पु० स्नायु बंधन | - भंग - पु० हड्डीका टूट जाना। -भक्ष- पु० हड्डियाँ खानेवाला, कुत्ता । - भुक् ( ज्) - पु० कुत्ता । - शेष - वि० जिसके शरीर में हड्डियाँभर रह गयी हों, बहुत दुबला । - संचय - पु० शवदाह के बाद गंगा आदिमें प्रवाह के लिए हड्डियाँ या राख एकत्र करना; अस्थियोंका ढेर । - संधि-स्त्री० हड्डीका जोड़ । - संभव - पु० मज्जा वज्र । - समर्पण - पु० संचित अस्थियोंको गंगा आदिमें फेंकना । - सार - स्नेह - पु० मज्जा । अस्थिर-वि० [सं०] जो स्थिर न हो; डावाँ-डोल; चंचल; अनिश्चित, बे भरोसेका * स्थिर । अस्थैर्य - पु० [सं०] अस्थिरता ।
अस्निग्ध - वि० [सं०] जो चिकना न हो; कठिन; शुष्क । अस्नेह - पु० [सं०] स्नेहका अभाव |
अस्पंद - वि० [सं०] स्पंदन-हीन, न हिलने-डुलनेवाला । अस्पताल - पु०दवाखाना, चिकित्सालय [अं०' हास्पिटल'] । अस्पष्ट-वि० [सं०] जो साफ दिखाई न दे या साफ समझमें न आये, धुंधला, संदिग्ध ।
अस्पृश्य - वि० [सं०] न छूने लायक, अछूत | अस्पृश्यता - स्त्री० [सं०] स्पर्शकी अयोग्यता, अछूतपन । - आंदोलन - पु० अछूतोद्धार - छुआछूत मिटानेका आंदोलन |
अस्पृष्ट-वि० [सं०] न हुआ हुआ, अछूता । अस्पृह - वि० [सं०] निलोंभ, जिसे लालच न हो । अस्फटिक - वि० [सं०] ( एमार्फस ) जिसका चूर्ण चम
कीला तथा खुरदरा न हो वरन् चिकना जान पड़े । अस्फुट - वि० [सं०] अस्पष्ट; अप्रकट |
अस्मदीय - वि० [सं०] मेरा ।
अस्र - पु० [सं०] कोण; रक्त; आँसू ; केसर; केश । -जपु० मांस । - - वि० रक्त पीनेवाला । पु० राक्षस मूल नक्षत्र । - पा-स्त्री० जोंक; डाकिनी; चुड़ैल | अत्र - पु० [अ०] काल; युग; उम्र; दिनका चौथा पहर । -की नमाज - शामकी नमाज ।
अस्रु-पु० [सं०] दे० 'अश्रु' । अस्ल-पु० [अ०] जड़, मूल; बीज; सचाई; मूल धन; मूल वस्तु; नकलका उलटा | वि० दे० 'असली' । -मेंवास्तव में, सचमुच ।
अस्ली - वि० [अ०] मौलिक; खालिस; खरा; सच्चा । अस्लीयत - स्त्री० [सं०] वस्तुस्थिति, (घटना) सच्ची स्थिति
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अस्थावर - अहल्या.
अस्वीकृति - स्त्री० [सं०] अस्वीकार | अस्वेद, अस्वेदन - पु० [सं०] पसीनेका न निकलना । अस्सी- पु० ८० की संख्या । वि० सत्तर और दस । अहंकार - पु० [सं०] अपनी सत्ताका बोध; गर्व, घमंड; अंतःकरणकी पाँच वृत्तियों में से एक (वेदांत, सांख्य० ) । अहंकारी (रिन्) - वि० [सं०] घमंडी | अहंकृति - स्त्री० [सं०] अहंकार, गर्व । अहंता - स्त्री० [सं०] घमंड, गर्व अहंपूर्विका, अहं प्रथमिका - स्त्री० [सं०] होड़, प्रतिद्वंद्विता । अहंवाद - पु० [सं०] डींग मारना । अहंवादी ( दिन ) - वि०, पु० [सं०] डींग मारनेवाला । अह - अ० अचरज, दुःख, क्लेश आदिका सूचक उद्गार । अह (न्) - पु० [सं०] दिन; सूर्य; विष्णु । अहक * - पु० लालसा, अतृप्त आकांक्षा । अहकना * - अ० क्रि० इच्छा करना, कामना करना । अहटाना * - अ० क्रि० आहट मिलना; दुखना । स० क्रि० पता लगाना ।
अहथिर - वि० दे० 'स्थिर' |
अहद - पु० [अ०] दे० 'अहद' (प्रतिश। ) ।
अहदी - वि० [अ०] आलसी । पु० वह सैनिक जिससे असाधारण आवश्यकता के समय ही काम लिया जाय (अकबरकी सेनाकी एक श्रेणी) ।
अहना* - अ० क्रि० वर्तमान रहना, होना । अहनिसि - * अ० दे० 'अहर्निश' ।
अहमक़
अहम - वि० [अ०] बहुत जरूरी, महत्त्वपूर्ण । क्र - वि० [अ०] जडमति, मूर्ख, नासमझ । अहमग्रिका, अहमहमिका- स्त्री० [सं०] चढ़ाऊपरी, होड़, प्रतियोगिता; 'अहंपूर्विका' | अहमिति * - सी० घमंड, गर्व । अहमेव - पु० [सं०] घमंड, गर्व ।
अहम् - सर्व० [सं०] मैं । पु० अहंभाव, अहं तत्त्व -मतिस्त्री० गर्न, घमंड, ममता । -मन्य-वि० अपनेको बहुत बड़ा माननेवाला |
अहरणीय - वि० [सं०] जो हटाने या हरण करने योग्य न हो; ढ़, स्थिर । पु० पहाड़ । अहरन, अहरनि * - स्त्री० निहाई । अहरना-स० क्रि० लकड़ी छीलकर सुडौल करना । अहरह - अ० [सं०] दिन-दिन ।
अहरा - पु० आग सुलगानेके लिए लगाये गये कंडे या उपले; इकट्ठा किये हुए कंडेसे तैयार की गयी आग; लोगों के ठहरनेका स्थान; प्याऊ । अहर्निश - 3
- अ० [सं०] दिन-रात; आठों पहर ।
या रूप; जड़ ।
अस्वच्छ - वि० [सं०] गंदा; धुंधला । अस्वाभाविक - वि० [सं०] स्वभावविरुद्ध अनैसर्गिक, अहर्पति -पु० [सं०] सूर्य । अहर्मणि - पु० [सं०] सूर्य |
बनावटी ।
अहलकार - पु० दे० 'अहकार' ।
अस्वामिक- वि० [सं०] विना मालिकका, लावारिस | पु० अहर्मुख- पु० [सं०] उपःकाल, सबेरा, भोर । वह धन या संपत्ति जिसका कोई दावागीर न हो । अस्वास्थ्य - पु० [सं०] रोग, बीमारी । अस्वीकार - पु० [सं०] न मानना; इनकार; न लेना । अस्वीकृत - वि० [सं०] न माना हुआ, नामंजूर; ग्रहण न किया हुआ ।
५-क
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अहलना * - अ० क्रि० हिलना; दहलना । अहलमद - पु० दे० 'अहमद ' ।
अहल्या- स्त्री० [सं०] गौतम ऋषिकी पत्नी जो शापसे शिला बन गयी थी और जिसने रामके चरण