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.अहवान-आँख
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स्पर्शसे पुनः पूर्वरूप प्राप्त कर लिया। -जार-पु० इंद्र। अफीम । -बेल-स्त्री० [हिं०] दे० 'अहिवल्ली' । -भुक् -नंदन-पु० अहल्याके पुत्र, सतानंद ।
(ज)-पु० गरुड़ा मोर; नेवला । -भृत्-पु. शिव । अहवान*-पु० दे० 'आह्वान'।
-माली (लिन् )-पु० शिव । -मेध-पु० सर्पसत्र, अहवाल-पु० [अ०] वृत्तांत, समाचार हाल ('हाल'का बहु०)। नागयश। -लता-स्त्री० नागवल्ली, पान, गंधनाकुली। अहसान-पु० दे० 'एहसान'।
-वल्ली-स्त्री० नागवल्ली, पान । -विषापहा-स्त्री० गंधअहस्कर-पु० [सं०] सूर्य ।
नाकुली। -साव*-पु० साँपका बच्चा, सँपोला । अहस्तक्षेप-नीति-स्त्री० [सं०] (लैसेज फेयर) अर्थ-शास्त्रियों-अहित-पु० [सं०] हितका अभाव या उलटा, बुराई, अपका यह सिद्धांत कि देशके आर्थिक मामलों (व्यापारादि) कार; हानि; शत्रु । वि० अहितकर, अपथ्या विरोधी । - में राज्यको बिलकुल हस्तक्षेप न करना चाहिये।
कर,-कारी (रिन् )-वि० हानि, अपकार करनेवाला । अहस्तांतरकरणीय-वि० [सं०] (इनएलाइनेबिल) जिसके अहिम-वि० [सं०] ठंढा नहीं, गरम । -कर,-किरण,स्वामित्व या अधिकारका हस्तान्तरण न किया जा सके। । रश्मि-पु० सूर्य । अहस्तांतरणीय-वि० [सं०] (नान-ट्रांसफरेविल) जो हस्तां-अहिमांशु-पु० [सं०] सूर्य । तरित न किया जा सके, जिसका हस्तांतरण न हो सके। अहिवात-पु० सुहाग । अहह-अ० [सं०] दुःख, क्लेश, आश्चर्य और संबोधन- अहिवातिन, भहिवाती-वि० स्त्री०सौभाग्यवती, सधवा। सूचक उद्गार ।
अहीर-पु० आभीर, ग्वाला। अहा, अहाहा-अ० हर्ष तथा विस्मय-सूचक उद्गार । अहीश-पु० [सं०] सर्पराज; लक्ष्मण; बलराम । अहाता-पु० [अ०] दे० 'एहाता'।
अहुटना*-अ० क्रि० हटना, अलग होना। महान*-पु० आह्वान, पुकार ।
अहुटाना*-स० क्रि० हटाना, दूर करना। अहार*-पु० दे० 'आहार'।
अहठ-वि० साढ़े तीन । अहारना-स० क्रि० लकड़ीको छील-छालकर सुडौल करना; अहेतु-वि० [सं०] हेतुरहित । पु० हेतुका अभाव; एक चिपकाना; * आहार करना, खाना ।
अलंकार, जहाँ कई कारणोंके विद्यमान रहते हुए भी कार्यअहारी*-वि० दे० 'आहारी'।
का न होना वर्णित किया जाय। अहाये-वि० [सं०] जो हरा, चुराया न जा सके; जो धन अहे(है)तुक-वि० [सं०] हेतुरहित, अकारण। या चकमा देकर वशमें न किया जा सके; दृढ़, न अहेर-पु० आखेट, शिकार । बदलनेवाला।
अहेरी-वि०शिकारी । पु० शिकार करनेवाला, आखेटक । अहिंसक-वि० [सं०] हिंसा न करनेवाला।
अहो-अ० [सं०] विस्मय, प्रशंसा, खेद, विषाद, धिक्कारअहिंसा-स्त्री० [सं०] किसी प्राणीको न मारना; मन, सूचक उद्गार संबोधन में भी व्यवहृत । -रूपमहीध्वनिवचन, कर्मसे किसीको पीडा न देना हैस नामकी घास। परस्पर प्रशंसा (लोको०)। -वादी (दिन)-वि० अहिसा सिद्धांतकोमाननेवाला। अहोरात्र-पु० [सं०] दिन और रात दो सूर्योदयोंके बीचअहिंस्र-वि० [सं०] अहिंसक।।
का समय । अहि-पु० [सं०] साँप; सूर्य; राहु वृत्रासुर; पथिका जल; अहोरा-बहोरा-पु० ब्याह या गौनेमें दुलहिनका ससुराल पृथिवी; ठग, वंचक; बादल; नाभिः सीसा अश्लेषा नक्षत्र।। जाकर उसी दिन वापस आना । अ० बार-बार । -कोष-पु० केंचुल । -च्छत्रक-पु० कुकुरमुत्ता। - अहद-पु० [अ०] प्रतिज्ञा काल; राजत्व । -नामा-पु० जित्-पु० कृष्ण । -जिह्वा-स्त्री० नागफनी। -तुंडिक प्रतिज्ञापत्र, इकरारनामा। -पु० सपेरा। -द्विष,-मार,-रिपु-पु० गरुड़, नकुल; अह-वि० [अ०] योग्य, अधिकारी, पात्र । पु० कुटुंबी। मयूर; इंद्र। -नाथ-पु० शेषनाग । -नाह*-पु० -कार-पु० कर्मचारी राजकर्मचारी ।-(हे)कलमशेषनाग । -निर्मोक-पु० केंचुल । -पति-पु० वासुकि वि० लेखक; लेखन-व्यवसायी; शिक्षित । नाग; कोई बड़ा साँप । -फेन-पु० साँपकी लार या विषः अहीयत-स्त्री० [अ०] योग्यता, पात्रता।
आ
आ-देवनागरी वर्णमालाका दूसरा अक्षर और अका दीर्घ रूप। | आँकुस*-पु० दे० 'अंकुश' । भा-अ० विस्मयसूचक शब्द ।
आँकू-पु० आँकनेवाला, कृतनेवाला । ऑक-पु० अंक; अदद; चिह्न; अक्षर; अँकवारगोदः | आँख-स्त्री० देखने-रूपबोध करनेकी इंद्रिय, नयन, चक्षुः सिद्धांत; निश्चय; अंश; लकीर ।.
निगाह, दृष्टि; कृपादृष्टि; परख, पहचान; ईखकी गाँठपरकी औंकड़ा-पु० अंक, हुक; पशुओंका एक रोग।
नोक जिससे अँखुआ निकलता है; अँखुआ; आँखकी शक्लका ऑकना-सक्रि० कृतना,अनुमान करना निशान लगाना।। चिह्न (मोरपंखपरका); छिद्र (सूईका); ध्यान; संतान । - आँकर*-वि० गहरा; महँगा; बहुत ज्यादा ।
-मिचौली-मीचली-स्त्री० लड़कोंका एक खेल। भाँकुड़ा-पु० अंकुड़ा।
-मचाई-स्त्री० आँखमिचौनी । मु०-आना, श्रांकुशिक-पु० [सं०] अंकुश मारनेवाला, महावत ।
उठना-आँखों में लालिमा आकर उनमें पीड़ा और
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