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विकशित - पु० कटाक्ष, तिरछी चितवन । -विक्षेप-पु०
कटाक्ष |
अक्षुण्ण - वि० [सं०] अखंडित, अभग्न; अन्यून; अपराजित । अक्षुद्र - वि० [सं०] जो नीच, छोटा या तुच्छ न हो । अक्षुब्ध - वि० [सं०] क्षोभरहित । अक्षेत्र - वि० [सं०] क्षेत्ररहित; चासके अयोग्य, परती । पु० बुरी जमीन; ज्यामितिका अशुद्ध चित्र; मंदबुद्धि छात्र | अक्षोट- पु० [सं०] पर्वतीय पीलु वृक्ष, अखरोटका पेड़ । अक्षोनि * - स्त्री० दे० 'अक्षौहिणी' ।
अक्षोभ - पु० [सं०] क्षोभका अभाव, शांति, हाथी बाँधनेका
खूँटा । वि० शांत, धीर; जो क्षुब्ध या घबड़ाया न हो । अक्षोभ्य - वि० [सं०] धीर, गंभीर, अशांत न होनेवाला | अक्षौहिणी - स्त्री० [सं०] चतुरंगिणी सेनाका एक परिमाण या विभाग (१,०९, ३५० पैदल, ६५,६१० घोड़े, २१,८७० रथ और इतने ही हाथी ) ।
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अक्स - पु० [अ०] परछाई, छाया, चित्र; फोटो । -मु० उतारना - हूबहू नक्शा बनाना; फोटो खींचना । -लेना
- किसी तसवीरपर बारीक कागज रखकर खाका लेना । अक्सर - अ० दे० 'अकसर'; प्रायः; बहुधा; एकाकी । अक्सी - वि० छाया संबंधी; अक्सके जरिये लिया जाने वाआ (चित्र आदि ); फोटोग्राफ संबंधी । - तसवीर - स्त्री० फोटो, छायाचित्र |
अखंग* - वि० न चुकनेवाला । अखंड - वि० [सं०] संपूर्ण अविकल अटूट, बाधारहित, जिसका सिलसिला न टूटे । - सौभाग्य- पु० स्त्रीका आमरण सौभाग्यवती रहना ।
अक्षुण्ण- अग
अखरोट - पु० एक प्रसिद्ध मेवा और उसका पेड़, अक्षोट । अखर्व (e) - वि० [सं०] जो छोटा न हो; बड़ा; लंबा | अख़लाक़ - पु० [अ०] शिष्टता, सौजन्यः सदाचार । अखाड़ा - पु० कुश्ती लड़ने या कसरत करनेका स्थान, व्यायामशाला; सांप्रदायिक साधुओंकी मंडली; साधुओंके रहनेका स्थान, मठ; करतब दिखाने या गाने-बजानेवालोंकी जमात; सभा, दरबार; अड्डा, जमघट; आंगन; ( इंदरका अखाड़ा ) नृत्यशाला, रंगशाला । मु०-गरम होना - ज्यादा भीड़ होना। -जमना - खेलवाड़ियों का अखाड़े में जमा होना और दर्शकों की भीड़ लगना; किसी जगह बहुत से आदमियोंका जमा होना । - (ड़े) का जवान - कसरती बदनका आदमी। - (ड़े) में आनामुकाबले में खड़ा होना ।
अखाड़िया - वि० दंगली ( पहलवान ) ।
अखात - पु० [सं०] प्राकृतिक झील, ताल; उपसागर (बे), खाड़ी ।
अखाद्य - वि० [सं०] न खाने योग्य, अभक्ष्य । अखारा* - पु० दे० 'अखाड़ा' ।
अखिन्न - वि० [सं०] खेदरहित; क्ल ेशरहित; अक्कांत प्रसन्न । अखिल - वि० [सं०] संपूर्ण, सारा । अखिलात्मा ( मन ) - पु० [सं०] विश्वात्मा | अखिलेश- पु० [सं०] सबका स्वामी, परमेश्वर । अखीन * - वि० अक्षीण, न छीजनेवाला; अविनाशी । अखीर - पु० [अ०] अंत, समाप्ति | अख़ीरी- वि० [अ०] अखीरका, अंतिम
अखूट - वि० अखंड, जो घटे नहीं, अक्षय; अत्यधिक ।
अखंडन - वि० [सं०] अखंडित; अखंडनीयः समूचा । पु० अखेट* - पु० दे० 'आखेट' ।
अखबारी - वि० [अ०] समाचारपत्र संबंधी । अखय* - वि० दे० 'अक्षय' ।
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परमात्मा; कालः स्वीकार; खंडन न करना ।
अखेटक * - पु० दे० 'आखेटक' |
अखंडनीय - वि० [सं०] जिसका खंडन न किया जा सके; अखेटिक - पु० [सं०] वृक्ष; वह कुत्ता जिसे शिकारका सु; अविभाज्य ।
पीछा करना सिखलाया गया हो ।
अखंडल * - वि० अखंड, संपूर्ण । पु० आखंडल, इंद्र । अखंडित - वि० [सं०] अखंड, अटूट, अबाधित; जिसका खंडन न हुआ हो ।
अखज* - वि० अखाद्य । अखड़त - पु० पहलवान, मल्ल | अखती - स्त्री० दे० 'अखतीज' । अखतीज * - स्त्री० अक्षय तृतीया । अखनी - स्त्री० यखनी, शोरबा ।
अख़बार - पु० [अ०] समाचार ( खबरका बहुवचन), समाचारपत्र । - नवीस - पु० अखबार लिखनेवाला, पत्रकार । -नवीसी - स्त्री० पत्रकारी ।
अखेद - पु० [सं०] दुःख या खेदका अभाव, प्रसन्नता । वि० [प्रसन्न, दुःखरहित । अ० प्रसन्नतापूर्वक ।
अखेलत* - वि० जो खेलतान हो; अचंचल; आलस्ययुक्त । अखै* - वि० दे० 'अक्षय' ।
अखैबट, -बर, - वट, - वर- पु० अक्षयवट | अखोर - वि० निकम्मा, तुच्छ
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अच्छा, भद्र, सुंदर, निर्दोष । पु० निकम्मी चीज, कूड़ा-करकट; खराब घास । अखोह - पु० ऊबड़-खाबड़ जमीन । अखौट (टा) - पु० जाँते या चक्कीकी किल्ली; गड़ारीका डंडा । अख़्वाह - अ० [अ०] आश्चर्य सूचक उद्गार ( किसीके अनपेक्षित आगमन, मिलन या कार्यपर बोलते हैं ); बहुत खूब ।
अख्तियार - पु० दे० ' इख्तियार' ।
अख्यात - वि० [सं०] अप्रसिद्ध, अप्रतिष्ठित, अविदित । अख्यान* - पु० दे० 'आख्यान' । अख्यायिका * - स्त्री० दे० 'आख्यायिका' ।
अखर* - पु० दे० 'अक्षर' ।
अखरना - अ० क्रि० खलना, बुरा लगना; कठिन या कष्टप्रद जान पड़ना ।
अखरा - पु० बिना कुटे जौका आटा; *अक्षर । *वि० जो अगंड - पु० बिना हाथ-पैरका घड़ ।
खरा न हो । अखरावट, - (टी) - स्त्री० वर्णमाला; अक्षरक्रमके अनुसार• आरंभ होनेवाला पद्यसमूह |
अग - वि० [सं०] चलने में असमर्थ, स्थावर; टेढ़ा चलनेवाला; अगम्य; *अज्ञ, अनान । पु० पहाड़; पेड़; साँप; सूर्य घड़ा; सातकी संख्या । -ज- वि० पहाड़ या वृक्षसे
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