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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवहर्ता-व्याख्यान ७६० जाना; ठहरना, रहना; लगा रहना, अध्यवसाय; निश्चित सत्ता तथा अधिकार माननेका सिद्धांत । नियम । व्यसन-पु० [सं०] खामी, त्रुटिं; संकट, विपत्ति; दुर्भाग्य व्यवहर्ता(र्तृ)-वि० [सं०] कारबार करनेवाला; रीति- | पाप, दुराचरण; बुरी आदत, लत; बहुत ज्यादा आदी नीतिका पालन करनेवाला। पु० किसी कारबारका प्रबं- होनाप्रिय विषय । -काल-पु० संकटका समय, दुर्दिन। धक या संचालक; विचारपति मुकदमा लड़नेवाला; वादी; | | -प्राप्ति-स्त्री० दुर्दिन आना। साथी; वैश्य । व्यसनाक्रांत-वि० [सं०] संकटग्रस्त । व्यवहार-पु० [सं०] कार्य अनिवार्य कार्य; आचरण, व्यसनागम-पु० [सं०] दुर्दिनका आना । बर्ताव, प्रयोग; कारबार पेशा, व्यापार महाजनी; विषय, व्यसनात्यय-पु० [सं०] संकटका अंत । माजरा, रीति, प्रथा, रिवाज; शत, पण; स्थिति विवाद: व्यसनान्वित, व्यसनाप्लुत-वि० [सं०] संकटमें पड़ा मुकदमा; मुकदमेका कारण; मुकदमेका विचार; दंड हुआ, विपद्ग्रस्त । कारबार सँभालनेकी योग्यता औचित्य (विधानके विचार व्यसनात-वि० [सं०] संकटापन्न । से); संबंध; पद खड्गः एक वृक्ष । -ज्ञ-वि० दुनियाके व्यसनी(निन्)-वि० [सं०] जिसे किसी विषयका बहुत तौर-तरीकेका जानकार; अपना कारबार सँभालने योग्य, शौक हो; विषयासक्त; किसी बुरी चीजका आदी; पापी; बालिग; मुकदमेकी काररवाई समझनेवाला । -तंत्र-पु० | बदनसीब किसी कार्य में जी-जानसे लगा हुआ। आचारशास्त्र । -दर्शन-पु० मुकदमेकी जाँच, मुकदमेका | व्यस्त-वि० [सं०] फेंका हुआ, उछाला हुआ; तितर-बितर विचार । -द्रष्टा(ष्ट्र)-पु० विचारपति ।-निरीक्षक- किया हुआ, बिखेरा हुआ; हटाया हुआ; निकाला हुआ, पु. वह अधिकारी जो सामान्य मुकदमों में सरकार- पृथक् किया हुआ; व्यष्टि रूपमें ग्रहण किया हुआ समासकी ओरसे पैरवी करता है ( कोर्ट इन्स्पेक्टर)।-न्याया- रहित (व्या०); विभिन्न घबड़ाया हुआ; क्षुब्ध; जो क्रममें लय-पु० (सिविल कोर्ट ) नागरिकोंके अधिकारों आदि- न हो, जो ठीक हालतमें न हो; उलटा हुआ; व्याप्त संबंधी विवादोंपर विचार करनेवाला न्यायालय ।-पद- निहित; कार्यादिमें संलग्न, उलझा हुआ; परिवर्तित । पु० व्यवहार, मुकदमेका विषय । -प्राप्त-वि० जिसकी -केश-वि०जिसके बाल बिखरे हों। अवस्था सोलह वर्षसे अधिक हो गयी हो, बालिग । | व्याकरण-पु०[सं०] वह विद्या जिसके द्वारा भाषाके शब्दों, -लक्षण-पु० मुकदमेकी जाँच-संबंधी विशेषता।-वाद- उनके रूपों और प्रयोगों आदिका शान होता है। पु० (सिविल सूट ) नागरिकोंके अधिकारों आदि-संबंधी व्याकीर्ण-वि० [सं०] फैलाया, बिखेरा हुआ; अस्त-व्यस्त विवादका मामला । -विधि-स्त्रीव्यवहारका विधान, व्याकुल, क्षुब्ध । पु० अस्तव्यस्तता; गड़बड़ । न्यायशास्त्र । -विषय,-स्थान-पु० मुकदमेका विषय । | व्याकुल-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ, हतबुद्धि; व्यग्र भीत; -शास्त्र-पु. वह शास्त्र जिसमें विवाद-संबंधी बातोंका अभिभूत; किसी काममें लगा हुआ; तेजीसे इधर-उधर विवेचन किया गया हो। -सिद्धि-स्त्री० धर्मशास्त्रके चलता हुआ, कंपित (जैसे विद्युत् )। -चित्त,-मनाअनुसार मुकदमेका निर्णय । -स्थिति-स्त्री० मुकदमेके | (नस),-हृदय-वि. जिसका दिल बहुत घबड़ाया विचारसे संबंध रखनेवाली काररवाई। हुआ हो, व्यग्र । -मूर्धज-वि०जिसके बाल बिखरे हों। व्यवहारक-पु० [सं०] व्यापारी । -लोचन-वि०जिसकी दृष्टि मंद हो गयी हो। व्यवहारार्थी(थिन् )-पु० [सं०] वादी, मुद्दई । व्याकुलित-वि० [सं०] घबड़ाया हुआ; भीत । व्यवहारासन-पु० [सं०] न्यायासन, विचारासन । व्याकूति-स्त्री० [सं०] छल, कपट; बुरी नीयत । व्यवहारास्पद-पु० [सं०] फरिगाद, नालिश । | व्याकृति-स्त्री० [सं०] पार्थक्य, भेद, अंतर; विश्लेषण व्यवहारिक-वि० [सं०] कारबार-संबंधी; कारबार में लगा व्याख्या रूप-परिवर्तन; व्याकरण । हुआ; कानून-संबंधी; मुकदमेबाज; प्रचलित व्यवहारमें | व्याक्रोश-पु०सं०] गाली देना, भर्त्सना करनाचिलाना। आनेवाला । -जीव-पु० ज्ञानमय कोष (वेदांत )। व्याख्या-स्त्री० [सं०] कठिन पदादिका अर्थ स्पष्ट करने व्यवहारी(रिन्)-वि० [सं०] कारबारमें लगा हुआ; वाला विवरण, टीका; वर्णन। -गम्य-वि० व्याख्याके मुकदमा लड़नेवाला; प्रचलित, जो व्यवहारमें आता हो। जरिये समझा जानेवाला । व्यवहार्य-वि० [सं०] व्यवहारके योग्य, काममें लाने | व्याख्यात-वि० [सं०] जिसकी व्याख्या, टीका की गयी योग्य; करने योग्य; जिसके साथ व्यवहार किया जा हो; वणित, कथित । सके, जिसका साथ किया जा सके; प्रचलित; मुकदमेके व्याख्यातव्य-वि० [सं०] व्याख्या करने योग्य, जिसकी लायक (विषय)। पु० खजाना।। व्याख्या करनी हो। व्यवहित-वि० [सं०] अलग रखा हुआ; किसी वस्तुके व्याख्याता (त)-पु० [सं०] व्याख्या करनेवाला; भाषण द्वारा पृथक् किया हुआ; रोका हुआ; छिपाया हुआ। करनेवाला। दूरवर्ती; जिसका लगातार संबंध न हो। व्याख्यान-पु० [सं०] टीका करना, व्याख्या करना; व्यवहृत-वि० [सं०] आचरित, अनुष्ठित व्यवहार या | वर्णन; भाषण, वक्तृता। -पीठ-पु. ( रोस्ट्रम) मंचका प्रयोगमें लाया हुआ। वह ऊँचा स्थान जहाँ खड़ा होकर कोई वक्ता व्याख्यान व्यष्टि-स्त्री० [सं०] प्राप्ति; सफलता; एक होनेका भाव; देता या भाषण करता है। -शाला-स्त्री० व्याख्यान, समष्टिका एक स्वतंत्र अंश । -वाद-पु० व्यष्टिकी स्वतंत्र भाषणके लिए बना स्थान । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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