________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तिसपर-तुंडिल
३३० । तिसपर-अ० उसके बाद ऐसी स्थितिमें; तथापि, इतना करना-टाल-मटोल करना । -में, न तेरह मेंहोनेपर भी।
नगण्य, जिसकी कहीं पूछ न हो; तटस्थ । तिसना*-स्त्री० दे० 'तृष्णा'।
तीनि*-वि० तीन । तिसरायत-स्त्री० तीसरा होनेका भाव ।
तीमार-पु० [फा०] सेवा-शुश्रूषा, हिफाजत । -दार-पु० तिसरत-पु० वह व्यक्ति जो दो पक्षोंमेंसे किसी एकका रोगीकी सेवा करनेवाला ।-दारी-स्त्री० रोगीकी सेवा।
भी न हो; तीसरा व्यक्ति; मध्यस्थ, पंच; तीसरे भागका तीय(या)*-स्त्री० स्त्री, औरत । अधिकारी।
तीरंदाज़-पु० [फा०] तीर चलानेवाला, धनुर्धर । तिसाना*-अ० क्रि० प्यासा होना, तृषित होना। तीरंदाजी-स्त्री० [फा०] तीर चलानेकी क्रिया या विद्या । तिहत्तर-वि०सत्तर और तीन । पु० तिहत्तरकी संख्या, ७३। तीर-पु० [सं०] नदीका किनारा, तट, कूल; गंगा-तट; तिहरा-वि० दे० 'तेहरा' ।
सीसा राँगा; बाण । -वर्ती(र्तिन)-वि० तीरपर स्थित, तिहराना-स० कि० दे० 'तेहराना' ।
जो किनारेपर रहता हो । तिहरी-स्त्री० तीन लड़ोंकी माला; दही जमानेका मिठीका तीरथ*-पु० दे० 'तीर्थ' । छोटा बरतन ।
तीर्ण-वि० [सं०] जो पार कर चुका हो; जो पार किया तिहाई-स्त्री० तीसरा भाग, तीसरा हिस्सा; फसल । जा चुका हो। तिहाउ*-पु० दे० 'तिहाव' ।
तीर्थंकर-पु० [सं०] जिन; विष्णुः शास्त्रकार । तिहार, तिहारा, तिहारो*-सर्व० तुम्हारा।
तीर्थ-पु० [सं०] वह पुण्यस्थान जहाँ विशेष धर्मक अनुतिहाव-पु० क्रोध, रोष; बिगाड़।
थायी पूजा, स्नान आदिके लिए जाते हों-जैसे काशी, तिहि-सर्व० दे० 'तेहि।
प्रयाग आदि; यज्ञ; क्षेत्र। -कर-पु० जिन; विष्णु । तिहूँ *-वि० तीनों।
-पति-पु० दे० 'तीर्थराज'। -पुरोहित-पु. तीर्थका ती*-स्त्री० स्त्री पत्नी।
पंडा। -यात्रा-स्त्री० तीर्थ करनेके लिए की गयी यात्रा, तीक्षण, तीक्षन*-वि० दे० 'तीक्ष्ण' ।
तीर्थाटन । -राज-पु. प्रयाग। तीक्ष्ण-वि० सं०] तेज नोक या तेज धारवाला; तीव्र, तीर्थाटन-पुं० [सं०] तीर्थभ्रमण, तीर्थयात्रा। कुशाग्र प्रखर तेज, चोखा, चुभता हुआ; मर्मभेदी; उग्रः तीर्थोदक-पु० [सं०] तीर्थका जल । तीखा; तीखे या चरपरे स्वादका; उत्कट गंधवाला; कठोर । | तीन*-वि० दे० 'तीर्ण । -दृष्टि-वि० जिसकी दृष्टि तीखी हो; सूक्ष्मदशी ।-धार- तीली-स्त्री० सलाई, मोटी सींक या खपची। पु० खड्ग, तलवार । वि० तेज धारवाला । -बुद्धि-वि० तीवई-स्त्री० स्त्री, औरत । जिसकी बुद्धि प्रखर हो।-रश्मि-पु० सूर्य । वि०जिसकी तीवर-पु० [सं०] समुद्रः मछुआ, बहेलिया; एक वर्णकिरणें प्रखर हों।
संकर जाति । तीक्ष्णांशु-पु० [सं०] सूर्य ।
तीन-वि० [सं०] अत्यंत, नितांत; तेज, तीक्ष्ण, अत्युष्णा तीख*-वि० तीखा।
कटु असथा जोरका; अत्यधिक दूत; भयंकर कुछ ऊँचा तीखन*-वि० तीक्ष्ण ।
(स्वर)। पु० तीक्ष्णता; इस्पात; राँगा, लोहा, शिव तीर, तीखा-वि० तीक्ष्ण । -पन-पु० तीक्ष्णता ।
कूल । -गति-वि० जिसकी चाल तेज हो। पु० पवन, तीखुर, तीखुल-पु. एक कंद जिसका सात मिठाई, खीर हवा । स्त्री० तेज चाल, द्रुत गति । -द्युति-पु० सूर्य । आदि बनानेके काम आता है।
तीस-वि० बीस और दस । पु० तीसकी संख्या, ३० ।-मार तीछन*-वि० तीक्ष्ण ।
खाँ-वि० बाँका बीर ।(तीसौं)दिन-अ० सदा, सर्वद।। तीछा*-वि० तीक्ष्ण ।
तीसर*-वि० तीसरा। तीज-स्त्री० पक्षकी तीसरी तिथि: भाद्र-शक्ला तृतीयाको तीसरा-वि० दूसरेके बादका, जो क्रममें दोके बाद पड़े, होनेवाला एक व्रत, हरतालिका व्रत ।
जो गिनती में तीनके स्थानपर हो; जो दो से किसी पक्षका तीजा-पु० मुसलमानोंमें मृत्युके बादका तीसरा दिन। न हो, गैर । पु० दे० 'तिसरैत' । -पहर-पु० अपराह्न । इस दिन मृतककी यादगारमें उसके संबंधी एकत्र होते हैं तीसी-स्त्री० एक तेलहन, अलसी ।
और गरीबोंको खाद्य पदार्थ बाँटे जाते हैं । वि० तीसरा।। | तुंग-वि० [सं०] ऊँचा, उन्नत; उग्र प्रधान । पु० पुन्नागतीत*-वि० दे० 'तीता'।
का पेड़, नारियल, पर्वत; बुध ग्रह । तीतर-पु० एक प्रसिद्ध पक्षी जिसे लोग लड़ानेके लिए तुंगारण्य-पु० [सं०] ओड़छाके समीप बेतवाके किनारेका पालते हैं।
एक तीर्थ । यहाँ अबतक जंगल हैं और मेला लगता है। तीता-वि० तीखे, चरपरे स्वादका, तिक्त गीला । तुंड-पु० [सं०] मुख; मुखका आगेकी ओर निकला हुआ तीतुर, तीतुल*-पु० दे० 'तीतर'।
भाग, थूथन; चोंच; हथियारकी नोंक; तलवारका अग्र तीतुरी*-स्त्री० दे० 'तितली'।
भाग; शिव; एक राक्षस: हाथीकी सूंड़। तीन-वि० दो और एक । पु० तीनकी संख्या, ३ । मु तुंडि-पु० [सं०] मुँह चोंच; बिंबाफल । स्त्री० नाभि । -तेरह करना-अस्त-व्यस्त करना, तितर-बितर करना। तुंडिक-वि० [सं०] थूथनवाला । -तेरह होना-तितर-बितर होना,छितरा जाना ।-पाँच । तुंडिल-वि० [सं०] बहुत बोलनेवाला;जिसकी नाभि निकली
For Private and Personal Use Only