SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४१ गोट हलकी पीड़ा, टीस । * पु० दे० 'चषक' । चसकना - अ० क्रि० कसकना, हलका दर्द होना । चसका - पु० किसी चीजका मजा मिलनेसे उसे फिर करने, भोगनेकी इच्छा होना, चाट; इस तरह लगी हुई लत । चसना - अ० क्रि० मरना; चिपकना । चसम* - स्त्री० दे० 'चश्म' | चसमा - पु० दे० 'चश्मा' | चह - पु० नदी में बल्ले गाड़कर तथा तख्ते बिछाकर बनाया हुआ अस्थायी पुल; [फा०] ('चाह' का लघु रूप) कुआँ, गढ़ा। - बच्चा - पु० गंदा पानी जमा होनेके लिए खोदा हुआ गढ़ा; रुपया-पैसा गाड़नेके लिए बनाया हुआ गढ़ेकी | शकलका तहखाना । चहक - स्त्री० चहकनेका भाव, चहचहा । + पु० पंक चहकना - अ० क्रि० चिड़ियोंका चहचहाना, आनंद में भर कर कलरव करना; खुशी से खिलकर बोलना; जलना । म० क्रि० जलाना, संतप्त करना । चहनि * - स्त्री० दे० 'चाह' | चहर* - स्त्री० चहल-पहल ; आनंदका कोलाहल, शोर; उपद्रव । वि० बढ़िया; तेज । -पहर- स्त्री० दे० 'चहलपहल' | चहकारना! -- अ० क्रि० चहकना । चहकारा* - वि० चहकनेवाला, कलरव करनेवाला । चहचहा - पु० 'चहचहाना' का भाव; चिड़ियोंकी आनंदभरी बोली, कलरव, हँसी-खुशी; कई आदमियोंका एक साथ हँसना, मुदित होकर बोलना; हँसी-मजाक । वि० 'चहचह ' शब्दसे भरा हुआ; आनंदपूर्ण; उल्लास-युक्त । चहचहाना - अ० क्रि० चिड़ियोंका आनंद में भरकर लगा चाँड़ी। स्त्री० चोंगी, कीप । तार बोलना, चहकना । चहना* स० क्रि० देखना; चाहना । चहरना * - अ० क्रि० मुदित होना । चहराना * - अ० क्रि० प्रसन्न होना; चर्राना; फटना । चहल * - स्त्री० दे० 'चहला'; आनंदोत्सव | -पहल- स्त्री० किसी स्थान में अधिक आदमियोंके इकट्ठे होने, आने-जानेसे वायुमंडल में पैदा हुई सजीवता, धूमधामः प्रसन्नता; आवादी; रौनक | चहलकदमी - स्त्री० [फा०] चेहलकदमी, धीरे-धीरे टहलना । चहला * - पु० कीचड़ । चहार - वि० [फा०] चार | पु० चारको संख्या । - दीवारी - स्त्री० किसी स्थानके चारों ओर, आड़ बचावके लिए खींची हुई दीवार, परकोटा। चहारुम - वि० [फा०] चौथा । पु० चतुर्थांश, चौथाई । चहु* * वि० चार, चारों । -घा - दिस-अ० चारों ओर । चहुटना * - स० क्रि० चोट पहुँचाना। चहूँ* - वि० दे० 'चहुँ' । चहूँटना - अ० क्रि० सटना । चटना* - स० क्रि० दे० 'चपेटना'; निचोड़ना चहेता - वि० प्यारा, प्रेमपात्र । [स्त्री० 'चहेती' ।] होड़ (र) ना + - स०क्रि० रोपना; सँभालना । चाँइयाँ - वि० धूर्त, ठग । चाहूँ - वि० उचक्का, धूर्त, चालाक; गंजा । पु० ठग । स्त्री० चसकना - चाँदा सिरका एक रोग जिसमें फुंसियाँ होती और बाल गिरते हैं। चाँक- पु० काठकी थापी जिससे खलियानमें अन्नकी राशि गोठते हैं; अन्नकी राशि गोंठनेका चिह्न । चाँकना - स० क्रि० गोंठना, रेखाओंसे घेरना । चाँगला - वि० धूर्त, चालाक; हृष्टपुष्ट । चाँचर, चाँचर - स्त्री० होली के अवसरपर गाया जानेवाला एक राग, फाग; परती जमीन । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चांचल्य - पु० [सं०] चंचलता, चपलता । चाँचु - स्त्री० चोंच । चाँटा पु० चपत, तमाचा; * चींटा । चाँटी-स्त्री० कारीगरोंपर लगनेवाला एक पुराना कर; तबले के ऊपर किनारेपर लगायी जानेवाली मगजी; इस मगजीपर आघात होनेसे निकलनेवाला शब्द; * चींटी । चाँड़- स्त्री०भारी आवश्यकता, गरज; बेकली, प्रबल इच्छा - 'तोरे धनुष चाँड़ नहिं सरई' - रामा०; दबाव; लकड़ीकी पटरी या पाटन जिसपर सामान आदि रखा जाय; थूनी । वि० प्रबल, उग्र, प्रचंड, श्रेष्ठ; तृप्त, अघाया हुआ । चाँड़ना - स० क्रि० रौंदना; तोड़-फोड़कर नष्ट करना; खोद डालना । चांडाल - पु० [सं०] अंत्यज-वर्ग में सबसे नीची मानी गयी जाति, डोम; निषाद; क्रूर, नीच कर्म करनेवाला व्यक्ति । चाँडिला* - वि० चंड प्रचंड प्रबलः उद्धत; बहुत बढ़ा हुआ । चाँद - पु० चंद्रमा, एक गहना जो दूजकी चाँदको शकलका होता है; चाँदमारीका निशान; कलाईपर गोदा जानेवाला एक तरहका गोदना । स्त्री० चाँदिया, खोपड़ी । - तारा- पु० बारीक मलमल जिसपर चाँद और तारेकी शकलकी बूटियाँ बनी होती है; एक तरहकी पतंग | - बीबी - स्त्री० आदिलशाहकी विधवा पली जिसने अकबरकी सेनाके अहमदनगर घेर लेनेपर असाधारण शौर्य और रणकौशलका परिचय दिया । - मारी - स्त्री० बंदूक से निशाने लगानेका अभ्यास । -सूरज-पु० एक गहना जो चोटीमें गूँथकर पहना जाता है; बादलेके बने चाँद और सूरज जो कामदार टोपियों में लगाये जाते हैं । मु० - का कुंडल, - का मंडल - हलकी बदलीपर प्रकाश पड़ने से चंद्रमाके चारों ओर बना हुआ घेरा। -का टुकड़ा - अति सुंदर । - को गहन लगना- अच्छी, सुंदर वस्तुमें दोष होना । - गंजी हो जाना-इतने जूते लगना कि चाँदपर बाल न रह जायें। - चढ़ना-नया महीना चढ़ना; ऋतुका बीत जाना; गर्भ रहना (मुसल० स्त्रियाँ) । • - पर ख़ाक या धूल उड़ाना-निर्दोष व्यक्ति या वस्तु में दोष निकालना; साधुचरित जनपर दोष लगाना। - पर थूकना - साधुचरित या महान् पुरुषपर लांछन लगाकर स्वयं लांछित होना । चाँदना - पु० उजाला, रौशनी; चाँदनी । मु० - होनापौ फटना, सबेरा होना । चाँदनी - स्त्री० चाँदकी रोशनी, ज्योत्स्ना; फर्शपर बिछाने - की लंबी-चौड़ी सफेद चादर; छतगीर; गुलचाँदनी । चाँदा - पु० दूरबीनका लक्ष्य स्थान; भूमिकी एक माप कोण बनानेका चाँदकी शकलका आला । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy