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जाई-जात्रा जाई-स्त्री० कन्या चमेली।
जाटू-स्त्री० जाटोंकी बोली, बाँगड़ । जाक*-पु० यक्ष ।
जाठ-पु० कोल्हूकी कूँडीमें रहनेवाला लकड़ीका गोल चिकना जाकड़-पु० नापसंद होनेपर लौटा देनेकी शर्त पर खरीदा | बल्ला जिसके घूमनेसे पेरनेकी क्रिया होती है। तालाबके हुआ सौदा (देना, लेना)। -बही-स्त्री० वह बही जिसमें | बीचमें गाड़ा हुआ बला। जाकड़ विक्रीका ब्योरा या याददाश्त लिखी जाय । जाठर-वि० [सं०] जठर-पेट-संबंधी; जठरसे उत्पन्न । जाखिनी*-स्त्री० दे० 'यक्षिणी' ।
जाठराग्नि-स्त्री० [सं०] जठराग्नि । जाग-स्त्री० जागनेका भाव, जागरण; * जगह, स्थान । जाड़*-पु० दे० 'जाड्य' । * पु० यश।
जाड़ा-पु० शीतकाल-हेमंत और शिशिर ऋतुएँ, सरदी, जागता-वि० जागता हुआ अपनी शक्तिका परिचय देने- | ठंड (पड़ना, लगना) । मु०-खाना-जाड़ेका कष्ट सहन वाला, तेजस्वी, प्रकट, प्रत्यक्ष ।
करना। जागतिक-वि० [सं०] जगतसंबंधी, सांसारिक ।
जाड्य-पु० [सं०] जडता; निश्चेष्टता; मूर्खता; ठंढ। जागना-अ० क्रि० नींदका त्याग करना; जगा हुआ होना; जात-वि० [सं०] जनमा हुआ, जना हुआ; उत्पन्न; प्रकट, फलदायक होना (भाग्य, नसीब); सजग होना; चेतना: व्यक्त । पु० जन्म; बेटा वर्ग; समूह; प्राणी।-कर्म(न)सक्रिय, प्रबुद्ध होना, उठना; बढ़ना; चमकना, प्रदीप्त पु०,-क्रिया-स्त्री० पुत्रजन्मके अवसरपर किया जानेवाला होना; * उभरना, प्रसिद्ध होना।
एक संस्कार । -रूप-वि० सुंदर । पु० सोना; धतूरा । जागबलिक*-पु० दे० 'याज्ञवल्क्य' ।
-वेदा (दसू)-पु० अग्नि; सूर्य; चित्रक; परमेश्वर । जागरण-पु० [सं०] जगना; जाग; जगा हुआ होना; जात-स्त्री० दे० 'जाति'। -पति-स्त्री० बिरादरी ।
भजन-कीर्तन आदि करते हुए रात बिताना, रतजगा । जात-स्त्री० [अ०] वस्तुतत्व, स्वरूप; स्वभाव; देह व्यक्ति जागरन*-पु० दे० 'जागरण'।
व्यक्तित्व प्रकार । जागरित-वि० [सं०] जागता हुआ, जाग्रत् ।
जातक-पु० [सं०] नवजात शिशु, बच्चा; भिक्षुः फलित जागरूक-वि० [सं०] जागता हुआ; जागरणशील; स्व- ज्योतिषका वह अंग जिससे नवजात शिशुका शुभाशुभ कर्तव्यके विषय में सावधान ।
कहा जाता है। जातकर्म; एक जैसी वस्तुओंका संग्रह; वह जागरूपा-वि० जागता हुआ(देवता, तेज); प्रत्यक्ष, स्पष्ट । बौद्ध ग्रंथ जिसमें बुद्ध के पूर्व जन्मोंकी कथाएँ लिखी है। जागर्ति-स्त्री० [सं०] जागरण ।
जातना, जातनाई*-स्त्री० दे० 'यातना' । जागा*-स्त्री० दे० 'जगह' ।
जाता-स्त्री० [सं०] लड़की। जागी-पु० बंदी, भाट ।
जाति-स्त्री० [सं०] जन्म, उत्पत्ति, वंश, गोत्र, जीवश्रेणी जागीर-स्त्री० [फा०] वह जमीन जो राज्यकी ओरसे कुल, वर्ण या योनिका भेद सूचित करनेवाला वर्ग; वर्ण; किसीको किसी विशेष सेवाके पुरस्काररूपमें दी गयी हो; वंश, बनावट, देश-भेद आदिकी दृष्टिसे किया गया मानववह जमीन जो गाँवके नाई, कहार, कुम्हार आदिको समाजका विभाग (रेस); हिंदुओंके विभिन्न वर्गों के अंतर्गत उनकी सेवाके बदले में बिना लगान जोतनेको दी गयी हो। परस्पर रोटी-बेटीका संबंध रखनेवाला और सामान्यतः एक -खिदमती-स्त्री० सेवा-विशेषके लिए दी हुई जागीर । ही धंधा करनेवाला जन्मकृत जनसमुदाय; वर्गविशेषके -दार-पु० जिसे जागीर मिली हो; सरदार, सामंत । विभिन्न व्यक्तियों में पाया जानेवाला समान धर्म (न्या०); -दारी-स्त्री० जागीरदारका पद या जागीरदार होनेका | छोटा आँवला, चमेली; जावित्री; जायफल; स्वर-सप्तक । भाव; रईसी।
-कोश,-कोष-पु० जायफल ।-च्युत-वि० स्वजातिसे जागीरी*-स्त्री० दे० 'जागीरदारी'।
अलग किया हुआ। -पत्र,-पर्ण-पु०,-पत्री-स्त्री० जागृति-स्त्री० दे० 'जाग्रति ।
जावित्री। -पाँति-स्त्री० [हिं०] जाति-उपजाति, जातिजाग्रति-स्त्री० जागरण, जाग्रत् होनेका भाव ।
वर्ण ।-फल-पु० जायफल । -भ्रंश-पु० जातिभ्रष्टता, जाग्रत्-वि० [सं०] जागता हुआ; सजग, सावधानः | जातिच्युति । -भ्रष्ट-वि० जातिच्युत । -वाचक-वि० प्रकाशमान । पु० वह अवस्था जिसमें जीव शब्द, स्पर्श जाति बतानेवाला (संज्ञा)। -संकर-पु० दो जातियोंका आदि विषयोंको ग्रहण करे ।-स्वप्न-पु० जागतेका सपना, मिश्रण, दोगलापन ।-स्मर-वि० जिसे अपने पूर्व जन्मकल्पनासृष्टि ।
का वृत्तांत याद हो।-हीन-वि०नीच जातिका जातिच्युत। जाचक-पु० दे० 'याचक' ।
जाती-स्त्री० [सं०] चमेली; मालती; छोटा आँवला; जायजाचकता*-स्त्री० याचकवृत्ति, भिखमंगी।
फल । -कोश,-कोष,-फल-पु० जायफल ।-पत्रीजाचना*-स० कि० माँगना; भीख माँगना ।
स्त्री० जावित्री। जाजम-स्त्री० दे० 'जाज़िम'।
जाती-वि० [अ०] व्यक्तिगत, निजी, अपना; वस्तुगत । जाजरा*-वि० जीर्ण, जर्जर ।
जातीय-वि० [सं०] जाति-संबंधी; जातिका । जाज़िम-स्त्री० [तु०] दरीके ऊपर बिछानेकी छपी चादर। जातीयता-स्त्री० [सं०] जातिविशेषसे संबद्ध होनेका भाव, जाज्वल्यमान-वि० [सं०] प्रज्वलित; तेजोमंडित । कौमीयत; अपनी जातिका अभिमान राष्ट्रीयता। जाट-पु० पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, पंजाब, राजपूतानाआदिमें जातुधान*-पु० यातुधान, राक्षस । बसनेवाली एक हिंदू जाति; उस जातिका जन ।
जात्रा-स्त्री० दे० 'यात्रा। १८-क
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