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लॉक-लाज -बिगड़ना-खूनका खराब होना। -बोलना-हत्याका लाक्षणिक-वि० [सं०] लक्षणोंको प्रकट करनेवाला; लक्षणस्वयं प्रकट होना। -में नहाना-क्षत-विक्षत होना। संबंधी; लक्षणोंको जाननेवाला; लक्ष्यार्थवाला; गौण; -लगा(मल)कर शहीद होना-थोड़ा काम करके बड़ा | पारिभाषिक । पु० लक्षण पहचानने, जाननेवाला । काम करनेवालों में अपनी गणना करना। -सफेद हो | लाक्षा-स्त्री० [सं०] एक तरहका लाल रंग लाख, लाह जाना-सहानुभूति या दयाका न रहना।
एक कीड़ा जिससे लाल रंग तैयार किया जाता है। लाक*-स्त्री० लंक, कमर, कटि; तुरंतकी कटी हुई फसल । -गृह-पु० लाखका घर जिसे दुर्योधनने पांडवोंको लाँग-स्त्री० धोतीका वह सिरा जिसे जंघोंके बीचसे पीछे जीवित जला देनेके लिए वारणावतमें बनवाया था।
ले जाकर कमरमें बंधे हुए फेटेमें खोंसते हैं, काछ। -रस-पु० महावर, अलक्तक । लाँघना-स० क्रि० डाँक जाना, नाँधना, पार करना । लाख-वि० लक्ष, सौ हजार बहुत अधिक । पु. सी हजारलाँचो-स्त्री० घूस, रिश्वत ।
की संख्या । अ० बहुत, हदसे ज्यादा। स्त्री० पीपल लांछन-पु० [सं०] धब्बा; निशान, चिह्न दोष, कलंक । आदि वृक्षोंपर लगनेवाले एक तरहके कीड़ोंसे बना हुआ लांछना-स्त्री० [सं०] दोष, कलंक; निंदा ।
पदार्थ-विशेष; लाल रंगके छोटे-छोटे की जिनसे लाह छांछनित*-वि० दे० 'लांछित'।
निकलती है। -पती-पु. लखपती । मु०-टकेकी लांछित-वि० [सं०] दोषयुक्त, कलंकित; अलंकृत। बात-बहुत उपयोगी बात । -से लीख होना-सब कुछ लाबा*-वि० दे० लंबा'।
खो बैठना। ला-स्त्री० [सं०] लेने या देनेकी क्रिया। अ० [अ०] न, | लाखना*-सक्रि० लाखसे फूटे बर्तनका छेद बं नहीं, बिना। -इलाज-वि०जिसका इलाज, उपाय न | जान लेना, समझ लेना। हो, असाध्य । -इल्म-वि० विद्यारहित; अनभिज्ञ लाखा-पु० लाखसे बना हुआ एक रंग जिससे स्त्रियाँ बेखबर । -खिराज-वि० (जमीन) जिसपर लगान या होंठ रँगती है; गेहूँ के पौधोंका एक रोग। -गृह-पु० मालगुजारी न देनी पड़े । स्त्री० माफी जमीन । -चार- | दे० 'लाक्षागृह' । वि० विवश, मजबूर; अशक्त, दीन, असहाय । अ० लाखी-वि० मटमैला, धुंधला लाल, लाखके रंगका । पु० लाचार होकर, मजबूरन । -चारी-स्त्री० लाचार होना, लाखकासा, मटमैला लाल रंग; इस रंगका घोड़ा। विवशता, अशक्तता। -जवाब-वि० निरुत्तर; वादमें लाग-* अ० तक, पर्यंत । स्त्री० संबंध, लगाव; प्रेम; हारा हुआ बेजोड़ । -तादाद-वि० अगणित, बेहिसाब । सहारा लगन, धुन, लगावट; उपाय, तरकीब चढ़ा-पता-वि० जिसका पता न हो।-पता चिट्ठीघर-पु० ऊपरी; कौशलपूर्ण स्वाँग (इसमें छुरी,कटारीको पेट,गर्दनमें (डेड लेटर ऑफिस) डाक विभागका वह कार्यालय जहाँ धंसी हुई, आरपार दिखाते हैं); वैर, दुश्मनीजादू, टोना; ऐसे पत्रादि, जिनपर पता लिखना छूट गया हो या जिन- टीका लगानेका चेप, लोशन; भस्म, धातुको फूंककर पर गलत या अपर्याप्त पता लिखा गया हो, खोलकर पढ़े तैयार किया हुआ रस; नेग, नियत धन (जो भाट, नाई, जाते है और उन्हें यथासंभव भेजनेवालेके पास लौटा देनेका ब्राह्मणको दिया जाता है); लगान, भूमिकर; नृत्यका एक प्रयत्न किया जाता है।-परवा,-परवाह-वि० बेपरवा, | भेद; * रसद । -डाँट-स्त्री० होड़ दुश्मनी । बेफिक्र । -परवाई-स्त्री० बेपरवाई। -मज़हब-वि० लागत-स्त्री० किसी चीजकी तैयारीमें लगनेवाला खर्च । जिसका कोई धर्म, मजहब न हो, बेदीन; नास्तिक । | लागना*-अ० क्रि० दे० 'लगना'। -मिसाल-वि० अद्वितीय, बेजोड़। -वबाली-वि०, लागि*-अ० तक, पर्यंत; से, जरिये; हेतु; निमित्त । स्त्री०, पु० दे० क्रममें । -वल्द-वि० निस्संतान, | लागुडिक-वि० [सं०] जो डडेसे लैस हो । पु० प्रहरी । बेऔलाद । -वारिस-वि० (व्यक्ति) जिसका कोई लागू-वि० लगनेवाला; संगत, चरितार्थ होनेवाला। वारिस, उत्तराधिकारी न हो, निगोड़ा, निपूता; लागे*-अ०लिए, वास्ते । (माल) जिसका कोई अधिकारी या दावेदार न हो। लाघव-पु० [सं०] छोटा होना, लघुता; फुर्ती, त्वरा, तेजी; -वारिसी-वि० लावारिस (माल)। -सानी-वि०
अल्पता, कम होना; आरोग्य; नपुंसकता; अविवेक बेजोड़, जिसका सानी न हो। -हल-वि० जो इल न महत्त्वहीनता । * अ० फुर्ती, जल्दीसे; सहज ही। हो सके, कठिन, असाध्य ।
लाधवी*-स्त्री० फुती, जल्दी । लाइ*-स्त्री० अग्नि प्रेमकी लगन ।
लाची-स्त्री० दे० 'इलायची' । -दाना-पु० इलायचीके लाइन-स्त्री [अं०] सतर, पंक्ति; कतार; रेखा; रेलकी
योगसे चीनीकी बनी हुई मिर्च के आकारकी एक मिठाई। सड़क सिपाहियोंका आवास, बारिक ।
लाछन*-पु० लांछन, कलंक । लाई-स्त्री० धानका लावा; भुजिया चावलका लावा | लाछी*-स्त्री० लक्ष्मी।
चुगली, निंदा। -लुतरी-स्त्रीचुगली; चुगलखोरी। लाज-स्त्री० लज्जा, शर्म; प्रतिष्ठा। -वंत-वि० लज्जालाकड़ी, लाकरी*-स्त्री० दे० 'लकड़ी' ।
वान् , हयादार । -वंती,-वती-स्त्री० लजालू । मु० लाकुटिक-वि० [सं०] डंडा धारण करनेवाला। पु० -रखना-आबरू बचाना । -से गठरी होना-लज्जावश पहरेदार सेवक ।
सिकुड़ जाना। -से गड़ जाना या गड़ना-बहुत लॉकेट-पु० [अं०] जंजीर आदिमें शोभाके लिए लगाया ज्यादा शर्मिंदा होना । जानेवाला लटकन ।
| लाज-पु० [सं०] धानका लावा, खील; खस; पानीमें
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