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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org -अन्वेषक अनै*-पु० दे० 'अनय' । अनैक्य - पु० [सं०] एकताका अभाव; बहुत्व; फूट अनैच्छिक - वि० [सं०] जो स्वेच्छा से न किया गया हो; इच्छा के विरुद्ध (इनवालंटरी) | अनोसर - पु० ठाकुरजीको शयन कराना । अनौचित्य - पु० [सं०] औचित्यका अभाव या उलटा । अनौट* - पु० दे० 'अनवट' । अनौद्धत्य - पु० [सं०] उच्छृंखलता या दर्पका अभाव; विन म्रता; शांति; (नदीके पानीका ) ऊँचा न होना । अनौधि* - अ० शीघ्र, बिना देर किये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ -- अ० दूसरी जगह, और कहीं । - था- वि० उलटा विरुद्ध; झूठ । अ० नहीं तो । - पुरुष - पु० सर्वनामका एक भेद; दूसरा आदमी। -पुष्टा - स्त्री० कोयल । - भृता - स्त्री० कोयल । भृत्-वि० दूसरेका पालन करनेवाला | पु० काक | - मनस्क - मना (नस् ), - मानस - वि० जिसका चित्त कहीं और हो । -मातृजपु० दूसरी मातासे उत्पन्न, सौतेला भाई । -संभोगदुःखिता - स्त्री० वह नायिका जो अन्य स्त्रीमें प्रियके संभोग चिह्न देखकर दुःखित हो । अन्यच्च - अ० [सं०] और भी; इसके सिवा । अनैतिक - वि० [सं०] नीति-विरुद्ध । अनैतिहासिक - वि० [सं०] जो इतिहासमें न आया हो या जो इतिहाससे प्रमाणित न होता हो, इतिहास - विरुद्ध । अनैस* पु० अनिष्ट, बुराई; अंदेशा | वि० बुर: । अनैसना* - अ० क्रि० रूठना, अप्रसन्न होना । अनैसा * - वि० अनिष्ट, वुरा । अनैसे* - अ० बुरे भावसे । अन्याय - पु० [सं०] न्यायविरुद्ध कार्य, बे-इंसाफी; अनौचित्य, जुल्म, अत्याचार | अनैहा* - पु० उत्पात मचलना । अनोखा - वि० अनूठा, अद्भुत, अपूर्व; नया, सुंदर । - पन अन्यायी ( यिन्) - वि० [सं०] अन्याय करनेवाला । - पु० विलक्षणता; सुंदरता; नयापन । अन्याय्य - वि० [सं०] न्यायविरुद्ध, अनुचित | अन्यारा* - वि० जो जुदा न हो, अभिन्न; अनोखा; अनीदार, नुकीला; बहुत । अन्याश्रित - वि० [सं०] दूसरेपर अवलंबित | अन्यास* - अ० दे० 'अनायास'; अकस्मात् 'मोको तुम अपराध लगावत कृपा भई अन्यास ' -सू० अन्यून - वि० [सं०] अनल्प, अधिक, बहुत । अनौरस - वि० [सं०] जो औरस - विवाहिता पत्नीसे उत्पन्न अन्येद्युः - अ० [सं०] दूसरे दिन; एक समय । - न हो, अवैध या गोद लिया हुआ (पुत्र) । अनू - उप० [सं०] 'अ' (नञ्) का स्वरादि शब्दोंके पहले लगनेवाला रूप (दे० 'अ') । अन्न- पु० [सं०] खानेकी चीज, भोज्य पदार्थ;पका अन्नः भात; अनाज, धान्य; जल; पृथ्वी सूर्य; विष्णु । वि० अन्य, दूसरा । - कूट- पु० भात या मिष्ठान्नादिका पहाड़ या ढेर; कार्त्तिक शुक्ला प्रतिपदाको होनेवाला एक उत्सव | - जल- पु० दाना-पानी, आब-दाना; स्थानविशेष में रहनेका संयोग । - दा - स्त्री० दुर्गा, अन्नपूर्णा । - दाता (तृ) - वि० अन्न देनेवाला; प्रतिपालन करनेवाला | पु० मालिकों के लिए सेवकों द्वारा प्रयुक्त संबोधन । - दास - वि० भोजनमात्र लेकर काम करनेवाला (नौकर ) । - दोषदूषित अन्न खानेसे होनेवाला रोग इ०; निषिद्ध, अन्न खाने या अग्रा अन्नके प्रतिग्रहसे होनेवाला पाप । - पाक - पु० अग्निपर वा पेटमें खाद्य पदार्थका पकना । - पूर्णा - स्त्री० अन्नकी अधिष्ठात्री देवी, दुर्गाका एक रूप । - प्राशन- पु० बच्चेको पहली बार अन्न खिलानेकी रस्म या संस्कार, चटावन । -शेष-पु० जूठन भूसी-चोकर आदि । - सत्र - पु० वह संस्थान जहाँ साधु-फकीरों, गरीबों- अपाहिजोंको भोजन दिया जाता 1 मु० - जल उठना- रहनेका संयोग या सहारा न होना । अन्नमय-वि० [सं०]अन्नसे बना; अन्नसे भरा । - कोश (प) - पु० वेदांतमें माने हुए पाँच कोशोंमें पहला, स्थूल शरीर । अन्ना - स्त्री० धाय; माता । अन्नोपलब्धि - स्त्री० (प्रोक्यूर मेंट) किसानों, ग्रामीणों आदि से उचित मूल्य पर खाद्यान्न प्राप्त करना, गल्ला - वसूली । अन्य - वि० [सं०] दूसरा, गैर; भिन्न; साधारण; अतिरिक्त, - तः - अ० दूसरेसे; दूसरे स्थानसे ।-तम- वि०बहुतों में से एक; सर्वश्रेष्ठ (?) । - तर - वि० दोमेंसे एक; दूसरा, भिन्न । अन्योक्ति - स्त्री० [सं०] ऐसी उक्ति जो साधर्म्यके कारण कथित वस्तुके अतिरिक्त औरों पर भी घटित हो सके; अर्थालंकारका एक भेद । अन्योन्य - वि० [सं०] परस्पर; एक दूसरेको या पर । पु० अर्थालंकारका एक भेद - प्रजनन पु० (क्रॉसब्रीडिंग) विभिन्न जातिके पशु-पौधोंके पारस्परिक संसर्ग द्वारा उत्पादन कराना । अन्योन्याभाव- पु० [सं०] अभावका एक भेद, किसी एक पदार्थका अन्य पदार्थ न होना । अन्योन्याश्रय- पु० [सं०] एकका दूसरेपर अवलंबित होना, परस्पर कार्य कारण संबंध | अन्वय- पु० [सं०] अनुगमन; संबंध; मेल; अवकाश; वाक्य में पदोंका परस्पर उचित संबंध; आशय; वंश; नियमानुसार यथास्थान रखना; हेतु और साध्यका साहचर्य (न्या० ); कारण कार्यका संबंध । अन्वयार्थ - पु० [सं०] अन्वयसे निकलनेवाला अर्थ | अन्वर्थ - वि० [सं०] अर्थका अनुसरण करता हुआ, यथार्थ; स्पष्ट अर्थवाला | अन्वित - वि० [सं०] युक्त, सहित; ग्रस्त ( शोकान्वित ); संबद्ध; समझा हुआ । अन्वितार्थ- पु० [सं०] ऐसा अर्थ जो अन्वय करनेसे सहज ही समझमें आ जाय । बि० ऐसा अर्थ रखनेवाला । अन्वीक्षण- पु० [सं०] बारीकी से देखना; खोज, अन्वेषण । अन्वीक्षा - स्त्री० [सं०] अन्वीक्षण | अन्वेष, अन्वेषण - पु० [सं०] खोज करना, जाँच-पड़ताल | अन्वेषक - वि० [सं०] अन्वेषण करनेवाला, खोजी । - प्रकाश - पु० (सर्चलाइट) वह तेज प्रकाश जो अँधेरे में किसी भी दिशा की ओर दूरतक इस आशय से प्रक्षिप्त किया जाय कि उससे शत्रुके विमानों या उसकी गतिविधि For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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