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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९ आदिका अथवा भागते हुए या कहीं छिपे हुए चोर आदिका पता चल सके या उस तरफकी सब चीजें साफसाफ देखी जा सकें । अन्वेषण - पु० (रिसर्च) लगातार परिश्रमपूर्वक छानबीन करते हुए ऐतिहासिक बातों तथा अन्य तथ्योंका पता लगाना, गवेपणा, शोध । अन्वेषी (पिन् ), अन्वेष्टा (ष्ट) - वि० [सं०] अन्वेषक । अन्वेष्टव्य, अन्वेष्य - वि० [सं०] अन्वेषणके योग्य । अन्हवाना * -- स० क्रि० नहलाना । अन्हाना * - अ० क्रि० नहाना । अपंकिल - वि० [सं०] बिना कीचड़का, सूखा; निर्मल । अपंग- वि० अंगहीन; लँगड़ा-लूला; अशक्त । अपंडित - वि० [सं०] मूर्ख, निरक्षर, ज्ञानहीन | अप - अ० [सं०] एक उपसर्ग जो वैपरीत्य, वैरुद्धय, बुराई, आधिक्य, निषेध, हीनता, दूषण, विकृति, विशेषता इत्यादिका द्योतन करता है । अपकरण - पु० [सं०] दुर्व्यव्यहार; दुष्कर्म | अपकर्ता (तृ) - वि० [सं०] अपकार करनेवाला, हानि या बुराई करनेवाला; शत्रुभाव रखनेवाला । अपकर्म (न्) - पु० [सं०] बुरा काम, दुष्कर्म, ऋणपरिशोध । अपकर्ष - पु० [सं०] नीचे की ओर खींचना या लाना; अवनति, गिराव; हीनता; क्षय; अपमान; अपयश । अपकर्षक- वि० [सं०] अपकर्ष करनेवाला । अपकर्षण- पु० [सं०] दे० ' अपकर्ष' । अपकाजी * - वि० स्वार्थी, खुदगर्ज । अपकार - पु० [सं०] उपकारका उलटा; बुराई; अहित; अनिष्टचिंता; नुकसान; शत्रुताः अपमान; अत्याचार; नीच कर्म । अपकारक, -कारी (रिन्) - वि० [सं०] अपकार करनेवाला । अपकारीचार* - वि० अपकार करनेवाला; विघ्नकर्ता । अपकीरति* - स्त्री० दे० 'अपकीर्ति' । अपकीर्ति - स्त्री० [सं०] अपयश, बदनामी । अपकृत - वि० [सं०] जिसका अपकार किया गया हो । अपकृति - स्त्री० - अपकृत्य- पु० [सं०] अपकार । अपकृष्ट - वि० [सं०] हटाया हुआ; नष्ट किया हुआ; गिराया हुआ; घटिया, खराब । अपक्रम - पु० [सं०] पीछे हटना; भागना, बाहर चले आना; भागने की सीमा; व्यतीत होना ( समयका ) । वि० क्रमरहित, जिसका क्रम ठीक न हो । अपक्रमण - पु० [सं०] दे० 'अपक्रम' | अपक्रमी (मिनू ) - वि० [सं०] जानेवाला, हटनेवाला । अपक्रिया - स्त्री० [सं०] हानि, क्षति; अहित; द्रोह, दुष्कर्म; ऋणपरिशोध । अन्वेषण - अपण्य | अपक्षय- पु० [सं०] छीजना, हास; नाश । अपखंड - पु० (गमेंट) किसी वस्तुका टूटा हुआ हिस्सा, अपूर्ण भाग; विनष्ट या लुप्त वस्तुका बचा हुआ अंश । अपगत- वि० [सं०] गया हुआ; बीता हुआ; भागा हुआ; तिरोहित; मृत । अपगति - स्त्री० [सं०] अधोगति; दुर्गति; दुर्भाग्य । अपगमन - पु० (मिस्कैरिज ) ( किसी पत्रादिका) भूलसे अन्यत्र चले जाना, निर्दिष्ट व्यक्तिके पास न पहुँचकर अन्य किसी के पास चले जाना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपगुण - पु० [सं०] दोष, ऐब । अपघात - पु० [सं०] रोकना; हत्या; आघात या दुर्घटनासे मरना; धोखा | अपघाती (तिन् ) - वि० [सं०] अपघात करनेवाला | अपच पु० [सं०] वह जो पाककार्य कपने में असमर्थ हो; वह जो अपने लिए पाककार्य न करे । [हि०] बदहजमी । अपचक्र - पु० (विशस सर्किल) ( दलीलों आदिका) ऐसा दुश्चक्र जिसमें दोष भरे पड़े हों तथा जिसमेंसे बाहर आ सकना कठिन हो; विषम वृत्त । अपक्रोश - पु० [सं०] निंदा करना, अपशब्दका प्रयोग करना । अपक्व - वि० [सं०] कच्चा; न पकाया हुआ; अनभ्यस्त । अपक्ष - वि० [सं०] बिना पंखका; जिसके साथी समर्थक न हों । पु० वह जो राज्यके पक्षमें न हो; वह जिससे राज्यको कोई लाभ न हो; वह जिसका किसीसे मेल-जोल न हो। -पात-पु० पक्षपातका अभाव । - पाती (तिन) - वि० पक्षपात न करनेवाला, निष्पक्ष । ३-क अपचय - पु० [सं०] हानि; छीजना; व्यय; असफलता; दोष । अपचरण - पु० (ट्रेसपासिंग ) अपनी सीमा या अधिकारक्षेत्र से आगे बढ़कर दूसरेकी ऐसी सीमा या अधिकार क्षेत्रमें चले जाना जहाँ प्रवेश करना अनुचित हो; अनधिकार-प्रवेश । अपचार - पु० [सं०] दोषः अनुचित कर्म; दुराचार, अपथ्य । अपचारक, अपचारी - पु० (ट्र ेसपासर) दूसरेकी सीमा या अधिकार क्षेत्र में अनधिकार प्रवेश करनेवाला । अपचारी (रिन्) - वि० [सं०] दुष्कर्मी; बुरा, नीच; पृथक् होनेवाला; अविश्वासी । पु० दे० 'अपचारक' । अपचाल* - स्त्री० कुचाल, खोटाई । अपची - स्त्री० [सं०] एक रोग जिसमें गलेकी ग्रंथियाँ बढ़ जाती हैं । अपच्छी - वि० विपक्षी, वैरी; बिना पंखका अपछरा* - स्त्री० दे० 'अप्सरा' । अपजस * - पु० अपयश, बदनामी; लांछन । अपजात-पु० [सं०] कपूत; वह पुत्र जो अपने मातापितासे गुणादिकी दृष्टिसे हीन हो । वि० (डिजेनरेट) जो जाति, वंश आदिके श्रेष्ठ गुणों या विशेषताओंसे रहित हो गया हो; जो ऊँचे वंश, परम्परा आदिसे स्खलित होकर क्षुद्र या निकृष्ट श्र ेणीका बन गया हो । अपटु - वि० [सं०] अकुशल, कच्चा, बोदा; सुस्त, अस्वस्थ अपट्टमान* - वि० न पढ़ने योग्य, अपाट्य । अपठ- वि० [सं०] अपढ़, निरक्षर । अपठित - वि० [सं०] अपढ़; जो पढ़ा न गया हो । अपडर* - पु० डर, शंका । अपडरना * - अ० क्रि० डरना, शंकित होना । अपढ़ाना * - अ० क्रि० खीचातानी करना, झगड़ना । अपड़ाव * - पु० झगड़ा, तकरार, खींचातानी, 'जन्महिते अपड़ाव करत है गुनि गुनि हृदय कहै ' - सू० अपढ़-वि० बेपदा, अशिक्षित । अपण्य-वि० [सं०] न बेचने योग्य; जिसका बेचना For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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