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श्रीमंत-श्रोतव्य
७८८ -रमण-पु० विष्णु । -रवन*-पु० विष्णु । -राग- ध्वनि वेदस्थित विषय, वेद-वर्णित वस्तु । -वेध-पु. पु० छः रागोंमेंसे तीसरा राग । -राम-पु० दशरथ पुत्र कर्णवेध संस्कार, कनछेदन । -सुख-वि० कानोंके लिए राम ।-वत्स-पु० विष्णु, विष्णुके वक्षस्थलपर बना भृगुके सुखद । पु० श्रवणेंद्रिय द्वारा प्राप्त आनंद, संगीत आदि लात मारनेका चिह्न । -घर-पु.विष्णु । -वल्लभ- द्वारा मिली कर्ण तृप्ति । -सुखकर,-सुखद-वि० कर्णपु० विष्णु; जो व्यक्ति लक्ष्मीका प्रिय है, धनी व्यक्ति। मधुर, श्रवणानंददायक । -स्मृति-स्त्री० वेद और धर्म-सहोदर-पु० (समुद्र-मंथनमें लक्ष्मीके साथ उत्पन्न शास्त्र । -हर-हारी(रिन्)-वि० श्रवणेंद्रियको आकृष्ट होनेवाला) चंद्रमा। -हत-वि० सौंदर्यहीन; कांतिहीन । करनेवाला ( जैसे-संगीत आदि)। -हरि-पु० विष्णु ।
श्रत्य-वि० [सं०] श्रवणीय, सुना जाने योग्य; विश्रुत, श्रीमंत-वि० धनी, लक्ष्मीवान्, सौंदर्य-शाली। पु० एक विख्यात । शिरोभूषण; सीमंत देश, माँग ।
श्रुत्यनुप्रास-पु० [सं०] अनुप्रासका एक भेद, जिसमें श्रीमती-स्त्री० [सं०] राधिकाः स्त्रियोंके नामके पूर्व जोड़ा मुखके एक ही स्थानसे उच्चरित होनेवाले व्यंजनोंकी कई जानेवाला आदरसूचक शब्द: पुरुषोंके नामके पूर्व आदर- बार आवृत्ति हो। सूचनार्थ लगाये जानेवाले 'श्रीमान्' शब्दका स्त्रीलिंग रूप श्रुवा-स्त्री० [सं०] सुवा। जिससे उनकी पत्नीका बोध होता है। पत्नी।
श्रयमाण-वि० [सं०] जो सुना जाय; सुना जाता हुआ। श्रीमान् (मत्)-वि० [सं०] शोभायुक्त; धनी, संपत्ति- | श्रेणि-स्त्री० [सं०] विच्छेद-रहित पंक्ति, शृंखला; रेखा; शाली, संपन्न, गौरवशाली। पु० विष्णु; शिव; कुबेर __ अवली; समूह, संघ, दल, वर्ग; एक ही व्यापार, शिल्पपुरुषोंके नामके पूर्व आदर-सूचनार्थ लगाया जानेवाला | कार्य आदि करनेवालोंका संघटन, संघ, समूह; जल-पात्र । शब्द ।
-बद्ध-वि० दे० 'श्रेणीबद्ध। श्रील-वि० [सं०] शोभायुक्त; जो अश्लील न हो। श्रेणिका-स्त्री० [सं०] तंबू । श्रीवंत*-वि० श्रीमंत, श्रीमान् ।
श्रेणी-स्त्री० [सं०] दे० 'श्रेणि'।-धर्म-पु० किसी संप्रदाय, श्रीश-पु० [सं०] लक्ष्मीपति विष्णु ।
वर्ग, दल आदिके नियम; व्यापारिवर्गकी रीति, इसका श्रत-वि० [सं०] सुना हुआ, आकर्णित; विश्रत, प्रसिद्ध । नियम ।-पाद-पु० श्रेणी-प्रधान राष्ट्र, जनपद ।-बद्धपु० परंपरासे सुनकर रक्षित वेद, शास्त्र।:-कीर्ति-स्त्री० वि० एक पंक्ति में स्थित; एक शृंखलामें बँधा हुआ दलजनकके भाई कुशध्वजकी कन्या जिसका विवाह शत्रुघ्नसे बद्ध । -भुक्त-वि० श्रेणीके बीच आया, मिला हुआ, हुआ था। -शील-वि० जिसका शील, सदाचार विश्रुत, | श्रेणीबद्ध । प्रसिद्ध हो।
श्रेणीकरण-पु० [२०] क्रमसे सजाने, लगानेका कार्य; श्रताध्ययन-पु० [सं०] वेदका अध्ययन ।
अलग-अलग श्रेणियोंमें बाँटना, वर्गीकरण । श्रुतानुश्रत-पु० [सं०] (हियरसे) बहुतोंसे सुनी हुई बात, श्रेणीकृत-वि० [सं०] क्रमसे लगाया हुआ, वगीकृत । गप्प, किंवदंती। वि० बहुतोंसे सुना हुआ; इधर-उधर श्रेय (स)-पु०[सं०] धर्म; मुक्ति (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जिसकी चर्चा हो। -साक्ष्य-पु० (हियरसे एव्हीडेंस) अर्थात् चतुर्वर्गको भी श्रेय कहा गया है); शुभ, मंगल; विभिन्न लोगोंसे सुनी हुई बातोंपर आधारित साक्ष्य। | यश; सुख: पुण्य (श्रेयान् )। वि० अपेक्षाकृत अच्छा, श्रति-स्त्री० [सं०] सुननेकी क्रिया; कान; शब्द, ध्वनि; बेहतर श्रेष्ठ, उपयुक्त हितकर, मंगलमय । वेदः शान; किंवदंती, जनश्रुति; श्रवण नक्षत्र, चारकी | श्रेयस्कर-वि० [सं०] मंगलकारी, कल्याणकर । संख्या अनुप्रासका एक प्रकार; एक स्वरसे दूसरे स्वरपर | श्रेष्ठ-वि० [सं०] सबसे अच्छा, अति उत्तम, उत्कृष्ट; सर्वजाते समयका अत्यंत सूक्ष्म स्वरांश (संगीत)। -कटु- प्रधान वयमें सबसे बड़ा, ज्येष्ठ; अत्यंत प्रिय । वि० कर्णकटु, कानोंको खटकने, कठोर लगनेवाला । पु० श्रेष्ठा-स्त्री० [सं०] (सौंदर्य, शील आदिमें) उत्तम नारी। एक काव्य-दोष जो कर्णकटु वर्णों, 'ट'वर्ग आदिके प्रयोगसे | श्रेष्ठाश्रम-पु० [सं०] गृहस्थाश्रम (इस आश्रमको श्रेष्ठ इसआ जाता है।-कीर्ति-स्त्री० दे० 'श्रुतकीर्ति' ।-गम्य,- | लिए कहा गया कि इसमें रहकर तीनों आश्रमोंका पालनगोचर-वि. जो सुना जा सके, श्रवणेंद्रियग्राह्यः श्रुत, पोषण हो सकता है); गृहस्थ । सुना हुआ। -पथ-पु० कर्ण-कुहर, श्रवणेंद्रियका मार्ग; | श्रेष्ठी (ष्ठिन् )-पु० [सं०] व्यापारियों, व्यवसायियों, वेद-मार्ग, वेद-विहित पथ । -प्रमाण-पु. वेदका प्रमाण, | बनियोंका प्रधान सेठ, अत्यंत धनी व्यक्ति । वेदकी स्वीकृति । -भाल-पु. चतुरानन, ब्रह्मा । श्रोण-वि० [सं०] पंगु, लँगड़ा । पु०एक रोग; *शोण,लहू । -मंडल-पु. कानका बाहरी घेरा। -मधुर-वि० श्रोणि-स्त्री० [सं०] कटि, कमरः नितंब । -सूत्र-पु. कानको मीठा लगनेवाला, कर्ण सुखद । -मुख-पु. मेखला; कमरसे लटकती हुई तलवार आदिका बंधन । ब्रह्मा। -मूल-पु. कर्णमूल, कानकी जड़, वेदका मूल | श्रोणित*-पु० दे० 'शोणित'। पाठ, वेद-संहिता । -रंजक-रंजन-वि० कानोंको श्रोणी-स्त्री० [सं०] दे० 'श्रोणि' । आनंद-दायक, कर्ण-मधुर । -लेख-पु० (डिक्टेशन) | श्रोत (स)-पु० [सं०] कर्ण, कान, श्रवणेंद्रिय; इंद्रिय किसीके बोले हुए वाक्योंको सुनकर लिखना या इस तरह (जिनके मार्गसे शरीरके मल तथा आत्मा निकलती है)। जो कुछ लिखा जाय, आलेख, इमला। -विवर-पु० श्रोतव्य-वि० [सं०] श्रवणीय, श्रव्य, जो सुना जाय, कर्णकुहर । -विषय-पु० श्रवणेंद्रियका विषय, शब्द,। सुनने योग्य ।
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