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वियोजन-विरुद्धता छोटी संख्या।
विरहाग्नि-स्त्री० [सं०] दे० 'विरहानल'। वियोजन-पु० [सं०] पृथक् करना; जुदाई; व्यवकलन। | विरहानल-पु० [सं०] विरहकी अग्नि । वियोजित-वि० [सं०] पृथक् किया हुआ; वंचित, रहित । विरहिणी-स्त्री० [सं०] पति, प्रियसे बिछुड़ी हुई नायिका। वियोज्य-वि० [सं०] अलग करने योग्य, जिसे पृथक करना विरहित-वि० [सं०] शून्य, विना परित्यक्ता रहित ।
हो । पु० वह संख्या जिसमेंसे कोई संख्या घटायी जाय । विरही(हिन्)-वि० [सं०] प्रियाके वियोगसे दुःखी विरंग-वि०जिसका रंग अच्छा न हो, बदरंगकई रंगोंका। प्रियासे वियुक्त एकाकी। विरंच, विरंचि-पु० [सं०] ब्रह्मा ।
विरहोत्कंठिता-स्त्री० [सं०] नायकके किसी कारणसे न विरंजन-पु० [सं०] (ब्लीचिंग) रंग उड़ानेका गुण या कार्य, ___ आनेसे दुःखी नायिका।। रंगोंसे रहित बना देना।
विराग-पु० [सं०] रंगका परिवर्तन; रागका अभाव विरंजित-वि० [सं०] जिसका प्रणय, आसक्ति मंद पड़ असंतोष, अरुचि विकर्षण; विरक्ति । गयी हो, रंगोंसे रहित बनाया हुआ।
विरागी (गिन्)-वि० [सं०] चाह, अनुरागरहित, उदा. विरक्त-वि० [सं०] जिसके रंग, स्वभाव आदिमें परिवर्तन | सीन; विरक्त, निर्विषय । हो गया हो; अननुरक्त; उदासीन; खिन्न; आसक्त । पु० विराजना-अ० क्रि० शोभित होना; बैठना रहना । ताल देनेके काम आनेवाले बाजे।
विराजमान-वि० [सं०] प्रकाशयुक्त, चमकता हुआ; विरक्ति-स्त्री० [सं०] भाव आदिका परिवर्तन; विराग वर्तमान, विद्यमान बैठा हुआ। अनासक्ति; उदासीनता; खिन्नता ।
विराजित-वि० [सं०] उपस्थित; सुशोभित; प्रकाशित । विरचन-पु० [सं०] सजानेकी क्रिया; धारण करना; विराट-पु० [सं०] मत्स्य देश ( अलवर, जयपुर आदिका निर्माण, रचना।
भूभाग); मत्स्य देशका राजा; बुद्ध एक ताल (संगीत)। विरचना*-स० क्रि० निर्माण करना, सजाना। भ.क्रि.विराट् (ज)-पु० [सं०] आदि पुरुष, सौंदर्य; कांति; विरक्त होना, उदासीन होना।
क्षत्रिय; शरीर । वि० बहुत बड़ा। विरचयिता(त)-पु० [सं०] निर्माण, रचना करनेवाला। चिराम-पु० [सं०] ठहराव, अंत; विश्राम; वाक्यांश, वाक्य विरचित-वि० [सं०] निर्मित पूरा किया हुआ लिखित । आदिके बाद रुकनेका स्थान । -काल-पु० थोड़ी देर विरजस्-वि० [सं०] दे० 'विरजा (जस्)।
आराम करनेके लिए मिलनेवाली छुट्टी । -संधिविरजस्का-स्त्री० [सं०] गतार्तवा स्त्री।
स्त्री० (ट्रस) किसी विशेष स्थितिमें दोनों पक्षोंकी स्वीकृतिसे विरजा(जस)-वि० [सं०] धूलिरहित, स्वच्छ; विरक्त ।। कुछ समयके लिए युद्ध बंद रखनेकी संधि । स्त्री० गतार्तवा स्त्री।
विरामण-पु० [सं०] ठहराव । विरत-वि० [सं०] निवृत्त जिसने हाथ खींच लिया हो। विराल-पु० [सं०] बिल्ली। कार्य, पद आदिसे हटा हुआ; विरक्त ।
विराव-पु० [सं०] शब्द; चिल्लाहट; हल्ला, शोर विरति-स्त्री० [सं०] विराम; मनका हट जाना, विराग । विरास*-पु० दे० 'विलास' । विरथ-वि० [सं०] रथ रहित ।
| विरासत-स्त्री० दे० 'वरासत' । विरद-पु० प्रसिद्धि, नाम, यश, कीर्ति । वि० [सं०] | विरासी -वि० दे० 'विलासी' । दंतहीन ।
विरिंच, विरिंचन, विरिचि-पु० [सं०] ब्रह्मा, विष्णु; विरदावली-स्त्री० कीर्तिकथा, गुणवर्णन ।
शिव । विरदैत*-वि० नामवर, यशस्वी ।
विरिक्त-वि० [सं०] खाली किया हुआ; निकालकर साफ विरमण-पु० [सं०] रुकना, ठहरना; हाथ खींच लेना, किया हुआ जिसे दस्त कराये गये हों। त्याग करना; रमना।
विरुज-वि० [सं०] पीड़ा देनेवाला; नीरोग । विरमना*-अ० क्रि० रमना, मन लगाना; ठहरना; मुग्ध विरुझना-अ० क्रि० उलझना । होकर रुक जाना; देर लगाना ।
विरुझाना*-स० कि. उलझाना। अ० कि. मचलना; विरमाना*-स० क्रि० मुग्ध करना; फँसा रखना; भ्रममें | उलझना । डाले रखना।
विरुत-वि० [सं०] चिल्लाया हुआ; गूंजता हुआ, शब्दायविरल-वि० [सं०] अवकाश द्वारा पृथक किया हुआ, धना | मान । पु० चिल्लाहटा शोर; गान; गुंजन; कलरव ।
नहीं; कम मिलनेवाला; बारीक थोड़ा, ढीलापतला। विरुद-पु० [सं०] कीर्ति-गाथा, वह कविता आदि जिसमें विरलित-वि० [सं०] जो घना न हो।
किसीके यश आदिका वर्णन किया गया हो; प्रशंसासूचक विरव-वि० [सं०] बिना शब्दका, नीरव ।
पदवी; चिल्लाहट; घोषणा । विरस-वि० [सं०] नीरस स्वादहीन; अप्रिय; जी उबाने- विरुदावली-स्त्री० [सं०] विस्तृत यशोगान ।
वाला; कष्टकर । पु० कष्ट; काव्यके रसका अभाव । विरुद्ध-वि० [सं०] बाधित, रोका हुआ; जिसका प्रतिरोध विरह-पु० [सं०] जुदाई, वियोग; अभाव; अविद्यमानता; | किया गया हो; अवरुद्ध संदिग्ध; खतरनाक; विरोधी, परित्याग । -ज,-जनित,-जन्य-वि० वियोगसे उत्पन्न । प्रतिकूल; शत्रुतापूर्ण; अप्रिय; जो अनुकूल न पड़े (आहार-ज्वर-पु० विरह जन्य ताप ।
आदि); जो मेलमें न हो; असंगत । विरहागि*-स्त्री० दे० 'विरहाग्नि' ।
| विरुद्धता-स्त्री० [सं०] प्रतिकूलता, वैपरीत्य ।
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