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फुरकना-फूंद होनेवाली 'फुर'की आवाज ।
फुलाव-पु० दे० 'पुलावट', स्फीति । फुरकना -स० क्रि० मुँहसे सुरकना (कढ़ी आदि)। फुलावट-स्त्री० फूल नेका भाव; फैलाव, उभार, स्फीति । फुरती-स्त्री० तेजी; चुस्ती; जल्दी।
फुलाचा-पु० चोटी या जूड़ा बाँधनेकी फुदनेदार डोरी। फुरतीला-वि० तेज चुस्त; फुरतीसे काम करनेवाला । फुलिंग-पु० दे० 'रफुलिंग'। फुरना*-अ० क्रि० स्फुटित होना; उद्भूत होना, निकलना फुलिया-स्त्री० छत्राकार सिरेवाला काँटा; कानमें पहनने(शब्द); चमक पड़ना; सत्य होना; फलदायक होना; की लौंग ।। असर करना; पकड़ना।
फुलेरा-पु० फूलोंसे बनायी हुई छतरी । फुरनी दाना-पु० तला हुआ मसालेदार चूड़ा।
फुलेल-पु० खुशबूदार तेल । फुरफुराना-अ० क्रि० इस तरह उड़ना कि परों या डैनोंसे फुलेली-स्त्री० फुलेल रखनेका बरतन । 'फुर-फुर'की आवाज हो। स० क्रि० फुरेरी फिराना; फुलेहरा* -पु० सूत या रेशमका बना बंदनवार; फुलेरा। पंख आदि फड़फड़ाना।
फुलौरा-पु० बेसनकी बड़ी पकौड़ी। फुरफुरी-स्त्री० उड़नेके लिए पंख फड़फड़ाना ।
फुलौरी-स्त्री० बेसनकी पकीड़ी। फुरमान*-पु० दे० 'फरमान' ।
फुल-वि० [सं०] खिला हुआ, विकसित; प्रसन्न । पु० फुरमाना*-स० क्रि० दे० 'फरमाना।
फूल । -नेत्रा-लोचन-वि० जिसकी आँखें हर्षसे खिल .फुरसत-स्त्री० [अ०] अवकाश, खाली वक्त; छुट्टी; इत- रही हैं। मीनान रोगसे मुक्ति।
फुस-स्त्री० बहुत धीमी, अस्फुट आवाज । -फुस-स्त्री० फुरहरना-अ० क्रि० स्फुरित होना; प्रकट होना; फर- बहुत धीमी, साफ सुनाई न देनेवाली आवाज; ऐसे स्वरमें हरना; हिलना; फड़क उठना ।
कही जानेवाली बात, कानाफूसी। पु० फुप्फुस । मु०फुरहरी-स्त्री० परों आदिकी फड़फड़ाहट कंपदे० 'पुरेरी'। फुस करना-सुनाई न देनेवाले स्वर में बोलना । -सेमु०-लेना-काँपना।
बहुत धीमी आवाजसे, चुपकेसे । फुराना-अ० कि० सत्य होना, फुरना। स० क्रि० सत्य फुसकारना*-अ० क्रि० फुफकारना; फूंक मारना। करना, सत्य सिद्ध करना।
फुसकी-स्त्री० बिना आवाजके निकलनेवाली अपान वायु । फुरेरी-स्त्री० सींक या तिनकेके सिरेपर लपेटी हुई रुई। फुसफुसा-वि० जल्दी टूट जानेवाला, कमजोर । जिसपर इन, तेल आदि चुपड़ा जाय; कँपकँपी, कंपयुक्त | फुसफुसाना-अ० क्रि० धीमी, अस्फुट आवाजमें बोलना, रोमांचा फड़कनेका भाव । मु०-लेना-कंपके साथ रोमांच फुसफुस करना । होना; हिलना; सतर्क हो जाना।
फुसलाना-सक्रि० मीठी बातोंसे बहलाना, भुलावा देना। फुर्ती-स्त्री० दे० 'फुरती'।
फुहर*-वि० दे० 'फूहद' । फुर्सत-स्त्री० दे० 'फुरसत'।
फुहार-स्त्री० नन्हीं-नन्हीं बूंदोंकी झड़ी; झांसी, जलकण । फुल-पु० 'फूल'का केवल समासमें व्यवहृत रूपा-कारी- फुहारा-पु० बारीक धार या फुहारके रूपमें पानी ऊपरको स्त्री० गुल-बूटेका काम, गुलकारी; एक कपड़ा जिसपर | फ्रेंकनेवाला यंत्र; इससे निकलनेवाली पारीक धार । रंगीन रेशमसे फूल कढ़े होते है। -चुही-स्त्री० एक फुही-स्त्री० फुहार । छोटी चिड़िया जो फूलोंपर उड़ा और उनका रस चूसा फॅक-स्त्री० होठोंको मिलाकर मुखके मध्य भागसे जोरके करती है।-झड़ी-स्त्री० एक तरहकी आतिशबाजी जिसे साथ निकाली हुई हवा, दम, साँस; किसीपर मंत्रका जलानेपर चिनगारियाँ झड़ती है। झगड़ा लगानेवाली बात प्रभाव डालने के लिए मुँहसे छोड़ी हुई हवा; गाँजे आदि(फुलझड़ी छोड़ना); झगड़ा कराने लगानेवाली स्त्री। का कश। -सा-वि० बहुत कमजोर, दुबला-पतला -वर-पु० एक कपड़ा जिसपर रेशमसे फूल बने होते है। (आदमी) । मु०-निकल जाना-दम निकल जाना, मर -वाई,-वाड़ी-स्त्री० दे० 'फुलवारी' । -वार-वि० जाना ।-मारना-किसीपर फूंककी हवा छोड़ना, फूंकना। प्रफुल्ल, प्रमुदित । पु० रंगीन कागजके बने हुए फूल-पौधे फंकना-स० वि० होठोंको मिलाकर मुखके मध्य भागसे जिन्हें सजावटके लिए बरातके साथ ले जाते हैं । -वाड़ी,
हवा छोड़ना, फूंक गारना; मंत्र पढ़कर मुखी हवा -बारी-स्त्री० फूलोंका (छोटा) बाग, पुष्पवाटिका । छोड़ना; फूंककर बजाना; फू ककी हवासे प्रज्वलित करना, -सुधी-स्त्री० फुलचुही चिड़िया ।
जलाना; भस्म करना; कुश्ता वरना (धातु); बरबाद फुलका-पु० हलकी-पतली रोटी, चपाती; * फफोला ।
करना; फैलाना। मु० फूक-ताप डालना-उड़ा देना, फुलफुला-वि० फूला-फूलासा ।
बरबाद कर देना । फूंक-फूंककर कदम या पाँव फुलाई-स्त्री० सूखेकी बीमारी; बबूलका एक भेद । फुलानेकी | रखना-बहुत सावधानतासे, हर तरहके खतरेसे बचते क्रिया या उजरत ।
हुए काम करना। फुलाना-स० कि० किसी चीजको हवा भरकर फैलानाः | फूका-पु० फूक मारनेकी क्रिया; गायके थनपर लगनेवाली मोटा करना; चापलूसी करके किसीका दिमाग चढ़ाना, दवाएँ लगाकर नलीसे फूंक मारना; फूका मारनेकी गर्व बढ़ाना फूलनेका कारण होना, पुष्पित करना । अ० नली; फोड़ा। क्रि० फूलना।
| पूँद-स्त्री०, फूंदा*-पु० दे० 'फूंदना' । (.द)फुदाराफुलायल*-पु० दे० 'फुलेल'।
| वि० जिसमें फुदना लगा हो।
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