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स्तोत्राह-स्थान स्तुतिपरक ग्रंथ। -कारी ० स्तोत्रका पाठ पु० संभोग, मैथुन । -स्वभाव-पु० स्त्रियोंकी प्रकृति करनेवाला।
खोजा। -हरण-पु० बलात् स्त्रीका हरण कर ले जाना। स्तोत्राह-वि० [सं०] स्तुत्य । '
-हारी(रिन)-पु० स्त्रीका बलात् हरण करनेवाला स्तोम-पु० [सं०] स्तुति, गुणगानयज्ञ समूह, राशि । । पुरुष । स्तोम्य-वि० [सं०] स्तुतिके योग्य ।
स्त्रीता-स्त्री०, स्त्रीत्व-पु. [सं०] स्त्री होनेका भाव, स्तौपिक-पु० [सं०] बुद्ध-द्रव्य, स्तूपमें रखे हुए दंत, अस्थि नारीत्व पत्नीत्व; नारीसुलभ कोमलता, दुर्बलता आदि । आदि अवशिष्ट पदार्थ ।
स्त्रण-वि० [सं०] स्त्री-संबंधी; स्त्रियोंके योग्य, नारीसुलभ स्त्रीद्रिय-स्त्री० [सं०] योनि ।
स्त्रीरत स्त्री द्वारा शासित । स्त्री-स्त्री० [सं०] औरत; पली; मादा पशु; सफेद चींटी, | स्त्र्यागार-पु० [सं०] अंतःपुर । दीमक । -कुसुम-पु० रजःस्राव । -गमन-पु० संभोग, स्त्र्याजीव-पु० [सं०] अपनी या दूसरी स्त्रियोंसे वेश्या. रतिक्रिया। -घातक,-न-वि०किसी स्त्री या पलीकी | वृत्ति कराकर रोजी कमानेवाला। हत्या करनेवाला ।-चरित्र-पु० स्त्रियोंके कार्य।-चित्त- स्थंडिल-पु० [सं०] अनावृत भूमि; यशके लिए साफ और हारी(रिन्)-वि० स्त्रियोंका मन हरण करनेवाला । चौरस की हुई चौकोर जमीन; सीमा । -शायी(यिन्) पु० शोभांजन, सहिजन ।-चिह्न-पु० योनि, स्त्री-संबंधी -वि०, पु० बिना बिस्तरके जमीनपर सोनेवाला। कोई चिह्न । -जन-पु० स्त्रीजाति । -जननी-स्त्री० | स्थ-वि० [सं०] (समासमें) ठहरा हुआ, स्थित; उपस्थित सिर्फ कन्याएँ उत्पन्न करनेवाली स्त्री। -जाति-स्त्री० संलग्न, रत; रहनेवाला । पु० स्थल, स्थान । -पतिस्त्रीवर्ग ।-जित-वि० स्त्रीके वशमें रहनेवाला,जनमुरीद। पु० राजा; शासक; शिल्पी, बढ़ई; मेमार, राजा सारथि । -तंत्र-पु० (आइनैरकी) स्त्री या स्त्रियों द्वारा परिचालित स्थगन-पु० [सं०] छदन, आवृत करना, ढकना; छिपाना; शासन-व्यवस्था । -द्विट(प),-द्वेषी(पिन)-पु. अपवारण; समिति आदिकी काररवाई स्थगित करना स्त्रियोंसे द्वेष करनेवाला, रमणी-द्वेषी। -धन-पु० वह (आधु०)। धन या संपत्ति जिसपर स्त्रीका ही अधिकार हो (जैसे स्थगित-वि० [सं०] ढका हुआ, आवृत; छिपाया हुआ; दहेज आदि)। -धर्म-पु० स्त्रियोंका कर्तव्य; स्त्री-संबंधी | अवरुद्ध कुछ समयके लिए मुलतबी किया हुआ। विधान; मैथुन, संभोग; रजःस्राव । -धर्मिणी-स्त्री० | स्थल-पु० [सं०] दृढ़ और सूखी भूमि; किनारा, कछार; ऋतुमती स्त्री। -नाथ-वि० स्त्री जिसकी स्वामिनी हो। धरती; स्थान; मैदान; भूभाग; ठहरनेका स्थान; ढूह -पण्योपजीवी(विन)-पु० वेश्याएँ रखकर जीविका । विषय (विचार आदिका); पुस्तकका अध्याय परिस्थिति, चलानेवाला। -पर-वि० कामी, लंपट । -पुर-पु० अवसर । -कमल-पु०,-कमलिनी-स्त्री० स्थल पर स्त्रियोंके रहनेका स्थान, अंत:पुर ।-प्रसंग-पु० संभोग । होनेवाला एक पुष्प, स्थलपद्म । -कुमुद-पु० करवीर । -प्रसू-स्त्री० दे० 'स्त्री-जननी'। -प्रिय-वि०स्त्रियोंको -चर,-चारी(रिन्)-वि० जमीनपर रहनेवाला प्यारा । पु० आम; अशोक । -बाध्य-वि० स्त्रीसे परे- (प्राणी)। -च्युत-वि० किसी स्थान या पदसे गिरा या शान किया जानेवाला। -बुद्धि-स्त्री० स्त्रीकी बुद्धि ।। हटाया हुआ। -देवता-पु० स्थानीय देवता । -नीरज -भोगपु० मैथुन । -रंजन-पु० पान। -रज(स)| -पु० स्थलपद्म । -पथ-पु० खुश्की रास्ता। -पम-पु० रजःस्राव ।-रत-वि० स्त्रीके प्रति विशेष अनुरक्त।। पु० मानकच्चू स्थलकमल; छत्रपत्र, तमालक। -पशिनी -रत्न-पु० उत्तम स्त्री लक्ष्मी। -राज्य-पु० स्त्रियों
-स्त्री० दे० 'स्थलकमलिनी' । -मार्ग-पु० खुश्की द्वारा शासित एक महाभारतोक्त प्रदेश दे० 'स्त्री-तंत्र'। रास्ता । -युद्ध-पु. भूभागपर चलनेवाली लड़ाई । -रोग-पु० स्त्रियोंके विशेष रोग। -लंपट-वि० स्त्रीका -वर्म(न)-पु० दे० 'स्थलमार्ग'। -शुद्धि-स्त्री० इच्छुक, कामी । -लक्षण-पु० कोई स्त्री संबंधी चिह्न । भूमिकी सफाई ।-सेना-स्त्री० स्थलपर लड़नेवाली सेना। -लिंग-पु० जननेंद्रिय, योनि, स्त्री-बोधक लिंग | स्थलो-स्त्री० [सं०] शुष्क भूमि; प्राकृतिक भूमि (जैसे (व्या०)। -लोल-वि० दे० 'स्त्री-लंपट'। -लौल्य-१० वनकी); उपत्यका । स्त्रीकी चाह । -वश,-वश्य-वि० स्त्री द्वारा शासित । | स्थलीय-वि० [सं०] स्थल, भूमि-संबंधी स्थानीय। -वित्त-पु० पत्नीसे प्राप्त होनेवाला धन । -वियोग- | स्थलेशय-वि० [सं०] भूमिपर सोनेवाला। पु० ऐसा पु० पत्नीसे पृथक् होना। -विषय-पु० मैथुन । - जीव (वाराह आदि)। व्यंजन-पु० स्त्री होनेके चिह्न-स्तन आदि । -व्रत-पु० स्थविर-वि० [सं०] हढ़, स्थिर, अचल; वृद्ध; प्राचीन अपनी पत्नीके सिवा दूसरी स्त्रीको कामना न करनेका आदरणीय । पु० वृद्ध व्यक्ति; ब्रह्मा; वृद्ध भिक्षु । व्रत, एकपत्नीव्रत । -शेष-वि० जिसमें केवल स्त्रियाँ स्थविरता-स्त्री० [सं०] वृद्धावस्था । बच रही हों। -संग-पु० स्त्रियोंके साथ संपर्क संभोग । | स्थाई-वि० दे० 'स्थायी' । -संग्रहण-पु० किसी स्त्रीका बलात् आलिंगन या भोग स्थाणु-वि० [सं०] दृढ़, स्थिर, अचल । पु० शिव; स्तंभ, करना । -संज्ञ-वि० ऐसे नामवाला जिसका अंत स्त्री- खंभा खूटी; पेड़का हूँठ । वाचक शब्दसे होता हो । -संभोग-पु० मैथुन । - | स्थातव्य-वि० [सं०] ठहरने योग्य, रहने योग्य । संसर्ग-पु० स्त्रियोंका संपर्क; मैथुन । -समागम-पु० स्थान-पु० [सं०] स्थित होने, ठहरनेकी क्रिया, टिकाव, मैथुन । -सुख-पु० संभोग; शोभांजन। -सेवन- ठहराव स्थिति, अवस्था; जगह; पद, आहृदा; संबंध;
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