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अमनैकी-अमावट अमनैकी-स्त्री० अमनैकपन ।
अमली-वि० व्यावहारिक; कामकाजी कार्यरूपमें; नशेअमनोज्ञ-वि० [सं०) चित्तको प्रिय न लगनेवाला, ! बाज । स्त्री० इमली; एक झाड़ीदार पेड़ । अरुचिकर ।
अमलोनी-स्त्र ० नोनी या कुलफा नामक साग । अमर-वि० [सं०] न मरनेवाला; अविनाशी । पु० देवता; अमसूण-वि० [सं०] मुलायम नहीं, कड़ा। पारा; सोना । -कोश (प)-पु० अमरसिंहका बनाया | अमहर-स्त्री० कच्चे आमकी सुखायी हुई फाँक । संस्कृतका प्रसिद्ध कोश ।-गुरु-पु० बृहस्पति ।-तटिनी- अमहल*-वि० जिसका कोई नियत आवास न हो, लास्त्री० देवनदी, गंगा । -तरु-पु० कल्पवृक्ष ।-पति-पु० मकान; व्यापक । इंद्र। -पद-पु० देवपद; मोक्ष। -पुर-पु०,-पुरी- | अमा-स्त्री० [सं०] अमावास्या; चंद्रमाकी १६ वीं कला; स्त्री०इंद्रपुरी, अमरावती ।-बेल-स्त्री० [हिं०] पीले रंगकी घर; आत्मा; अमित होनेकी अवस्था प्रामाणिक न होना । बिना जड़वाली एक लता, अकासबेल । -लोक-पु० अमातना*-स० कि० आमंत्रित करना, न्योतना । देवलोक, स्वर्ग । -वल्लरी,-वल्ली-स्त्री० आकाशलता। अमातृक-वि० [सं०] मातृहीन, बिना माँका । अमरख*-पु० दे० 'अमर्ष' ।
अमात्य-पु० [सं०] मंत्री। अमरता-स्त्री०, अमरत्व-पु० [सं०] अमर होना, देवत्व।। अमान-वि० [सं०] परिमाण-रहित; असीम; अत्यधिक अमरस-पु० अमावट ।
बहुसंख्यक निरभिमान, सरल; जिसका आदर या प्रतिष्ठा अमरांगना-स्त्री० [सं०] देवपत्नी; अप्सरा ।
न हो । पु० रक्षा; अभय शरण; आश्रय; शांति । अमराई-स्त्री० आमका बाग; सुरकानन; उद्यान, 'दान अमानत-स्त्री० [अ०] धरोहर, थाती; थाती रखना; सो विराजै सुरतरु अमराई में'-लछिराम ।
पैमाइशका काम; अमीनका पद; अमन । -खाता-पु० अमराउ*-पु० आमका बाग।
बंक या कोठीका वह खाता जिसमें अमानती रकमें जमा अमराचार्य-पु० [सं०] बृहस्पति ।
की जाय। -खाना-पु. वह जगह जहाँ चीजें अमानतमें अमराधिप-पु० [सं०] इंद्र।
रखी जायें। -दार-पु० अमानत रखनेवाला; अमीन । अमरापगा-स्त्री० [सं०] स्वगंगा ।
-में खयानत-अमानतकी रकम खा जाना। अमरारि-पु० [सं०] देव शत्रु, असुर ।
अमानन-पु०, अमानना-स्त्री० [सं०] अनादर, अवशा। अमरालय-पु० [सं०] स्वर्ग ।
अमाना-अ० कि० अँटना, समाना; * इतराना। अमरावती-स्त्री० [सं०] इंद्रपुरी ।
अमानी(निन)-वि० [सं०] निरभिमान, विनीत । अमरू-पु० एक रेशमी कपड़ा ।
अमानी-स्त्री० वह तामीरी काम जो ठीकेपर न दिया अमरूत, अमरूद-पु० एक प्रसिद्ध फल, बिही।
गया हो; जिस चीजपर कोई रोक-टोक न हो; वह अमरेश, अमरेश्वर-पु० [सं०] देवराज, इंद्र।
भूमि जो सरकारके अधिकारमें हो और जिसका प्रबंध अमर्त्य-वि० [सं०] अनश्वर, मृत्युरहित; दिव्य । पु० सरकारी कर्मचारी करता हो; लगानकी वसूली जिसमें अमर; मानवभिन्न, देवादि । -भुवन-पु० स्वर्ग।
फसल खराब होनेके कारण कुछ छट दी जाय; अंधेर । अमदित-वि० [सं०] जिसका मर्दन न हुआ हो; अपरा- अमानुष-वि० [सं०] मनुष्यसे न होनेवाला; अलौकिक भूत, अपराजित।
अमनुष्योचित; पाशव; पैशाचिक । पु० मनुष्य नहीं, अमर्याद-वि० [सं०] सीमारहित; सीमाका उल्लंघन करने- देवता आदि । [स्त्री० अमानुषी।] वाला प्रतिष्ठारहित।
अमानुषी-वि० अलौकिक पैशाचिक ।। अमर्यादा-स्त्री० [सं०] सीमोल्लंघन; आचरणहीनता; अमानुषीय, अमानुष्य-वि० [सं०] अलौकिक । अप्रतिष्ठा।
अमान्य-वि० [सं०] अमाननीय; न मानने योग्य । अमर्ष-पु० [सं०] असहिष्णुता; क्रोध, कोप; एक संचारी अमान्यन-पु० (डिसमिसल) किसी व्यवहार (मुकदमे),
भाव; अपनी अवज्ञा, तिरस्कार आदिसे उत्पन्न क्षोभ । पुनाय प्रार्थना, दावे आदिका अमान्य, न्यायालयमें अमर्षी (षिन)-वि० [सं०] अमर्ष करनेवाला ।
अविचारणीय, ठहरा दिया जाना। अमल-वि [सं०] मलरहित, स्वच्छ, उज्ज्वल; निष्पाप । अमाप-वि० [सं०] अपरिमित; बहुत अधिक । अमल-पु० [अ०] काम, व्यवहार; कर्म;आचरण; उम्मीद। | अमाय-वि० [सं०] मायारहित; छल-कपटसे रहित; ईमान[हि०] बान, आदत, अधिकार, लत; नशा: प्रभाव; | दार; जो मापा न जा सके । पु० परब्रह्म । समय । -दारी-स्त्री० राज्य; हुकूमत; अधिकार । अमाया-स्त्री० [सं०] छल-कपटका अभाव; अविद्या, भ्रांतिका मु०-दरामद होना-काममें लाया जाना । -पानी अभाव; ईमानदारी। करना-नशा करना, भंग पीना।
अमारग*-पु० दे० 'अमार्ग' । अमलतास-पु० एक पेड़ ।
अमारी-स्त्री० [अ०] दे० 'अम्मारी' । अमलबेत-पु० एक लता; एक खट्टा फल ।
अमार्ग-पु० [सं०] बुरा रास्ता, कुमार्ग; मार्गका अभाव । अमला-स्त्री० [सं०] लक्ष्मी; आँवला । पु० [अ०] कर्म- | अमार्जित-वि० [सं०]जो साफ न किया गया हो; अपरिष्कृत। चारिमंडल; दफ्तर (अमिलका बहुवचन), गिरे हुए मकान- अमाय॑-वि० [सं०] जिसका मार्जन न हो सके। का सामान, काठ-कबाड़ ।
अमाल*-पु० अधिकारी; शासक । अमलिन-वि० [सं०] निर्मल, स्वच्छ, निदोष ।
अमावट-स्त्री० पके आमका रस सुखाकर बनायी हुई मोटी
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