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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रक्षेपण-प्रजल्पन क्षेपक । प्रक्षेपण - पु० [सं०] फेंकना, डालना; ऊपरसे मिलाना । प्रखर - वि० [सं०] तीक्ष्ण, तेज; प्रचंड, उग्र । पु० प्रक्खर । प्रखरता - स्त्री० [सं०] तीक्ष्णता, तेजी, प्रचंडताः उग्रता । प्रख्यात - वि० [सं०] विशेष रूपसे ख्यात, बहुत प्रसिद्ध करना । प्रख्यापित - वि० [सं०] ( प्रोमलगेटेड ) ( वह अध्यादेश, आइप्ति, राज्यादेश आदि) जो सर्वसाधारणको विज्ञापित कर दिया गया हो, जिसकी विघोषणा कर दी गयी हो । प्रगंड - पु० [सं०] बाँह या कुहनीसे कंधेतकका भाग । प्रगट - वि० दे० 'प्रकट' । अ० प्रकट रूपसे । प्रगटन - पु० प्रकट करने या होनेकी क्रिय! | प्रगटना * - अ० क्रि० प्रकट होना; जन्म लेना । स० क्रि० प्रकट करना । प्रचंड - वि० [सं०] अति तीव्र, प्रखर; बहुत क्रोधी; प्रबल; घोर, भीषण; अति तेजस्वी; प्रतापी; असह्य; बड़ा । प्रसन्न, सुखी । प्रख्याति - स्त्री० [सं०] विशिष्ट ख्याति, अधिक प्रसिद्धिः प्रचय, प्रचाय- पु० [सं०] फूल या फल तोड़ना; प्रशंसा; इंद्रियग्राह्यता । समूह, पुंज । प्रख्यापन-पु० [सं०] प्रसिद्ध करना, प्रचार करना; सूचित प्रचरण - पु० [सं०] घूमना-फिरना, विचरण; प्रचारित होना । प्रचरना* - अ० क्रि० प्रचारित होना, फैलना; चलना । प्रचरित - वि० [सं०] जिसका प्रचार हो, प्रचलित; अभ्यस्त । प्रचलन - पु० [सं०] हिलना; चलना-फिरना; चलन, प्रचार प्रचलित - वि० [सं०] हिला हुआ; गतिशील; जिसका चलन हो; चलता हुआ, जारी; जो चल चुका हो । प्रचार - पु० [सं०] घूमना-फिरना; प्रयोग; चलाना; प्रकट होना; किसी वस्तुका व्यापक व्यवहार; आचरण; चलन, रवाज; खेल-कूदका मैदान; चरागाह; गति; मार्ग; किसी वस्तुको प्रसिद्ध करने या फैलानेका कार्य (हिं०) -कार्य० प्रचारका काम (प्रोपेगैंडा ) । प्रचारक - वि०, पु० [सं०] प्रचार करनेवाला; फैलानेवाला । प्रचारना * - स०क्रि० प्रचार करना, फैलाना; ललकारना । प्रचारित - वि० [सं०] चलाया हुआ; जिसका प्रचार किया गया हो; फैलाया हुआ । प्रचारी (रिन्) - वि० [सं०] घूमने-फिरनेवाला प्रकट होनेवाला; बर्ताव करनेवाला । प्रचालन- पु० [सं०] चलानेकी क्रिया । प्रचालित - वि० [सं०] जो चलाया गया हो, प्रचलित किया हुआ । प्रचित - वि० [सं०] (पुष्प आदि) जिसका चयन हुआ हो, प्रगटाना * - स० क्रि० प्रकट करना । प्रगति - स्त्री० [सं०] आगे बढ़ना, उन्नति । -रोध- पु० (सेट बैक) प्रगति या उन्नति में बाधा पड़ना, प्रगतिका रुक जाना। - वाद-पु० समाज, साहित्य आदिकी निरंतर उन्नतिपर जोर देनेका सिद्धांत । - शील- वि० जो प्रगति करता रहे, आगेकी ओर बढ़ता रहे । प्रगर्भ* -- वि० दे० 'प्रगल्भ' | प्रगल्भ - वि० [सं०] प्रतिभावान्; जिसकी बुद्धि अवसर के अनुसार काम कर जाय, प्रत्युत्पन्नमति, साहसी, हिम्मत वर; धृष्ट, ढीठ; बोलने में संकोच न करनेवाला; प्रौढ़; कुशल, दक्ष, उद्दंड, उद्धत; निर्लज्ज; अभिमानी; ख्यात । प्रगल्भता - स्त्री० [सं०] प्रगल्भ होनेका भाव; प्रतिभाशालिता; उत्साह; औद्धत्य; धृष्टता; कुशलता, दक्षता; प्रौढ़ता; निःशंकता; प्रसिद्धि; अध्यवसाय । प्रगल्भा - स्त्री० [सं०] नायिकाका एक भेद, प्रौढा नायिका । प्रगसना * - अ० क्रि० प्रकट होना, व्यक्त होना । प्रगाढ - वि० [सं०] डुबाया हुआ, तर किया हुआ; अत्यधिक; ; गहरा, घनाः कठिन । पु० कष्ट; तपश्चर्या । प्रगासना * - सु० क्रि० प्रकाशित करना; प्रज्वलित करना । प्रगुणता अर्गल - पु० [सं०] (एफिशेंसी बार ) ( सरकारी या अर्द्धसरकारी नौकरी में वेतनवृद्धिके मार्ग में आनेवाली वह बाधा जो आवश्यक योग्यता या दक्षता के अभावसे उत्पन्न हो, दक्षता अर्गल | प्रगृहीत- वि० [सं०] अच्छी तरह ग्रहण किया हुआ । प्रग्रह - पु० [सं०] ग्रहण करना, पकड़ना; नियमन; सूर्यग्रहण अथवा चंद्रग्रहणका आरंभ; बागढोर; तराजू में लगी हुई रस्सी; कोड़ा; किरण भुजा; कैद, बंधन; बंदी, • कैदी; नेता । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ दरवाजेके सामनेका स्थान या छज्जा; ताम्रपात्र; लोहेकी गदा या मुदर । प्रघोर - वि० [सं०] अति धोर । प्रघोष - पु० [सं०] ऊँची ध्वनि, प्रचंड शब्द । चुना हुआ; एकत्र किया हुआ; भरा हुआ; अनुदात्त । प्रचुर - वि० [सं०] बहुत अधिक, प्रभूत; बहुत बड़ा; पूर्ण । - पुरुष - वि० घना बसा हुआ, जनाकीर्ण | प्रचुरता स्त्री०, प्रचुरत्व- पु० [सं०] प्रचुर होनेका भाव, आधिक्य । प्रच्छन्न- वि० [सं०] ढका हुआ, आच्छन्न; छिपा हुआ, गुप्त | पु० चोर दरवाजा; खिड़की । - चारी (रिन्) - वि० गुप्त रूपसे कार्य करनेवाला । प्रच्छादन - पु० [सं०] ढकने, आवृत करनेकी क्रिया या भाव; छिपाने की क्रिया या भाव; उत्तरीय, ओढ़नी । प्रच्छादित- वि० [सं०] ढका हुआ, आवृत; छिपाया हुआ । प्रच्छाय- पु० [सं०] घनी छाया; छायादार जगह | प्रच्छालना * - स० क्रि० धोना । प्रछालना* - मु० क्रि० धोना । प्रजंक * - पु० पलंग | प्रजंत* - अ० दे० 'पर्यंत' । प्रजनन - पु० [सं०] संतान उत्पन्न करना; जन्म; संतान | प्रजनयिता (तृ) - पु० [सं०] उत्पन्न करनेवाला | प्रघट* - वि० दे० 'प्रकट' | प्रघटना* - अ० क्रि० प्रकट होना । प्रघट्टक * - वि० प्रकट करनेवाला । प्रघण, प्रघन, प्रघाण, प्रधान- पु० [सं०] मकानके बाहरी प्रजल्पन- पु० [सं०] इधर-उधर की बात करना; गप करना । प्रजरना * - अ० क्रि० बहुत जलना । प्रजल्प - पु० [सं०] इधर-उधर की बात, गप । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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