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वर्णन - पु० दे० 'वर्णन' ।
वर्णना * - स० क्रि० वर्णन करना । स्त्री० दे० 'वर्णना' | बर्तन, बर्त्तना-स० क्रि० दे० 'बरतना' |
बर्ताव - पु० दे० ' बरताव' ।
बर्तुल - वि० दे० 'वर्तुल' । बर्द - पु० बैल |
बर्न * - पु० दे० 'वर्ण' ।
बर्नना* - सु० क्रि० वर्णन करना । स्त्री० दे० 'वर्णना' । बर्फ़ - स्त्री० [फा०] जमा हुआ पानी; वायुमंडलकी भाप जो सरदीसे घनीभूत होकर रुईके गालेकी शकल में जमीनपर गिरती और फिर जमकर कड़ी हो जाती है; बर्फमें रखकर जमाया हुआ दूध, फलोंका रस आदि । वि० बर्फ : जैसा ठंढा; बर्फसा सफेद ( होना, हो जाना ) । की नदीहिमानी, ग्लेशियर |
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बर्फानी - वि० [फा०] बर्फका; बर्फसे ढका हुआ ( - पहाड़) | बर्फी - स्त्री० दे० 'बरफी' ।
बर्फीला - वि० बर्फ से युक्त; बर्फ से ढका हुआ ।
बर्बटी - स्त्री० [सं०] राजमाष; वेश्या ।
बर्बर - वि० [सं०] असभ्य, जंगली, उजड्ड; अनार्य; धुँधराले | पु० घुघराले बाल, जंगली, असभ्य आदमी; एक कोड़ा; एक मछली; एक सुगंधित तृण; हथियारोंकी आवाज; एक तरहका नृत्य |
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बरी (रि) - वि० [सं०] धुंघराले वालोवाला | बरी - पु० भिड़ |
बर्राना - अ० क्रि० सपना देखते हुए आदमीका बोलना;
बलंदी - स्त्री० दे० 'बुलंदी' |
बल - पु० [सं०] शरीरकी शक्ति, ताकत; ( फोर्स ) वह शक्ति जो स्थिरता अथवा चालको दशाओंको बदल दे या बदलने की प्रवृत्ति पैदा कर दे; स्थूलता; सेना; शुक्र; बलराम इंद्रके हाथों मारा गया एक राक्षस भरोसा, सहारा (हिं०); बलका गर्व; अधपका जौ; कौआ; वरुण वृक्ष । - कर, - कारक - वि० बल देनेवाला । -द-पु० बैल; जीवक; गृह्णाग्निका एक भेद । वि० बल देनेवाला । - दर्प - पु० बलका घमंड - दाऊ - पु० दे० 'बलदेव' । -देव-पु० बलराम; वायु । - द्विट् ( प ) - पु० इंद्र | - नाशन - पु० इंद्र । पति-पु० सेनापति इंद्र | - परीक्षण - पु० (शो-डाउन) परस्पर-द्वेषी दलों द्वारा (अंततोगत्वा) एक दूसरे की शक्ति या बलकी परीक्षा लेने के लिए किया जानेवाला प्रयत्न, अंतिम परीक्षा । - बीर,वीर* - पु० कृष्ण (बलरामके भाई) । - बूता - पु० [हिं०] ताकत, जोर। -भद्र- पु० बलवान् पुरुषः बलराम; नीलगाय; अनंत; लोध । -मद-पु० बलका घमंड ।
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वर्णन -
- राम - पु० कृष्णके बड़े भाई जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, बलदेव, हलधर । -वर्धी ( धिन् ) - वि० बल बढ़ानेवाला । - शाली (लिन् ) - वि० बलयुक्त, बली । - शील* - वि० बलशाली । -सूदन ५० द्र | मु० (किसी के) - पर कूदना - किसीके भरोसे इतराना | बल - पु० पहलू, बगल, करवट, ऐंठन; शिकन; फेरा; टेढ़ापन; लचकः फर्क; घाटा । मु० - आना-शिकन पड़ना; फर्क आना । -उतरना शिकन दूर होना । - खाना- नाराज होना; टेढ़ा होना; लचकना; घाटा सहना । - देना - ऐंठना, मरोड़ना पड़ना-घाटा
होना; फर्क होना; शिकन आना ।
-बला
बलकना, बलगना - अ० क्रि० उमगना, जोश में आना; इतराकर बोलना, बलबलाना ।
बलम * - पु० प्रियतम । बलमीक - पु० बॉबी ।
बलय* -- पु० दे० 'वलय' । बलया * स्त्री० दे० 'वलय' ।
बड़बड़ाना, प्रलाप करना ।
बरें + - पु० भिड़, ततैया एक पौधा जिसका बीज तेलहनके बलथंड - वि० दे० 'बलवंत' । काम आता है । बलवंत - वि० बलवान् ।
बर्हण - वि० [सं०] शक्तिशाली; फाड़ने या खींच लेनेवाला; चकाचौंध पैदा करनेवाला । पु० पन्ना खीचने, फाड़ने की क्रिया ।
बही ( हिन्) - पु० [सं०] दे० 'वहीं' |
बलंद - वि० दे० 'बुलंद' |
बलकल * - पु० दे० 'वल्कल' ।
बलकाना - स० क्रि० उबालना; उमगाना, उसकाना । बलराम पु० [अ०] कफ, श्लेष्मा ।
बल, बलतोड़ - पु० बाल टूटने से होनेवाला फोड़ा । बलना - अ० क्रि० जलना, दहकना । बलबलाना - अ०
क्रि० ऊँटका बोलना; बड़बड़ाना;
उफनना ।
बलवलाहट - स्त्री० बलबलानेका भाव; ऊँटकी बोली | बलभी- स्त्री० सबसे ऊपरकी छतपरकी कोठरी ।
बलवत्ता - स्त्री० [सं०] बलवान् होनेका भाव, शक्तिमत्ता । बलवा - पु० दंगा फसाद, उपद्रवः विप्लव, बगावतः पाँचसे अधिक आदमियोंका मिलकर एक या अधिक आदमियोंको मारना (का० ) 1
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बलवाई - पु० बलवा करनेवाला, विद्रोही, बागी । बलवान् (वत्) - वि० [सं०] शक्तिशाली, बली, ताकतवर । बलवार* - वि० बलवान् ।
बला- स्त्री० [सं०] बरियारा; एक मंत्र जिसके प्रयोगसे योद्धाको भूख-प्यास नहीं लगती; पृथ्वी; दक्षकी एक कन्या; [अ०] कष्ट, आपत्ति, आफत; प्रेतबाधा; रोगव्याधि; बहुत कष्ट देनेवाली वस्तु, व्यक्ति । कश-वि० मुसीबतें उठानेवाला । ( बलाये ) आसमानी - स्त्री० अचाक आनेवाली विपत, दैवकोप । -जान - स्त्री० जीका जंजाल, शंशय । मु० - उतरना - विपत आना, देवकोप होना । (किसीकी) - (कुछ) करे, या करने जाय- नहीं करना । -का- गजवका, हद दरजेका ! (मेरी) - जानेमैं न जानता हूँ, न जाननेकी गरज है। - टलना-कष्ट से, परीशानीसे या तंग करनेवाले आदमीसे छुटकारा मिलना । - पीछे लगना- बखेड़ा साथ होना । - मोल लेना - जान-बूझकर झंझट - इझमेले में पड़ना । (मेरी) - से कुछ परवा नहीं, (मेरी) जूतीकी नोकसे । बलायें लेना- किसीकी बला, रोग-व्याधि अपने ऊपर लेना ।