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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ गुरगा-गुल गुरुविनी*-स्त्री० दे० 'गुर्विणी' । गुरगा-पु० नौकर, टहलू ; चेला; जासूस । गुरू-पु० गुरु । -घंटाल-वि० बहुत चालाक, धूर्त । गुरगाबी-पु० मुंडा जूता। गुरेरना-स० क्रि० घूरना ।। गुरची-स्त्री० बल, सिकुड़न । गुरेरा-* पु० दे० 'गुलेला'; घरनेकी क्रिया, देखादेखीगुरदा-पु० [फा०] शरीरके अंदर रीढ़के दोनों ओर अवस्थित | 'अंत कंतसों भयो गुरेरा'-प० । अंग जिनका काम आहारसे पेशाबको अलग करना और | गर्मा-प० दे० 'गरगा'। खूनसे बेकार 'नत्रजनीय' द्रव्यको निकालकर उसे साफ | गुर्ज-पु० [फा०] गदा; बुर्ज.। -बरदार-पु० गदाधारी करना है, वृक्क; हिम्मत, जीवट । सैनिक । -मार-पु. एक तरहके मुसलमान फकीर जो गुरबिनी*-स्त्री० दे० 'गुविणी' । हाथमें लोहेका गुर्ज लिये रहते हैं और भिक्षा न पानेपर गुरवी*-वि० घमंडी। अपने सिरपर मार लेते हैं, मुँडचिरा । गुरसी -स्त्री० अँगीठी, गोरसी । गुर्जर-पु० [सं०] गुजरात देश; गुजरातका रहनेवाला । गुराई*-स्त्री० दे० 'गोराई'। गुर्जरी-स्त्री० [सं०] गुजरात देशकी स्त्री; एक रागिनी । गुराब-पु० तोप लादनेकी गाड़ी। गुर्दा-पु० दे० 'गुरदा'; * एक तरहकी छोटी तोप । गुरिद*-पु० गुर्ज, गदा । गुर्राना-अ० कि० (कुत्ते-बिल्लीका) क्रोधमें मुँह बंद करके गुरिया-स्त्री० छोटी गोली; मनका, मालाका दाना; (मांस भारी आवाज निकालना; (ला०) क्रोधसूचक आवाजमें आदिका) छोटा टुकड़ा, बोटी । बोलना। गुरिल्ला-पु० दे० 'गोरिल्ला'; छापामार दस्तेका सैनिक। गर्विणी, गुर्वी-स्त्री० [सं०] गर्भवतीस्त्री; गुरुपत्नी; श्रेष्ठ स्त्री। गुरीरा-वि० सुंदर; माधुर्यमय, मीठा । गुल-पु० [फा०] गुलाबका फूल; फूल; कपड़े आदिपर वना गुरु-वि० [सं०] भारी, वजनदार; बड़ा; देरमें पचनेवाला; हुआ पुष्पाकार बूटा; गोल निशान; जलने या दागनेका पूज्य महत्; कठिन; दीर्घ या दो मात्राओंवाला (वर्ण, निशान; बत्तीका सिरा जो बिलकुल जल गया हो; फूलके ताल); प्रिय; दर्पपूर्ण (उक्ति); दुर्दम; शक्तिशाली। पु० आकारकी कार चोबीकी बनी हुई बड़ी टिकली; हंसते समय पिता; पूज्य पुरुष; बुजुर्ग; शिक्षक, विद्या देनेवाला, कोई भरे हुए गालों में पड़नेवाला गड्ढा; पशुओंके. शरीरपरका कला, विद्या सिखानेवाला, उस्ताद: गायत्री मंत्रका उपदेश भिन्न रंगका दाग छाप, दाग; कनपटीपर लगायी जानेकरनेवाला; बृहस्पति ग्रह; देवताओंके गुरु बृहस्पतिः पुष्य वाली चूनेकी बिंदी; जलता हुआ कोयला, अंगारा; तंबाकूनक्षत्र; द्रोणाचार्य; परमेश्वर; दो मात्राओंवाला वर्ण, का जवा; * कनपटी।-अब्बास-पु० एक फूल; उसका ताल । -कुल-पु० गुरु या आचार्यका वासस्थान जहाँ पौधा । -कंद-पु० गुलाबको पंखड़ियोंमें शकर मिलाकर रहकर शिष्य विद्याध्ययन करते हों, गुरुगृह; प्राचीन बनायी हुई एक सरस औषध । -कार-पु० गुलकारी पद्धतिपर स्थापित विद्यापीठ । -जन-पु० बड़ा, बुजुर्ग, करनेवाला; वह चीज जिसपर गुलकारी की गयी हो । पूज्य पुरुष, माता, पिता, आचार्य आदि । -डम-पु० -कारी-स्त्री० बेलबूटे काढ़नेका काम, कशीदाकारी। [हिं०] गुरु बनकर सबसे अपनी पूजा कराना । -द्वारा- -जार-पु० बाटिका, उद्यान । वि० खिला हुआ, पु० [हिं०] गुरुके रहनेका स्थान; सिखोंका मठ या मंदिर । प्रफुल्ल ; चहल-पहलवाला । -तराश-पु० गुल कतरनेकी -पाक-वि० देर में पचनेवाला, भारी। -पूर्णिमा-स्त्री० कैची; वह कैंची जिससे बगीचेके पीधोंकी काट-छाँटकी आषाढकी पूर्णिमा जिस दिन गुरुकी पूजाका विशेष विधान | जायः पत्थरपर बेल-बूटे बनाकेका औजार । चिरागका गुल है। -भाई-पु० [हिं०] एक ही गुरुसे शिक्षा या दीक्षा काटने या पौधोंकी काट-छाँट करनेवाला आदमी।-दस्ता पानेवाला, एक गुरुका शिष्य होनेके नाते भाई ।-मंत्र- -पु० फूलोंका गुच्छा; चुनी हुई चीजों(पद्य आदि)का पु० गुरुसे प्राप्त मंत्र । -मुख-वि० दीक्षाप्राप्त, दीक्षित । संग्रह, चयनिका । -दान-पु० गुलदस्ता रखनेका पात्र । -मखी-स्त्री० देवनागरी लिपिका एक रूप जिसमें पंजाबी -दाउ(ऊ)दी-स्त्री० शरद् ऋतुमें फूलनेवाला एक फूल; भाषा लिखी जाती है ।-वार, वासर-पु० बृहस्पतिवार । उसका पौधा । -दार-वि० दागदार; जिसपर फूल बने गुरुआइनो-स्त्री० दे० 'गुरुआनी' । हों। -दुपहरिया-स्त्री० गहरे लाल रंगका एक फूल गुरुआई-स्त्री० गुरुका काम; मंत्रोपदेश देनेका काम । उसका पौधा । -नार-पु० अनारका फूल; अनारके फूल गुरुआनी-स्त्री० गुरुपत्नी; शिक्षा देनेवाली स्त्री। जैसा गहरा लाल रंग। -बकावली-स्त्री० अमरकंटकके गुरुचा-स्त्री० दे० 'गुड़ च'। जंगलोंमें होनेवाला एक सफेद, सुगंधित फूल जो आँखोंके गुरुता-स्त्री० [सं०] भारीपन, बोझा गौरव; गुरुका पद । रोगोंकी अच्छी दवा बताया जाता है। -बदन-वि० गुरुताई*-स्त्री० दे० 'गुरुता'। फूलसी देहवाला, सुंदर । पु० एक तरहका धारीदार रेशमी गुरुत्व-पु० [सं०] गुरुता। -केंद्र-पु० पदार्थ या पिंडमें कपड़ा।-बाज़ी-स्त्री० फूलोंसे खेलना, एक दूसरेपर फूल वह मध्य बिंदु जिसपर समस्त वस्तुका भार केंद्रित हो। फेंकना। -मेख-स्त्री० वह कील जिसका सिरा फूल सके। -केंद्र (ग्रिभुजका)-पु० (सेंट्रॉइड) त्रिभुजकी। जैसा गोल होता है। -मेहँदी-स्त्री० एक निगंध फूलः माध्यिकाओंका मिलन-बिंदु । उसका पौधा । -लाला-पु० एक फूल जो पोस्तेके फूलसे गुरुत्वाकर्षण-पु० [सं०] भारके कारण वस्तुका पृथ्वीके मिलता है। उसका पौधा । -शन-पु० बाग, बाटिका। केंद्रकी ओर खींचा जाना। -शब्बो-पु०एक फूल जिसकी सुगंध रातको अधिक होती १४-क For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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