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काटना-कान
रद्द करना; मार-काट । -छाँट-स्त्री० कतर-ब्योंत; घटाव- सूत्रोंपर वात्तिक लिखनेवाले वररुचिः विश्वामित्रके वंशज बढ़ाव; शोधन ।
एक ऋषि जिन्होंने श्रौत सूत्र, गृह्य सूत्र आदिकी रचना काटना-स० कि० छरी कैची आदिसे किसी चीजके टुकड़े की है। पालीका व्याकरण लिखनेवाले आचार्य कच्चायन । करना; अलग करना; तराशना; फाँक उतारना; कतरना; कात्यायनी-स्त्री० [सं०] कत गोत्रमें उत्पन्न स्त्री; याशछरछराहट पैदा करना; घाव करना; कतल करना; रगड़ वल्क्यकी एक पत्नी; वृद्धि या अधेड़ विधवा पार्वती।या रेतकर टुकड़े करना (पतंग इत्यादि); दाँत धसाना, पुत्र,-सुत-पु० कात्तिकेय । दाँतसे चोट करना; धक्के दरेरसे तोड़ देना, बहा ले जाना काथ-पु० कत्था-'जहँ बीरा तहँ चून है पान सोपारी (बाँध, जमीन); (कुछ अंश) निकाल लेना, कम कर देना; काथ'-५०; गुदड़ी।। बट्टा, मिनहा करना; बारीक पीसना (भाँग, मसाला); दूर काथरी-स्त्री० गुदड़ी, कथरी । करना, हटाना; रद्द करना; खंडन करना; बिताना, कादंबरी-स्त्री० [सं०] कदंबके फूलोंकी शराब; शराब गजगुजारना; खारिज करना; नहर, नाली, क्यारी आदि मद कोकिला; मैना; बाणभट्टरचित प्रसिद्ध गद्यकाव्य बनाना; एक रेखा, लाइन, सड़क आदिका दूसरीके ऊपरसे और उसकी नायिका सरस्वती । निकल जाना; एक संख्याका दूसरीसे ऐसा विभाजन कि कादंबिनी-स्त्री० [सं०] बादलोंकी लंबी पंक्ति, मेघमाला । कुछ बचे नहीं; डॅसना; डंक मारना; कष्ट, पीड़ा पहुँचाना कादर-वि० दे० 'कातर'। (ला०); उड़ाना; हथियाना । मु० काट खाना-दाँतोंसे कान-पु० शब्दबोधकी इंद्रिय, श्रुति, कर्ण; सुननेकी शक्ति घायल करना; इँसना; डंक मारना । काटने दौड़ना- | कानमें पहननेका एक गहना; बरतनका दस्ता; बंदूककी बहुत गुस्से में बोलना, अति क्रोष प्रकाश करनाः सूना रंजकदानी; चारपाईका टेढ़ापन; सितार आदिकी खूटी;
और उदाससा लगना। काटे खाना-मनेपन, किसीकी नावकी पतवार । स्त्री० दे० 'कानि'। मु०-उठानायाद दिलाने आदिके कारण दुःखद होना; मनको क्लेश (पशुका) चौकन्ना होना; आहट लेना। -उठना,देना। काटो तो खून नहीं-अचानक उत्पन्न हुए ऐंठना-दंड या चेतावनी देनेके लिए कान मरोड़ना । भयादिके कारण स्तब्ध होना।
-करना-सुनना, कान देना। -का कच्चा-जो कुछ काटर*-वि० कट्टर।
सुने उसपर बिना विचार किये विश्वास कर लेनेवाला । काठ-पु० [सं०] चट्टान, पत्थर [हिं०] लकड़ी; धन; काठकी -खड़े करना,-होना-सचेत, चौकन्ना होना -खड़े बनी बेड़ी; कठपुतली ।-कबाड़-पु० लकड़ीकी रद्दी,बेकार रखना-होशियार रहना । -खोलना-सावधान कर चीजें । -का उल्लू-वज्र मूर्ख । -का घोड़ा-बैसाखी। देना । -गरम करना-कान मलना, उमेठना । -देना -की हाड़ी-धोखेकी टट्टी, दिखाऊ चीज । मु०-मारना -सुनना, ध्यान देना । -धरना-ध्यानसे सुनन; कान -काठकी वेड़ी पहनाना; चलने-फिरनेपर रोक लगाना। उमेठना । -न दिया जाना-शोरके मारे सुनाई न देना; -में पाँव देना-काठकी बेड़ी पहनाना; स्वयं बंधनमें शोर और ध्वनिकी कर्कशतासे असह्य कष्ट होना। -न पड़ना । -होना-कट्टा या संशाहीन होना।
हिलाना-च न करना; विरोध, आपत्ति न करना। - काठिन्य-पु० [सं०] कठिनाई; कड़ापन; निष्ठुरता। पकड़कर उठना-बैठना-बच्चोंको दी जानेवाली एक काठी-स्त्री० वह जीन जिसमें नीचे काठ होता है। अंग्रेजी सजा। -पकड़कर निकाल देना-अनादरपूर्वक निकाल ढंगकी जीन; देहकी गठन ।
बाहर करना। -पकड़ना-अपनी भूल स्वीकार कर काड़ी-स्त्री० अरहरका सूखा डंठल, रहठा।
भविष्यमें वैसी बात न करनेकी प्रतिज्ञा करना,तोबा करना; काढ़ना-स० क्रि० निकालना, बाहर लाना; उरेहना | आगेके लिए सचेत हो जाना । -पड़ी आवाज सुनाई (सुईसे) बेल-बूटे बनाना लेना (कर्म); धी-तेलमें छानना । न देना-शोर-गुलके कारण कानमें पड़ी हुई बातका सुनाई कादा-पु० दवाओंको पानीमें औटकर बनाया हुआ पेय, न देना। -पर जूं न रँगना-तनिक भी परवाह न काथ।
होना बिलकुल ध्यान न देना। -फूकना-दीक्षा देना; काण-वि० [सं०] काना; छेद किया हुआ। पु० कीआ। कान भरना, बहकाना। -बंद या बहरे कर लेनाकातना-स० क्रि० चरखे या तकलीपर रुई या ऊनसे धागा जान-बूझकर किसीकी बात न सुनना, सुनकर भी उसपर निकालना; सनसे सुतली बनाना।
ध्यान न देना । -बहना-कानसे लसदार और कुछ गाढ़े कातर-वि० [सं०] अधीर; उद्विग्न, परेशान; कष्टसे आकुल, सवका बहना ।-भर जाना-सुनते-सुनते ऊब जाना ।
आत; विवश; भीत; भीरु । पु० घड़नई; एक बड़ी मछली।। -भरना-किसीके विषयमें किसीकी धारणा बिगाड़ देना, कातर्य-पु० [सं०] कातरता, भीरुता।
बदगुमान कर देना । -मलना-कान उमेठना । (कोई काता-पु० काता हुआ सूत; बाँस छीलनेकी छुरी, बाँक। बात)-में डाल देना-सुना देना ।-में तेल डालनाकातिक-पु० कार्तिक मास ।
कान बहरे कर लेना। -में पारा या सीसा भरनाकातिब-पु० [अ०] लिखनेवाला; लीथो प्रेसके लिए कापी गरम पारा या पिघलाया हुआ सीसा कानमें भरकर लिखनेवाला।
बहरा कर देना (पुराने जमानेकी एक सजा)।-लगनाकातिल-पु० [अ०] कत्ल करनेवाला, हत्यारा । वि०धातक । कानसे सटकर धीरे-धीरे कुछ कहना। कानोंपर हाथ काती-स्त्री० कैची; कत्ती; छुरी।
धरना-अनभिज्ञता प्रकट करना, अनजान बनना, साफ कात्यायन-पु० [सं०] कत गोत्रमें उत्पन्न पुरुषः पाणिनीय ! इनकार करना।
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