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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९९ झो पड़-टकराना * पेंग। -झोटी-स्त्री० दो स्त्रियोंका परस्पर बाल खसो- हीलाहवाली ।-दार-वि०जिसमें झोल हो,ढीलारसेदार । टते हुए लड़ना। झोलना*-स० क्रि० जलाना। झो पड़, झोपड़ा-पु० घास-फूससे छाया हुआ छोटा कच्चा झोला-पु० कपड़े, किरमिच आदिका थैला;खोली, गिलाफ; घर, कुटिया, मड़ई। चोला; लकवा; * झोंका; इशारा। झोपड़ी, झोपड़ी-स्त्री० छोटा झोंपड़ा। झोली-स्त्री० चारों कोने बाँधकर कंधे आदिसेलटकाया हुआ झोपा-पु० झब्बा, गुच्छा। कपड़ा जो झोले या थैलेका काम देसफरी बिस्तर चरसा झोटिंग-पु० झोंटेवाला, जटाधारी। घास बाँधनेका जाल; एक तरहका फंदा; राख । झोरना*-स० क्रि० जोरसे हिलाना, झकझोरना; डालको झोर-पु० झुंड, समूह; गुच्छा, कुंज, झुरमुट; एक गहना। इस तरह हिलाना कि फल झड़ जायँ; बटोरना । छककर | झोरना-अ० क्रि० गूंजना । स० क्रि० झपटकर पकड़ना। भोजन करना। झौरा-पु० दे० झौर। झोरि*-स्त्री० दे० 'झोली'। झीराना*-अ० क्रि० झूमना, झोंके खाना; झाँवर होना; झोरी*-स्त्री० झोलो पेट; एक तरहकी रोटी । मुरझाना। झोल-पु० रसा; कढ़ी; कपड़ेके किसी अंशका ढीला या झाँसना -अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'झुलसना'। नापसे बड़ा होनेके कारण झूलना, लटकना; इस तरह झीर-पु० झगड़ा, हुज्जत, तकरार डाँट; भगदड़ । लटकनेवाला अंश; मुलम्मा; * आँचल; ओट; वह झिल्ली झीरना*-स० क्रि० झपटकर दबोच लेना। जिसमें लिपटा हआ बच्चा पैदा होता है, जराय: गर्भ;राख झोरे*-अ० पास, निकट साथ। -'तेहिपर बिरह जराइकै चहै उड़ावा झोल'-५०,जलन। झौवा -पु० बँचिया। वि० ढीला निकम्मा । -झाल-वि० ढीलाढाला । पु० । झौहाना-अ० क्रि० गुस्से में आकर बोलना । अ-देवनागरी वर्णमालाका दसवाँ व्यंजन वर्ण । । अ-पु० [सं०] गायन धर्धर ध्वनि । ट-देवन.गरी वर्णमालाका ग्यारहवाँ व्यंजन वर्ण । टँको(कौ)री-स्त्री० सोना-चाँदी तौलनेका छोटा तराजू । टंक-पु० [सं०] चार माशेकी एक तौल, पत्थर काटने या टॅगड़ी-स्त्री० टाँग, पैर । गढ़नेकी छेनी कुल्हाड़ी; तलवार; म्यान; पहाड़ीका ढाल; टॅगना-अक्रि.० लटकना; लटकाया जाना; फाँसी चढ़ना। सोहागा; एक राग क्रोध दर्पः पैर नील कपित्थ; सिक्का पु० अलगनी । मु० टॅग जाना-फाँसीपर चढ़ना। दरार । -शाला-स्त्री० दे० 'टंकक-शाला' । टॅगिया-स्त्री० छोटी कुल्हाड़ी। टंककशाला-स्त्री० [सं०] सिक्के ढालनेकी जगह (मिट)। टंच-वि० तैयार; हृष्ट-पुष्ट; * कंजूस कठोरहृदय; दुष्ट । टंकण, टंकन-पु० [सं०] सोहागा; टाँकी देना; (काइनेज) टंट-घंट-पु० पूजा-पाठका आडंबर, ढोंग । ताँबे, चाँदी आदिके सिक्कोंकी ढलाई । टंटा-पु० झगड़ा, फसाद, कलह । टॅकना-अ० क्रि० टाँका जाना; सिलना; सिलाई द्वारा टॅड़िया-स्त्री० बाँहपर पहननेका एक गहना, बहूँटा । अँटकाया जाना लिखा जाना; सिल आदिका कुटना । टई-स्त्री० काम, काम निकालनेकी युक्ति; ताक । टँकवाना-स० क्रि० 'टाँकना'का प्रेरणार्थक । टक-स्त्री० एक ही ओर देरतक लगी हुई दृष्टि (बँधना, टंका-पु० चाँदीकी एक पुरानी तील; ताँबेका पुराना सिक्का। लगाना)। टैंकाई-स्त्री० टाँकनेका काम, टाँकनेकी उजरत । टकटका*-पुण्दे० 'टकटकी'। वि० एक जगह स्थित (दृष्टि)। टंकाना-स० कि० सिक्केकी जाँच कराना। टकटकाना -स० क्रि० टकटकी लगाकर देखना। अ० टकाना-सक्रि० टाँके लगवाना; सिल आदि कुटवाना क्रि० 'टक-टक' शब्द करना। याददाश्तके लिए लिखवा देना। टकटकी-स्त्री०निनिमेष दृष्टि । टंकार-स्त्री० [सं०] धनुषकी चढ़ी हुई डोरीको खींचकर टकटोना*-स० क्रि० उँगलियोंसे छूकर किसी वस्तुका पता छोड़नेसे उत्पन्न ध्वनि; धातुखंड आदिपर आघात होनेसे लगाना, टटोलना ढूँढ़ना, खोजना। उत्पन्न ध्वनि चिल्लाहट प्रसिद्धि । टकटोरना*-स० क्रि० दे० 'टकटोलना'। टंकारना-सक्रि० धनुषका रोदा तानकर आवाज करना। टकटोलना-सक्रि० स्पर्शसे पता लगाना या जाँचना। टंकिका-स्त्री० [सं०] पत्थर काटनेकी छेनी, टाँकी । टकटोहन*-पु० टटोलकर देखनेका काम । -टंकी-स्त्री० पानी, तेल आदि रखने के लिए बनाया हुआ। टकटोहना*-स० क्रि० दे० 'टकटोलना'। बक्सके आकारका बड़ा पात्र; एक रागिनी। टकराना-अ०क्रि० दो वस्तुओंका एक दूसरीसे भिड़ जाना टंकोर-स्त्री० दे० 'टंकार'। ठोकर लग जाना; कार्यकी सिद्धिके लिए बार-बार आनाटंकोरना-स० क्रि० दे० 'टकारना'। जाना; * मारा फिरना; इधर-उधर घूमना। स० क्रि० For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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