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कलाई-कलेजा
१४६ अणु भ्रण; लगाक; नौका; छल-कपट चाल; लीला; मात्रा जिसकी आयु ४ लाख ३२ हजर मानववर्ष मानी जाती (छंद); यंत्र; * ज्योति, तेज; छटा, शोभा। -कार-पु० है; पाप-बुद्धि । स्त्री० कली। * वि० काला । -कर्म(न) ललित कलाओंमेंसे किसीको जानने, उससे जीविका -पु० संग्राम ।-प्रिय-वि० झगड़ालू । पु० नारद बंदर । करनेवाला, कलावंत (आर्टिस्ट)। -कुशल-वि० किसी -मल-पु० पाप। -सरि*-स्त्री० कर्मनाशा नदी। कलामें निपुण । -कृति-स्त्री० कलामयी रचना । -युग-पु० कलिकाल । -युगी-वि० [हिं०] कलियुग-कौशल-पु० कला-विशेष में निपुणता हुनर। -क्षय- का; कलियुगी बुद्धि, प्रवृत्तिवाला। -वर्य-वि० जिसका पु० चंद्रमाका घटना । -धर,-नाथ,-निधि-पु० कलियुगमें निषेध हो । पु० कलियुगमें निषिद्ध कर्म । चंद्रमा; * कलाविद् । -पंजी-स्त्री० (मिनट बुक) वह | कलिका-स्त्री० [सं०] कली; एक छंद, वीणामूल | पंजी या रजिस्टर जिसमें किसी सभा समितिका संक्षिप्त कलिकान*-वि० हैरान, परेशान । कार्य-विवरण लिखा जाय । -बाज़-पु० [हिं०] कला- | कलित-वि० [सं०] गृहीत; शात; प्राप्तः युक्त; विभूषित; बाजी करनेवाला; नटका काम करनेवाला। -बाज़ी- गणना किया हुआ; ध्वनित; सुंदर। स्त्री० [हिं०] सिर नीचे और पैर ऊपर करके उलट जाना, कलिया-पु० [अ०] पकाया हुआ रसेदार मांस । लौटनियाँ नटविद्या; चालाकी, तिकड़म ।
कलियाना-अ० कि० कलियोंसे युक्त होना; पक्षियोंका नया कलाई-स्त्री० हाथमें हथेलीके जोड़के ऊपर, हथेली और __पंख निकलना। पहुँचेके बीचका भाग, गट्टा; कलाई पकड़ने-छुड़ानेकी कलियारी-स्त्री० विषैली जड़वाला एक पौधा । . कसरत; सूतका लच्छा; पूला; हाथीके गले में लगायी जाने- कलींद, कलींदा-पु० तरबूज । वाली रस्सी जिसमें पीलवान पैर फंसाता है; अलान । कली-स्त्री० [सं०] मुंह बँधा फूल, बोडी; चिडियाका पहले कलाकंद-पु० एक तरहकी बरफी।
निकलनेवाला छोटा पर; अप्राप्तयौवना कन्या (ला); कलाद, कलादक-पु० [सं०] सोनार ।
[हिं०] कुतें आदिमें लगनेवाला तिकोना कपड़ा; पत्थर कलादा-पु० हाथीकी गरदनपरका वह भाग जहां पील- आदिका फुका हुआ टुकड़ा जिससे चना बनाया जाता है। वान बैठता है।
म. (दिलकी)-खिलना-चित्तका प्रसन्न होना। कलाप-पु० [सं०] समूह; पूला; मोरकी पूंछ; एक गहना; कलीट*-वि० काला, कलूटा।
करधनी; तरकश; बाण; चंद्रमा; एक अर्द्ध चंद्राकार अस्त्र। कलुख*-पु०, कलुखाई*-स्त्री० दे० 'कलुष' । कलापक-पु० [सं०] समूह; पूला; मोतियोंकी लड़ी; कलुखी*-वि० दोषी, कलुषयुक्त ।। करधनी; चार ऐसे श्लोकोंका समूह जिनके मिलानेसे एक कलुष-पु० [सं०] मैल, गंदगी; पाप; क्रोध; भैसा । वि० वाक्य होता है; हाथीके गलेकी रस्सी ।
मैला, गंदा; पापी; निंदित; क्रुद्ध कर । कलापिनी-स्त्री० [सं०] मोरनी; रात ।
कलुषाई*-स्त्री० दोष, अपवित्रता। . कलापी(पिन)-वि० [सं०] तरकशधारी;दुम फैलानेवाला कलुषित-वि० [सं०] कलुषयुक्त; रुष्ट । (मोर)। पु० मोर; कोयल; वटवृक्ष ।
कलूटा-वि० काले रंगका, काला । कलाबत्तू-पु० रेशमके धागेपर लपेटा हुआ सोने या चाँदीका | कलूला-पु० कुल्ली।
तार; सोने-चाँदीका तार; कलाबत्तका बना पतला फीता। कलेऊ-पु० दे० 'कलेवा' । कलाबा-प० [अ०] सूतका लच्छा या गोला; तकलीपर कलेजा-पु० प्राणियोंका एक भीतरी अवयव जो सीनेके लिपटा हुआ सूत; हाथीके गलेकी रस्सी हाथीकी गरदन । अंदर बाँयी ओर रहता है और जिससे पित्त बनता तथा कलाम-पु० [अ०] वचन, उक्ति; बात-चीत; रचना वादा; दूषित रक्त शुद्ध होता है; यकृत, जिगर, छाती, दिल; उज्र, एतराज ।
साहस, हिम्मत; अति प्रिय व्यक्ति या वस्तु । मु०-उछकलामत* --पु० कलावंत, संगीतश।
लना-हर्ष, उद्वेग, आशंका आदिसे दिलका धड़कना । कलार-पु० दे० 'कलवार' ।
-कटना-विषादिसे आँतोंमें छेद होना; दिलको चोट कलाल-पु० दे० 'कलवार'।
पहुँचना; खूनी दस्त आना। -काँपना-दिल दहलना, कलावंत-पु० विधिवत् शिक्षाप्राप्त गायक या वादक । वि० डरसे काँप जाना । -कादना,-निकालना-वेदना कला-कुशल ।
पहुँचना; प्रिय वस्तु या सर्वस्व ले लेना। -खानाकलावती-वि० स्त्री० [सं०] कला जाननेवाली; संदरी।। सताना, पीड़ा देना; किसी चीजको बार-बार माँगकर कलावा-पु० दे० 'कलाबा' ।
कष्ट पहुँचाना । -खिलाना-प्रिय वस्तु देना; आदर. कलिंग-वि० [सं०] चतुर, धूर्त । पु० प्राचीन भारतका सत्कारमें कोई बात उठा न रखना। -छलनी होनाएक जनपद; वहाँका निबासी; कुलंग पक्षी; इंद्रजी; सिरिस ताने, व्यंग्य-बाणोंसे कलेजा छिद जाना। -छिदना,वटवृक्ष; तरबूज; एक राग ।
बिधना-कड़ी बातसे जी दुखना । -जलाना-कष्ट कलिंगड़ा-पु० एक राग ।
पहुँचाना, सताना। -टूटना-जी टूटना, हौसला पस्त कलिंद-पु० [सं०] वह पर्वत जिससे यमुना निकलती है; होना। -ठंढा होना-मनको शांति मिलना, जलनबहेड़ा, सूर्य । -कन्या,-जा,-तनया-स्त्री० यमुना। बेकलीका दूर होना। -थामकर रह जाना-असह्य कलिंदी*-स्त्री० दे० 'कालिंदी'।
कष्ट-वेदनाको बिना आह किये, दिल पकड़कर सह लेना, कलि-पु० [सं०] कलह, झगड़ा; युद्ध; चार युगोंमेंसे चौथा वेदनाको बाहर न आने देना। -थाम लेना या पकड़
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