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मजमूआ - वि० [अ०] जमा किया हुआ, संगृहीत । मज़मून - पु० [अ०] लेखादिका विषय, लेखादिमें निवद्ध भाव, विषय, लेख, निबंध । -नवीस- पु० लेख लिखने वाला, निबंधकार | मु० - बाँधना- किसी भावको लेख या पद्य में व्यक्त करना । मजलिस-स्त्री० [अ०] जलमेकी, बैठनेकी जगह; सभा, परिषद्, जलसा |
मज़लूम - वि० [अ०] जिसपर जुल्म किया गया हो, पीड़ित । मज़हब- पु० [अ०] रास्ता; पंथ, धर्म, संप्रदाय; दीन । मज़हबी - वि० [अ०] मजहब, धर्मविशेषसे संबंध रखने वाला । - आजादी - स्त्री० अपने धर्मके आचरणकी स्वतंत्रता ।
मज़ा - पु० [अ०] स्वाद, रस, जायका; चसका; सुख, आनंद, लुत्फ; तमाशा; सजा, कर्मफल । - (ज़े) दारवि०स्वादि, बढ़िया, जिसमें लुत्फ, आनंद आये । -कामजेदार; ठिकानेका; उपयुक्त; काम चलाऊ, उपयोगी । -की बात- तमाशेकी, लुत्फकी बात । -से-सुखपूर्वक, मौजसे । मु० - किरकिरा होना - रसभंग होना, कार्यका
आनंद न मिलना । - चखना, - पाना - लुत्फ उठाना; दंड, फल भोगना । चखाना-कियेका फल चखाना, दंड देना । - लूटना - सुख भोगना, लुत्फ उठाना । मज़ान - पु० [अ०] चखनेकी चाह; स्वाद, जायका; रुचि, मनका झुकाव हँसी, दिल्लगी । - पसंद- वि० हँसोड़ । - का आदमी - हँसोड़, परिहासप्रिय जन । मु० - उड़ाना - परिहास करना । मज़ाक़न् - अ० [अ०] हँसी में |
मज़ाकिया - वि० [अ०] हँसोड़, विनोदी | अ० मजाकमें । मजाज़ - वि० [अ०] अवास्तविक, कल्पितः अधिकार प्राप्त । मज़ार पु० [अ०] जियारतकी जगह, दरगाह; कब । मजारी * - स्त्री० बिल्ली, मार्जारी ।
मजाल - स्त्री० [अ०] शक्ति, सामर्थ्य, मक़दूर ।
मजिल - स्त्री० दे० 'मंजिल' ।
मजूर - + पु० दे० 'मज़दूर'; * दे० 'मयूर' | मजूरी | - स्त्री० दे० 'मजदूरी' |
मजेज * - स्त्री० गर्व, घमंड | मज्ज * - स्त्री० दे० 'मज्जा' ।
डंठलको
न इधर जा सके, न उधर । मझला - वि० बीचका, दरमियानी । मझाना * - अ० क्रि० पैठना, प्रवेश करना | स० क्रि० प्रवेश कराना, घुसाना ।
मझार* - अ० बीच में, मध्य में ।
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मझावना* - अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'मझाना' | मझियाना * - अ० क्रि० नाव खेना; मध्यसे निकलना । मझियारा* - वि० मझला, बीचका । मझु* - सर्व ० मैं; मेरा । मझोला - वि० मझला; न बहुत बड़ा, न छोटा । मझोली - स्त्री० मोचियोंका एक औजार; एक तरहकी बैलगाड़ी |
मजमूआ - मठाधीश
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मज्जन- पु० [सं०] डूबना, गोता मारना; नहाना; मज्जा । मज्जना* - अ० क्रि० नहाना; गोता लगाना । मज्जा - स्त्री० [सं० ] नलीकी हड्डीके भीतर भरा स्नेहरूप पदार्थ; पेड़-पौधोंका सारभाग । -रस- पु० शुक्र, वीर्य । मज्झ* - पु० दे० 'मध्य' ।
मझ* - वि० मध्य, बीच। - धार स्त्री० बीच धारा । मु० - धार मेँ छोड़ना - कोई कार्य अपूर्ण अवस्था में ही छोड़ देना; किसीको ऐसी असहाय स्थितिमें छोड़ देना जब वह
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३९--क
मट* - पु० मटका ।
मटक- स्त्री० मटकनेका भाव, नखरेका भाव, लचक | मटकना - अ० क्रि० चलने में हाथ, आँख, भौं आदिको नाजनखरेकी अदासे हिलाना, इठलाकर चलना; हिलना । मटकनि* - स्त्री० दे० 'मटक' | मटका - पु० बड़े मुँहका घड़ा,
मटकाना - स० क्रि० किसी विशेष अंगसे मटकनेकी क्रिया करना, उसे नखरेकी अदासे हिलाना, चमकाना | मटकी - स्त्री० छोटा मटका; मटक । मटकीला - वि० मटकनेवाला । मटकौअल - स्त्री० मटकानेका काम, मटक | मटमँगरा - पु० व्याह के कुछ पहले होनेवाली एक रस्म । मटमैला - वि० मिट्टी के रंगका, खाकी ।
मटर- पु० एक द्विदल अन्न जिसकी दाल और रोटियाँ भी खायी जाती हैं । - गश्त - पु०, स्त्री० टहलना; आवारा फिरना । - गश्ती - स्त्री० दे० 'मटरगश्त' । -चूड़ा-पु० मटर के हरे दानों के साथ चूड़ा मिलाकर बनायी हुई घुघरी । मटिया - वि० मटमैला । स्त्री० मिट्टी; शव । मटियाना - स०क्रि० मिट्टी मलकर धोना (हाथ, बरतन ३०) । मटियाफूस - वि० जरासी ठेसमें बिखर जानेवाला, अति दुर्बल
मजीठ - स्त्री० एक लता जिसकी जड़ और उबालकर लाल रंग निकाला जाता है । मनीठी - वि० मजीठके रंगका, गहरा सुखे । मजीर* -स्त्री० दे० 'मंजरी' (फूलों का गुच्छा) ।
मजीरा - पु० काँसेकी कटोरियोंकी जोड़ी जिसे ताल देनेके मटुक - + पु० मुकुट ( ग्रामगी०) । लिए बजाते हैं ।
मटुका - पु० दे० 'मटका' ।
मटुकिया, मटुकी * - स्त्री० छोटा मटका ।
मटियामसान - वि० मटियामेट, नष्ट ।
मटियामेट - - वि० मिट्टी में मिला हुआ, नष्ट | मटियाला - वि० मटमैला ।
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मट्टी - स्त्री० दे० 'मिट्टी' ।
महर - वि० सुस्त, धीमा ।
मट्ठा - पु० पानी मिलाकर मथा हुआ दही जिससे मक्खन निकाल लिया गया हो, छाँछ ।
मठ - पु० [सं०] छात्रावास; साधु-संन्यासियोंके रहनेका स्थान, आश्रम; देवालय । - धारी (रिन् ) - पु० मठका प्रधान साधु-संन्यासी ।
मठरी - स्त्री० दे० 'मठली' |
मठली-स्त्री० मैदेकी बनी एक तरहकी नमकीन टिकिया । मठा-पु० दे० 'मट्टा' |
मठाधीश - पु० [सं०] महंत |