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कर्मठ-कलई
१४४ अधिनियम'।-क्षेत्र-पु० कर्मभूमि, कार्यक्षेत्र।-चांडाल खरोंचना; समय बढ़ाना; क्षति पहुँचाना । -पु. वह जो कर्मसे चांडाल माना जाय; नीच कर्म करने- कर्ष(ख)ना*-स० क्रि० खींचना तानना। वाला --चारी (रिन)-१० काम करनेवाला, अहलकार। कर्षिणी-स्त्री० [सं०] धोड़ेकी लगाम, खिरनीका पेड़। --चारि-तंत्र-पु० (ब्यूरोक्रेसी) दे० 'अधिकारिराज्य', कर्षित-वि० [सं०] खींचा हुआ, जोता हुआ, क्षीण । नौकरशाही ।-चारिद-पु० (स्टाफ) किसी प्रधान अधि- कलंक-पु० [सं०] धब्बा; काला दाग; लांछन, बदनामी कारीके नीचे काम करनेवाले (किसी संस्था आदिके) कर्म- चंद्रमामें दिखाई देनेवाला काला दाग; दोष; लोहेका चारियोंका समूह । -धारय-पु० तत्पुरुष समासका एक मोरचा; पारेकी कजली । -का टीका-बदनामीका भेद जिसमें विशेष्य और विशेषण समानाधिकरण हों। धब्बा, लांछन । -निष्ठ-वि० शास्त्रविहित कामोंमें आस्था रखने, उन्हें कलंकित-वि० [सं०] कलंकयुक्त मोरचा लगा हुआ। श्रद्धापूर्वक करनेवाला । -प्रधान-वि० जिस (क्रिया- कलंकी (किन्)-वि० [सं०] जिसे कलंक लगा हो; वाक्य ) में कर्मकी प्रधानता हो-क्रियाका लिंग, वचन बदनाम । पु० चंद्रमा कल्कि अवतार । कर्भका अनु सरण करता हो। -फल-पु० पूर्वजन्ममें कलँगी-स्त्री० दे० 'कलगी'। किये हुए कर्मोंका फल (सुख-दुःख)। -भोग-पुं० कलंदर-पु० [अ०] मुसलमान साधुओंका एक विरक्त समुकर्मफल; कर्मफलके रूपमें प्राप्त दुःख । -मार्ग-पु० दाय; उस समुदायका व्यक्ति; बंदर-भालू नचानेवाला। विहित कर्तव्य कर्म करते हुए मोक्ष-प्राप्तिका मार्ग। कलंदरा-पु० [अ०] एक तरहका रेशमी कपड़ा। -योग-पु० कर्ममार्गकी साधना । -योगी (गिन)- कलंब-पु० [सं०] बाण, कदंबसाग आदिका डंटल । पु० कर्ममार्गकी साधना करनेवाला।-रंग-पु० कभरख। कल-वि० [सं०] अस्पष्ट मधुर, मंद मधुर (ध्वनि); सुहा-रेख-स्त्री० कर्मकी रेखा, तकदीर । -रोधन-पु० | वना; श्रुतिमधुर, कोमल; ऐसा शब्द उत्पन्न करनेवाला । ( स्ट्राइक) किसी अन्याय आदिके विरोधमें काम-काज पु० अस्पष्ट मधुर. ध्वनि वीर्य । -कंठ-मीठी आवाजबंद कर देना, हड़ताल । -वाच्य-पु० क्रियाका वह वाला । पु० कोयल; कबूतर; हंस । -कल-पु० झरने रूप जिसमें कर्मकी प्रधानता हो (व्या०)। -वाद-पु० या नदीके प्रवाह आदिकी कोमल मधुर ध्वनि अनेक कर्भका फल अवश्य होता और भोगना पड़ता है-यह लोगोंके एक साथ बोलनेकी आवाज; शिव; धूना ।-घोषमत, प्रारब्धवाद । -वीर-वि० कर्तव्य, लोकहित कर्म पु० कोयल । -धौत-पु० सोना, चाँदी; मंद, मधुर करनेमें वीर; विघ्न-बाधाओंसे भिड़ते हुए कर्तव्य-पालन ध्वनि । -ध्वनि-स्त्री० कोमल, मधुर ध्वनि । पु० करनेवाला पुरुषार्थी । -शाला-स्त्री. (वर्क्स, वर्कशॉप) कोयल; मोर; कबूतर । -नाद-पु० हंस । वि० मंद कारखाना; लोहे, लकड़ी आदिका या निर्माण-संबंधी अन्य | मधुर स्वरवाला। -रव-पु० कोमल, मधुर ध्वनि । काम करनेका स्थान । -शील-वि० उद्योगी; परिश्रमी। -री-पु० दे० 'कलरव' । -हंस-पु० दे० क्रममें । -शूर-वि० कर्मवीर । -संन्यास-पु० कर्मत्याग। कल-अ० अगले या पिछले दिन, आगे चलकर, पीछे। -साक्षी (क्षिन)-पु० कार्यविशेषको देखनेवाला, -का-कुछ ही दिनोंका, बिलकुल हालका (कलकी बात)। चश्मदीद गवाह; मनुष्यके भले-बुरे कर्मोंके साक्षी देवता -का छोकरा-(वक्तासे) उम्रमें बहुत छोटा; नादान, (सूर्य, चंद्र, यम, काल, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और नासमझ । -की कलपर है-आगेकी बात आगे, यथाआकाश )। -हीन-वि० जिससे कोई अच्छा कार्य न समय देखी जायगी। -को-कल, कलके दिन । हो हतभाग्य।
कल-वि० कालाका समास-व्यवहृत रूप (कलमुँहाँ, कलकर्मठ-वि० [सं०] काममें कुशल; मुस्तैदीसे काम करने- सिरा इ०)। -चोंचा-पु. वह कबूतर जिसकी सारी वाला; कर्मनिष्ठ ।
देह सफेद पर चोंच काली हो। -जिब्भा-वि० काली कर्मणा-अ० [सं०] कर्मसे, कर्मतः ।
जीभवाला; जिसकी कही हुई अमंगल बातें सत्य हो जायें। कर्मण्य-वि० [सं०] कर्मकुशल; उद्यमी।
-जीहा*-वि० दे० 'कल जिब्भा'। -मुँहाँ-वि० काले कर्मना*-अ० दे० 'कर्मणा'।
मुँहवाला; कलंकित । -सिरी-स्त्री० एक चिड़िया जिसके कर्मिष्ठ-वि० [सं०] कर्मकुशल; कर्मनिष्ठ ।
सिरका रंग स्याह होता है। कर्मी (मिन्)-वि० [सं०] काम करनेवाला; उद्यमी; कल-स्त्री० चैन, आराम, शांति; इतमीनान; युक्तिः कारीगर ।
कौशल; यंत्र, मेशीन; पेच-पुरजा; बंदूकका घोड़ा; करवट, कर्मेंद्रिय-स्त्री० [सं०] वह इंद्रिय जिससे कोई काम किया बल; अंग । -दार-पु० कलसे ढला हुआ सिक्का, रुपया । जाय ( हाथ, पाँव, वाणी, गुदा और उपस्थ )।
वि० कल-पेचवाला । -बल-पु० दाव-पेच; जोड़-तोड़ । कर्रा-वि० कड़ा, कठिन ।।
* वि० अस्पष्ट उच्चारित (वचन) । मु०-ऐठना,कर्राना*-अ० कि० कड़ा होना, सख्त होना ।
घुमाना-कल चलाना; किसीके मनको अभीष्ट दिशामें कर्ष-पु० [सं०] खींचना; जोतना; जताईड, खरोंच मोड देनाः पट्टी पदाना। -बेकल हो १६ माशेका मान ( ५ रत्तीके माशेसे); पुराने जमानेका किसी पेच-पुरजेका ढीला होना, अपनी जगहसे हट जाना। एक सिक्का, हूण; जोश; ताव ।
कलई-स्त्री० [अ०] राँगा; राँगेका मुलम्मा जो ताँबे, कर्षक-वि० [सं०] खींचनेवाला । पु० किसान ।
पीतलके बरतनोंपर किया जाता है; लेप; मुलम्मा; चूना कर्षण-पु० [सं०] खींचना; जोतना; झुकाना; कृषिकर्म चूनेकी पुताई, सफेदी; असलीयतको छिपानेवाली वस्तु,
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