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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / पाचन-पाठी ४७० पित्तके पाँच भेदोंमेंसे एक भोजनको पचानेवाली औषध । पाटविक-वि० [सं०] दक्ष, कुशल, पटु; धूर्त । पाचन-पु० [सं०] पकाने या पचानेकी क्रिया; अग्नि; पाटवी*-वि० पटरानीसे जनमा हुआ (राजकुमार); रेशमअम्लरस; भोजन पचानेवाली विशेष प्रकारकी औषध का बना हुआ, रेशमी । जठराग्नि द्वारा भोजनका पचाया जाना; घावको भरनेकी पाटहिक-पु० [सं०] नगाड़ा बजानेवाला । क्रिया; घावमेंसे मवाद आदि निकालनेकी क्रिया । वि० पाटा-पु०पीढ़ा; पत्थर या काठका वह बड़ा टुकड़ा जिसपर पकाने या पचानेवाला । -शक्ति-स्त्री० भोजनको पचा- धोबी कपड़े धोता है; आड़के लिए चौकेके पास उठायी नेकी शक्ति। जानेवाली दीवार; दो दीवारों के बीच कड़ी, बाँस, पटरा पाचना*-स० क्रि० पकाना । अ० क्रि० मरना, गलना। आदि जड़कर बनाया जानेवाला आधार जिसपर चीजें पाच्य-वि० [सं०] जो अवश्य पक या पच जाय; पचाने रखते हैं; * पट्टा । स्त्री० [सं०] परंपरा, सिलसिला । या पकाने योग्य । पाटी-स्त्री० [सं०] परिपाटी, प्रणाली; रीति; अंकगणित; पाछ-स्त्री० पाछनेकी क्रिया या भाव; पाछनेसे पड़ने या बला नामक पौधा । -गणित-पु० गणितशास्त्र, गणित । लगनेवाला चीरा; वह चीरा जो अफीम निकालनेके लिए पाटी-स्त्री० विशेष प्रकारका लकड़ीका वह लंबोतरा टुकड़ा पोस्तेके डोंडेपर नहरनीसे लगाया जाता है; वह चीरा जो जिसपर बच्चोंको अक्षर लिखना सिखाया जाता है, तख्ती किसी वृक्षका रस या दूध निकालनेके लिए उसपर लगाया पाठ, सबका तेल, गोंद आदिकी सहायतासे माँगके दोनों जाता है। पु० पिछला भाग, पीछा-'आशा लुबधल न ओर सजाकर बैठाये जानेवाले बाल खाटके ढाँचेके दाहिनेतेजए रे कृपनक पाछु भिखारि'-विद्या० । * अ० पीछे । । बायें लगायी जानेवाली वे लकड़ियाँ जिनके मेलसे रस्सीकी पाछना-स० क्रि० खून, पंछा यारस अथवा दूध निकालने- बुनाई होती है; चटाई पत्थरकी पटिया। मु०-पढ़नाके लिए छुरे आदिके हलके आघातसे प्राणीके शरीरपर | पाठ पढ़ना; सबक सीखना, शिक्षा प्राप्त करना।-पढ़ाना या पेड़-पौधेपर चीरा लगाना। -पाठ पढ़ाना; शिक्षा देना। पाछल, पाछिल, पाछिला*-वि०पिछला। पाटीर-पु० [सं०] चंदन खेत, मैदान; बादल; छलनी । पाछा*-पु० पीछा। पाठ-पु० [सं०] पढ़नेकी क्रिया या भाव; किसी धार्मिक पाछी, पाछ, पार्छ, पाछे*-अ० पीछेकी ओर, पीछे । या देवपरक पुस्तकको नियमित रूपसे पढ़ना; वेदपाठ, पाज*-पु० पाँजर, पार्थ । ब्रह्मयज्ञ; पढ़ी या पढ़ायी जानेवाली वस्तु; किसी पाठ्यपाजी-वि० दुष्ट, बदमाश । * पु० पैदल सिपाही, प्यादा; पुस्तकका वह अंश जो किसी एक विषय से संबद्ध हो, . पहरेदार, रक्षक-'सहस सहस तहँ बइठे पाजी'-प० । परिच्छेद; किसी विषयका उतना अंश जितना एक बार में -पन-पु० दुष्टता, बदमाशी । पढ़ाया जाय, सबक वाक्य, पद्य आदिका लिखित रूप । पाटंबर-पु० रेशमी कपड़ा। -च्छेद-पु० पाट्य वस्तुके बीच में होनेवाला विराम, पाट-पु० [सं०] विस्तार, फैलाव; चौड़ाई; [हिं०] रेशम; यति । -दोष-पु. पाठ-संबंधी दोप (अठारह प्रकारके वस्त्र, बटा हुआ रेशम; एक तरहका रेशमका कीड़ा, पटसन पाठ-दीप गिनाये गये हैं, जैसे-विस्वर, विरस, विश्लिष्ट, सिंहासन, राजगद्दी; पीढ़ा पत्थरकी पटिया; धोधीका कपड़े काकस्वर आदि)। -निश्चय-पु० शुद्ध पाठका निश्चय धोनेके कामका पत्थर या काठका बड़ा टुकड़ा; चक्कीके दो करना । -भू-स्त्री. वह स्थान जहाँ वेदोका अध्ययन भागों से कोई एक; हाँकनेवालेके बैटनेके लिए कोल्हूमें किया जाय । -भेद-पु० दे० 'पाठांतर'। -मंजरी,लगाया जानेवाला तख्ता; कुएँपर रखी जानेवाली वह शालिनी-स्त्री० मैना, सारिका। -शाला-स्त्री. वह चपटी लकड़ी जिसपर एक पाँव रखकर पानी खींचते है। स्थान या संस्था जहाँ विद्यार्थियोंको, विशेषकर छोटी बैलोका एक रोग; * बालोंकी पटिया। -महादेई*, कक्षाओंके विद्यार्थियोंको एक या अधिक विषयों की शिक्षा महिषी-रानी-स्त्री० पटरानी। दी जाय, विद्यालय, स्कूल; वह विद्यालय जिसमें संस्कृत पाटन-स्त्री० पाटनेकी क्रिया या भाव; पटाव छतमकानकी पढ़ायी जाय, संस्कृत पढ़ानेका विद्यालय । पहली मंजिलसे ऊपरकी मंजिलें; नगर, पत्तन । पाठक-पु० [सं०] अध्यापक; कथावाचक गुरु; छात्र । पाटना-स० क्रि० किसी गड्ढेको या नीची भूमिको भरकर पाठन-पु० [सं०] पढ़ानेकी क्रिया, अध्यापन । -शैलीआस-पासकी जमीनके बराबर कर देना; भर देना; पूर्ण स्त्री० पढ़ानेका ढंग। कर देना; ढकना भरमार कर देना, ढेर लगा देना। पाटांतर-पु० [सं०] दूसरा पाठ, भिन्न प्रकारका पाठ पाटल-पु० [सं०] ललाई मिला हुआ उजला रंग; गुलाबी किसी पुस्तक या ग्रंथके किसी अंशका उसकी दूसरी प्रति रंग; पाढरका पेड़, इसका फूल । वि० ललाई लिये हुए | या प्रतियों में दूसरा रूप होना, पाठमें भिन्नता होना। उजले रंगका। पाठा-पु० जवान और मोटा-ताजा आदमी; जवान बैल, पाटलक-वि० [सं०] लाल-पीले रंगका। हाथी, भैंसा, बकरा आदि । पाटला-पु० एक तरहका सोना; पाढर; * पटल, पल्ला। | पाठावली-स्त्री० [सं०] पाठोंका संग्रह; वह पुस्तक जिसमें पाटलिपुत्र, पाटलिपुत्रक-पु० [सं०] अजातशत्रु द्वारा किसी विषयके पाठोंका संग्रह हो। बसाया हुआ मगधका एक प्राचीन नगर जो अब पटना | पाठिका-स्त्री० [सं०] पढ़नेवाली; पढ़ानेवाली; पाढ़ा। कहलाता है। पाठित-वि० [सं०] पढ़ाया हुआ । पाटव-पु० [सं०] चातुरी; कौशल; आरोग्य; उत्साह। पाठी(ठिन)-पु० [सं०] वह जो अध्ययन समाप्त कर For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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