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उम्भौ-करिस्मान उम्भौ*-वि० उमय, दोनों।
-घन। उमड़ाव-पु० उमड़नेका भाव या क्रिया ।
ऐराक*-पु. इराक देशका घोड़ा। उमने-अ० उन्मन भावसे (रातो)।
ऐहिकतापरक-वि० [सं०] (सेक्यूलर) जिसका संबंध सांसाउरझेरी*-स्त्री० हृदयकी व्याकुलता।
रिक बातोंसे हो। उरमंडन*-पु. प्रियतम (हृदयका आभूषण)-'गाढ़े भुज
ओ दंडनके बीच उरमंडन को धारि...'-घन।
ओगण*-पु० अवगुण-'म्हाँमें ओगण धणा छै हो प्रभुजी उररना*-अ० क्रि० उमंगित होना।
थे ही सतो तो सहो'-मीरा । उर्वर-वि० जिससे बहुतसे विचार, सुझाव आदि |
ओछना*-स. क्रि० पोंछना, साफ कर देना- ललित निकलें (-मस्तिष्क)।
कपोलनि ओठेऊ पाछे लाली लसति सुहाई है'-धनः । उलटवाँसी-स्त्री० कवितामें ऐसी उक्ति जिसमें सामान्यसे
ओटपाय*-पु० उपद्रव-'कैसे गनै बनै जे ऽब ओटपाय उलटी बात कही गयी हो ।
तबके-घन। उलाह*-पु० उछाह, उल्लास, उमंग-'मिले मग आनि |
ओलंदेजी-वि० हालैंड देशका । अनेक उलाहू-धन।
ओषजन-पु० 'आक्सिजन' नामक गैस जिसके योगसे पानी उसवासा-पु० प्रवेग, प्रवृत्ति ।
बनता है। उसार- स्त्री० कामधंधा, सेवा, पशुओंका गोबर आदि हटाकर सफाई करना-'समय कम है। ढोरोंकी उसार
औंघाई-स्त्री० उँघाई, झपकी, नींद । करनी है'-मृग।
औड़ना-अ० क्रि० उमड़ना, बढ़ना, उभड़ना । उहट*-स्त्री० उचाट, ऊब जानेकी क्रिया-'अति रसमगन
औंस*-स्त्री० ऊमस । उहट नहिं मानत कबहुँ होति हाहा मनवारी'-घन ।
औधरना-अ० क्रि० घूमना-'घर लागै औधूरि कहे मन उही*-सर्व० दे० 'उहै।
कहा बँधावै'-सूर ।
औटपाई*-स्त्री० दे० 'ओठपाय' । ऊक*-अ० आगेकी ओर, मुँहके बल ।
औ?--अ० वहाँ-'म्हानै तौ थारी औलू सतावै थे औठे" ऊखिल*-वि० अनजान, पराया-'ऊखिल ज्यो खरकै बिलमाया'-धन । पुतरिनमें'-घन०।-ताई-स्त्री० परायापन ।
औलू*-स्त्री० बिरहकी स्मृति । ऊठ*-स्त्री० उठान-धरिवारियै ऊठ उमै ठी'-घन०:| औषदि*-स्त्री० दे० 'औषधि । दीप्ति-'मुखकी ऊठ औरई कछु अंतरको रस बाहिर
क छलक्यौ'-धन; उमंग-"रिस-रूसने रूखियै ऊठ अनू
कंतरि*-पु. कांतार, वन । ठियै'-धन।
कतार*-पु. कांतार, वन, जंगल । ऊबना -अ० क्रि० सुशोभित होना, शोभा पाना-'गहने
कंदरिया-स्त्री० जड़, मूल । पहिने रहो। कुँवर साहब भी तो देख लें, कैसी ऊब रही
कंदू*-पु. कीचड़-'अगनि जु लागी नीरमें कंद जलिया हो'-मृग०।
झारि'-साखी। ऊबनी-सी० (कन्यापक्षके) द्वारकी शोभा बढ़ानेकी रस्म,
कंद्रप*-पु० कंदर्प, कामदेव । द्वारचार (बुदेल०)।
कंपोटरी-पु० कंपाउंडर, मलहम-पट्टी करनेवाला या ऊभा-वि० खड़ा।
दवा तैयार कर देनेवाला डाक्टरका सहायक । ऊमटना*-अ० क्रि० उमड़ना-'काली पीली घटा ऊमटी|
कंमोद*-पु० कुमुद । बरस्यौ एक धरी'-मीरा ।
कंसकडोरना-स्त्री० सिरके बाल पकड़कर घसीटना ऊरस*-वि० दे० 'उरस' ।
-'दारी, झोटा पकड़कर कंसकड़ोरन करूँगी बहुत मुँह ऊसीजना*-अ० कि. उसनना, सीझना-'अंग उसीजै |
चलाया तो'-अमर। उदेगकी आवस'-धन ।
कगग*-पु० काग, काक, कौआ ।
कग्गद*-पु. कागद, कागज; पत्र, चिट्ठी । ऋतुरौन--पु० ऋतुरमण, वसंत-'गावत कोकिल रैगभरे, कचका-स्त्री० कुचल जाने, दब जानेकी चोट । धावत छबि ऋतुरौन'-काव्यांगकौ०।
कच्चा-वि० दे० मूलमें। मु. कच्ची गोलियाँ खेलनाऋतुवती*-वि० स्त्री० रजस्वला, ऋतुमती।
बेवकूफीमें समय बिताना। कछना*-सक्रि० पहनमा, धारण करना।
कटाली*-स्त्री० कटारी, काटनेवाली। एन, ऐना-पु० गायका थन ।
कटिस्नान-पु० [सं०] टबमें बैठकर किया जानेवाला एक
तरहका स्नान जिसमें केवल कटि तथा पेडूका भाग पानीमें ऐचा -वि०तिरछा, दूसरी तरफ खिंचा हुआ (ऐंची आँख)। डुबाया जाता है, शेष भाग पानीको सतहसे ऊपर रहता ऐ परि*-अ० फिर भी-'ऐ परि यौं मरियैगो मसोसनि'। है (प्राकृतिक चिकित्सा)।
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