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- स्रोन
स्यापा
चालाकी; धूर्तता ।
स्थापा- ५० दे० 'सियापा' । मु०- पड़ना - रुदन क्रंदन होना; सुनसान, उजाड़ होना ।
स्याबास * - अ० दे० 'शाबास' ।
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स्याम - पु० बरमाके पूर्व में स्थित एक देश; * दे० 'श्याम' । * वि० दे० 'श्याम' । - करन - पु० दे० 'श्यामकर्ण' । - ताई - स्त्री० दे० 'श्यामता' ।
-ता
स्यामक* - पु० वसुदेवके एक भाई, श्यामक ।
स्यामल* - वि० दे० 'श्यामल' | -ता - स्त्री० श्यामलता, साँवलापन |
स्यामलिया * - पु० कृष्ण ।
स्यामा * - स्त्री० दे० 'श्यामा' |
स्यार - पु० गीदड़, सियार । -जन- पु० डरपोक आदमी । - पन - पु० शृगालकीसी आदत ।
स्यारी - स्त्री० शृगाली, गीदड़ी; । जाड़ेकी फसल ।
स्याल - पु० स्यार; [सं०] साला, श्याल | स्यालक - पु० [सं०] साला ।
स्थालिका - स्त्री० [सं०] पत्नीकी छोटी बहन ।
स्याली - स्त्री० [सं०] साली |
स्यालू - पु० ओढ़नी, चादर, सालू ।
स्यावज* - पु० सावज, शिकार । स्याह - वि० [फा०] काले कानोंवाला एक हिंस्र जंतु (समास भी) । - गोसर* - पु० दे० 'सियाइगोश' । - जीरा - पु० काला जीरा । - तालू - पु० वह घोड़ा जिसका तालू काला हो ( यह अशुभ माना जाता है ) । स्वाहा- पु० दे० 'सियाहा' । स्याही स्त्री० [साही नामक जानवर; [फा०] कालापन; अँधेरा; कालिख; काजल; रोशनाई; दाग; दोष, ऐब । - चट- पु० सोख्ता । दान-पु० दवात । -साज़पु० स्याही बनानेवाला । - सोख - पु० सोख्ता (ब्लाटिंग पेपर) | मु० - जाना - उम्र ढलना । - दौड़ना - स्याही छा जाना। -धो जाना-दुर्भाग्य या दोष दूर होना। - लगाना -मुँह काला करना, बदनाम करना । स्यूत - वि० [सं०] सिया हुआ; बुना हुआ; भिदा हुआ । स्यूति - स्त्री० [सं०] सिलाई; बुनाई; संतान; थैला | स्यूना - स्त्री० [सं०] किरण; कमरबंद | स्यूम - पु० [सं०] जल; किरण । स्यूमक- पु० [सं०] आनंद |
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स्याँ स्यो* - अ० सहित; नजदीक, पास । स्योनाक- पु० [सं०] एक वृक्ष, सोनापादा | ग* - पु० दे० 'श्रृं ंग' |
स- पु० [सं०] पतन; शयन, सोना । स्रंसित - वि० [सं०] गिराया हुआ; ढीला किया हुआ । सी (सिन्) - वि० [सं०] फिसलने, गिरनेवाला; लटकनेवाला; ढीला पड़नेवाला; पात होनेवाला (गर्भ) । स्रक (ज) - स्त्री० [सं०] पुष्पहार (विशेषकर सिरपर बाँधनेका); माला; एक वृक्ष; एक वृत्त; एक योग (ज्यो० ) । स्रग* - स्त्री० दे० 'स्रक' ।
गाल * - पु० गीदड़ ।
खग्धरा - स्त्री० [सं०] एक वृत्त; एक देवी (बौद्ध) ।
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स्रग्विणी - स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त; एक देवी । सृजन * - पु० सृष्टि, सर्जन ।
नजना* - स० क्रि० रचना, बनाना, निर्माण करना ।
स्रद्धा * - स्त्री० दे० 'श्रद्धा' |
स्रम* - पु० श्रम, मेहनत ।
स्रमना * - अ० क्रि० श्रम करना; थक जाना । स्रमित* - वि० श्रमित, थका हुआ, क्लांत ।
स्रवंती - स्त्री० [सं०] जलप्रवाह; नदी; एक बूटी; यकृतप्रदेश ।
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स्रव - पु० [सं०] क्षरण, स्राव; निर्झर; प्रवाह; * श्रवण । स्रवण- पु० [सं०] बहना, प्रवाहित होना; गर्भपात; प्रस्वेद । स्रवन* - पुं० दे० 'श्रवण' |
स्रवना* - अ० क्रि० टपकना, चूना; गिरना । स० क्रि० बहाना, टपकाना; गिराना ।
स्रष्टव्य - वि० [सं०] सर्जन करने योग्य |
स्रष्टा (ष्ट्र ) - वि० [सं०] निर्माता, रचयिता । पु० सृष्टिका निर्माण करनेवाला, ब्रह्मा ।
त्रस्त - वि० [सं०] च्युत, पतित; ढीला पड़ा हुआ; हिलता हुआ, लटकता हुआ; धँसा हुआ (जैसे नेत्र) । स्त्राध* - पु० दे० 'श्राद्ध' |
स्राप * - पु० दे० 'शाप' | खापित* - वि० दे० 'शापग्रस्त' ।
स्राव - पु० [सं०] बहाव, क्षरण; टपकना, रिसना; गर्भपात; निर्यास ।
स्रावक - वि० [सं०] बहाने, स्राव करानेवाला । स्रावनी * - स्त्री० दे० 'श्रावणी' | स्रावित - वि० [सं०] स्राव कराया हुआ 1
स्रावी ( चिन् ) - वि० [सं०] बहाने वाला; टपकानेवाला, आनेवाला |
स्त्राव्य - वि० [सं०] स्राव कराने योग्य । त्रिंग* - पु० दे० 'शृंग' ।
स्त्रिजन * - पु० सर्जन, सृष्टि, रचना | स्त्रिय* - स्त्री० मंगल, कल्याण ।
नुक्र (च्) - स्त्री० [सं०] यज्ञाग्नि में घी डालने के लिए पलाश या खदिरकी लकड़ीकी बनी हुई खुवा ।
स्रुत - वि० [सं०] बहा हुआ, क्षरित; जो रिसकर खाली हो गया हो; * दे० 'श्रुत' ।
स्रुति - स्त्री० [सं०] बहाव; क्षरण; निर्यास; स्रोत, प्रवाह; * दे० 'श्रुति' । - कीर्ति* - स्त्री ० ' श्रुतिकीर्ति' । - माथ* - पु० विष्णु ।
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खुवा - स्त्री० [सं०] धीकी आहुति डालनेकी एक करछी ( लकड़ी की बनी ); शल्लकी ।
त्रेनी * - स्त्री० दे० 'श्रेणी' | स्रोत- पु० [सं०] धारा, सोता ।
स्रोत (स ) - पु० [सं०] जलप्रवाह, धारा; नदी; तीव्र वेग; शरीर के पोषण पहुँचानेवाले मार्ग; तरंग । स्रोतस्वती, स्रोतस्विनी - स्त्री० [सं०] नदी । सोता* - पु० दे० 'श्रोता' ।
स्रोतोंजन (स्रोतोंऽजन ) - पु० [सं०] सुरमा | स्रोन * - पु० दे० 'श्रवण' ।