SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 831
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर-सरवन खुलमखुल्ला, भरे दरबार में । -बाज़ार-अ० खुले खजाने, जाई, आगे बैठा पीठ फिराई'-कबीर । सबके सामने । -राह-अ० रास्तेके सिरेपर, रास्ते में। सरधा*-स्त्री० श्रद्धा, शक्ति । -लश्कर-पु० सेनापति । -शाम-अ० शामके शुरूमें, | सरन*-स्त्री० दे० 'शरण' । संध्या होते ही। मु०-करना-(किला, मुहिम) जीतना सरनदीप*-पु० स्वर्णद्वीप; सिंहल, लंका । हराना; दबाना, काबूमें कर लेना; दागना, छोड़ना (तोप- सरना-अ० क्रि० सरकना; काम चलना, पूरा पड़ना; बंदूक); ताश, गंजीफेमें खिलाड़ीका ऐसा पत्ता डालना निकलना; * सड़ना; बीत जाना, पूरा हो जाना-'सुनहु जिसपर दूसरे खिलाड़ियोंको बड़ा पत्ता डालना पड़े। कंस तेरो आयु सरयो'-सू० कटना । सर*-पु० बाण, चिता-'ककनू पंखि जैस सर साजा'-५०% | सरनी*-स्त्री० रास्ता, मार्ग । सरकंडा-'मसि खूटी सागर जल भीजे, सर दो लागि | सरपी-पु० सर्प । जरे'-सू० । -घर-पु० तरकश ।-पंजर-पु० बाणोंका | सरपट-स्त्री० घोड़ेकी सबसे तेज चाल जिसमें धोड़ा अगले पिंजड़ा। पैरों को एक साथ फेंकता हुआ दौड़ता है। वि० सपाट । सर(स)-पु० [सं०] झील, ताल, जलाशय; जल । | अ० सरपट चालमें। सरई-स्त्री० सरपतका एक भेद । | सरपत-पु० कुशकी जाातका एक तृण। सरकंडा-पु० एक सरपत जिसमें गाँठे होती हैं। सरपि-पु० धी। सरक-पु० [सं०] पथिकोंकी लगातार पंक्ति; ताल, झील; सरफराना*-अ० क्रि० व्यग्र होना, घबराना । रत्न सरकना; काफिला, कारवाँ; आकाश; मदिरा। सरफा-पु० दे० 'सर्फी' । * स्त्री० खुमार । सरब*-वि० दे० 'सर्व'। -बियापी-वि० सर्वव्यापक । सरकना-अ० क्रि० जमीनसे सटे हुए आगे बढ़ना, रेंगना, सरबत्तरि*-अ० सर्वत्र-'सो मुलना सरबत्तरि गाजा'खिसकना; हट जाना; काम चलना समयका टल जाना। कबीर । सरकस-पु० [अं॰] दे० 'सर्कस' । सरबदा*-अ० सर्वदा, हमेशा । सरकार-स्त्री० [फा०] राजदरबार; राज्य, हुकूमत; शासन सरबस*-पु० सर्वस्व, सब कुछ । करनेवाली संस्था, शासनमंडल अधिकारी रियासत | पु० सरबोर*-वि० दे० 'सराबोर'। प्रांतका एक विभाग, जिला (मुगलराज्य-प्रबंध); मालिका | सरम-स्त्री० लज्जा। घरका मालिक प्रबंधकर्ताः बड़ेका संबोधन, हुजूर । सरमद-वि० [अ०] सदा रहनेवाला, नित्य, कायम; मस्त । सरकारी-वि० सरकारका, राजकीय: दफ्तरका मालिक- सरमा-पु० [फा०] जाडेका मौसिम, शीतकाल । स्त्री० का। -अहलकार,-मुलाज़िम-पु० राजकर्मचारी। | [सं०] देवताओंकी कुतिया, देवशुनी ( कहा जाता है, -भामदनी-स्त्री० राज्यकी आय, राजस्व । -काग़ज़- यह यमके चार आँखवाले कुत्तेकी जननी थी); कुतिया पु० स्टांपका कागज; प्रामिसरी नोट । -काम-पु० सर- विभीषणकी स्त्री। -पुत्र-सुत-पु. कुत्ता। कारका काम, दफ्तरका काम । सरमाई-वि० [फा०]जाड़ेका । स्त्री०जाड़ेके कपड़े,जड़ावर । सरग*-पु० स्वर्ग । -तिय-स्त्री० अप्सरा। सरमाया-पु० [फा०] पूँजी, मूल धन ।-दार-पु० पूँजीसरगम-पु० स्वरोंके आरोह-अवरोहका क्रम (संगीत)। पति, धनी । -दारी-स्त्री० सरमायादार होना । वि० सरगही-स्त्री० दे० 'सहरगही' । पूँजी प्रधान, पूँजीवादको माननेवाली (सरकार, हुकूमत)। सरगुन*-वि० दे० 'सगुण' । सरय-स्त्री० [सं०] एक प्रसिद्ध नदी जिसके तटपर अयोध्या सरगुनिया*-पु. वह जो सगुणोपासक हो। स्थित है, घाघरा। सरजना*-स० क्रि० सृष्टि करना बनाना, निर्माण करना। सरराना*-अ० क्रि० हवाके तेज चलने या किसी वस्तुकी सरजा-पु० सिंह, सरदार शिवाजीकी उपाधि । तीव्र गतिसे 'सर-सर' शब्द उत्पन्न होना। सरजीव*-वि० सजीव, जीववाला (कबीर)। सरल-वि० [सं०] सीधा, जो वक्र न हो; सही, ठीक सरण-पु० [सं०] गमन, सरकना, खिसकना; लौह किट्ट । खरा, निश्छल, सीधे स्वभावका; यथार्थ, असली; आसान, वि० युद्धसे संबद्ध । -मार्ग-पु० गमन करनेका मार्ग सुकर । पु० चीड़का पेड़ अग्नि; गंधाविरोजा । -काष्ठसरणि, सरणी-स्त्री० [सं०] मार्ग, रास्ता; व्यवस्था पु० चीड़की लकड़ी । -द्रव,-निर्यास-पु. गंधाबितरीका; सीधी या लगातार पंक्ति रेखा; पगडंडी। रोजा ।-रेखा-स्त्री० (स्ट्रट लाइन) बह रेखा जिसकी सरताबरता-पु० बँटाई; हिस्सा-बाँट । मु०-करना- दिशा सर्वत्र एक ही रहती है। एक दूसरेकी सहायतासे काम चलाना। सरलता-स्त्री० [सं०] सीधापन; खरापन, ईमानदारी, सरतारा*-वि० निश्चित, बाफुरसत, सावकाश-'बैद निष्कपटता, सिधाई; आसानी; सादगी। . भये हरगोविंदजी तबसे जमदूत फिर सरतारे'-गुलाब । सरलित-वि० [सं०] सीधा किया हुआ; सीधा । सरद-वि० दे० 'सर्द' । * स्त्री० शरत् ऋतु । सरलीकरण-पु० [सं०] (सिप्लिफिकेशन) कठिन विषयसरदई-वि० दे० 'सर्दई । को आसान बना देना; किसी जटिल या कठिन भिन्नको सरदर-अ० औसतन एक सिरेसे।। सरल रूपमें परिणत करना (गणित)। सरदा-पु० दे० 'सर्दा'। सरव-वि० [सं०] शब्दायमान । * पु० दे० 'सराव' । सरधन*-वि० धनी, अमीर-'जो निर्धन सरधन के सरवन-पु० दे० 'श्रमण'; 'श्रवण' । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy