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अवमर्ष-अवलोक्य
शास्त्रके अनुसार पाँच प्रकारकी संधियोंमेंसे एक । अवरोधक-वि० [सं०] घेरा डालनेवाला; रोकनेवाला। अवमर्ष-पु० [सं०] आलोचना; नाटककी पाँच मुख्यसंधियों- अवरोधन-पु० [सं०] घेरना, घेरकर रोक रखना; (मुख, प्रतिमुख, गर्भ, अवमर्ष और निर्वहण) मेंसे एक। घेरा, रोक । अवमान-पु० [सं०] अवज्ञा, अपमान; तिरस्कार (कंटेम्प्ट) अवरोधना*-स० क्रि० रोकना, मना करना; बाधा डालना। न्याय-व्यवस्थामें हस्तक्षेप; शासकादिके आदेशोंकी अवज्ञा। अवरोधिक-पु० [सं०] अंतःपुरका प्रहरी। वि० बाधा अवमानन-पु०, अवमानना-स्त्री० [सं०] तिरस्करण। डालनेवाला; रोक डालनेवाला। अवमानित-वि० [सं०] अपमानित; तिरस्कृत ।
अवरोधी (धिन)-वि० सं०] दे० 'अवरोधक' । अवमूल्यन-पु० [सं०] (डीवेलुएशन) किसी सरकार द्वारा अवरोप-पु० सं०] (डिसचार्ज) किसी आरोप या अभि
अन्य देश या देशोंकी मुद्राओंकी तुलनामें अपने देशकी | योगसे मुक्त करना या होना। मुद्राका मूल्य घटा दिया जाना, मुद्राका विनिमय मल्य अवरोह-पु० [सं०] उतार, ऊपरसे नीचे आना; संगीतमें या सापेक्ष मूल्य गिरा देना।
स्वरोंके ऊपरसे नीचे आनेका व्रम; बरोह । अवमूल्यपर-अ० (बिलो पार) निर्धारित या अंकित मूल्यसे | अवरोहण-पु० [सं०] उतरना, नीचे आनेकी क्रिया; ऊपर कम दामपर।
जाना, चढ़ना। अवयव-पु० [सं०] शरीर या शरीरका कोई भाग, (हाथ- | अवरोहना-अ० क्रि० उतरना; चढ़ना। स० क्रि० पाँव आदि) अंग, (वस्तुका) अंश; तर्क या वाक्यके पाँच रोकना; अंकित करना । अंगों (प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन) मेंसे अवरोही (हिन्)-वि० [सं०] नीचे आनेवाला। पु० कोई एक उपकरण ।
| ऊपरसे नीचे आनेवाला स्वर; वटवृक्ष । अवयवार्थ-पु० [सं०] शब्दके अवयवों( प्रकृति-प्रत्यय )से | अवर्ण-वि० [सं०] बिना रंगका; बदरंग; वर्ण-धर्म-रहित । निकलनेवाला अर्थ।
अवर्ण्य-वि० [सं०] वर्णनके अयोग्य । पु० उपमान । अवयस्क-वि० [सं०] जो अभी प्राप्तवयस्क न हो, नाबा- अवत-पु० दे० 'आवर्त' । लिग (माइनर)।
अवर्धमान-वि० [सं०] न बढ़नेवाला । अवर-वि० [सं०] छोटा दरजे, कोटि, गुण आदि में नीचाः | अवर्ष, अवर्षण-पु० [सं०] वर्षा न होना, सूखा । हीन; पीछे होनेवाला; बादका; अंतिम; * और, दूसराः | अवलंघना*-स० क्रि० लाँघना । बलहीन। -सदन-पु० ( लोअर हाउस) दे० 'निम्म अवलंब-पु० [सं०] सहारा, आश्रय; भरोसा; लकुट । सदन', अवरागार ।
अवलंबन-पु० [सं०] सहारा लेना; अपनाना; अवलंब । भवरत-वि० [सं०] रुका हुआ; निवृत्त; विरामयुक्त । * अवलंबना*-सक्रि० आश्रय लेना । पु० आवर्त्त, पानीका भँवर ।
अवलंबित-वि० [सं०] आश्रित, मुनहमर । अवरागार-पु० [सं०] (लोअर हाउस) संसद या विधान- अवलंबी (बिन्)-वि० [सं०] अवलंबन करनेवाला । मंडलका निम्न सदन-लोकसभा, कामंस सभा, प्रति- | अवलि*-स्त्री० दे० 'अवली' । निधिसभा, विधानसभा, इ०; प्रथम सदन ।
अवली-स्त्री० पात समूह; नवान्नके लिए खेतसे काटकर अवराधक*-वि० आराधना करनेवाला ।
लाया हुआ कुछ अंश।। अवराधन*-पु० आराधन ।।
अवलीक-वि० निष्पाप; दोषरहित; शुद्ध । अवराधना*-स० क्रि० पूजा करना; सेवा करना। अवलेखना*--स० क्रि० खुरचना; चिह्न करना । अवराधी*-वि० दे० 'अवराधक' ।।
अवलेखनी-स्त्री० [सं०] कंघी; ब्रश।। अवरार्ध-वि० [सं०] उत्तरार्द्ध । पु. पं.छे या नीचेका अवलेप-पु० [सं०] लेप, उबटन, चंदन आदि; लेप करना। आधा भाग।
भवलेपन-पु० [सं०] लेपन; उबटन, तेल आदि; लेपनकी अवरुद्ध-वि० [सं०] रुका या रोका हुआ; प्रच्छन्न; घिरा | क्रिया; लगाव; धमंड; चंदन वृक्ष । हुआ; बंद ।
अवलेह-पु० [सं०] चटनी; चाटकर खायी जानेवालों भवरुद्धा-स्त्री० [सं०] रखेली।
दवा; माजून। अवरूद-वि० [सं०] उतरा हुआ, आरूढका उलटा। अवलेहन-पु० [सं०] चाटना; चटनी। अवरेखना*-स० क्रि० उरेहना, तसवीर खींचना; देखना; अवलोक, अवलोकन-पु० [सं०] देखना; अनुसंधान; जानना; सोचना।
निरीक्षण; दृष्टि; दृष्टिपात । अवरेब-पु० कपड़ेकी तिरछी काट; वक्र गति; * उलझन, अवलोकक-वि० [सं०] देखनेकी इच्छा रखनेवाला कठिनाई; झगड़ाव्यंग्य, उक्तिकी वक्रता । -दार-वि० (गुप्तचरके रूपमें)। तिरछी काटका (कपडा)।
अवलोकना*-स० क्रि० देखना; जाँचना। अवरोक्त-वि० [सं०] जिसका अंतमें या बादमें उल्लेख अवलोकनि-स्त्री० देखनेका ढंग, दृष्टि, चितवन । हुआ हो (लैटर)।
अवलोकनीय-वि० [सं०] देखने योग्य । अवरोध-पु० [सं०] रोक, अटकाव; चारों तरफ डाला गया। अवलोकित-वि० [सं०] देखा हुआ । पु० एक बुद्ध; घेरा; आवरण, ढकना बाड़ा; अंतःपुर: किसी राजाकी| चितवन । रानियोंका समूह ।
| अवलोक्य-वि० [सं०] देखने योग्य ।
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