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पीतवापचार - पु० [सं०] कम तौलना, डाँड़ी मारना (को०)। पौतिक- वि० [सं०] दुर्गंधवाले द्रव्यका बना हुआ; (सेप्टिक) ( वह व्रण) जिसमें दुर्गंध या सड़न पैदा हो गयी हो । पौत्र - वि० [सं०] पुत्रसंबंधी; पुत्रका | पु०बेटेका बेटा, पोता। पौत्रिक - वि० [सं०] पुत्र-संबंधी ; पौत्र-संबंधी | पौत्रिकेय - पु० [सं०] पुत्रके स्थानपर माना हुआ कन्याका पुत्र ।
पौत्री - स्त्री० [सं०] पोती; दुर्गा ।
पौद - स्त्री० छोटा पौधा; एक स्थान से उखाड़कर दूसरे स्थानपर लगाने लायक छोटा पौधा; संतान; उपज; * पाँवड़ा । [नयी पौद - नयी पीढ़ी ।]
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पौरना + - अ० क्रि० तैरना । परि, पौरी* - स्त्री० पौरी । परिया* - पु० दे० 'पौरिया' । पौंश्चलीय - वि० [सं०] कुलटा-संबंधी; कुलटाका | पाँसरा--पु० दे० 'पौसला' । पौ - स्त्री० प्रातःकालका प्रकाश; पौसला, प्याऊ; पासेका एक दाँव । * पु०जड़; पाँव । मु०-फटना - तड़का होना । - बारह पढ़ना - पासे में जीतका दाँव पड़ना; लाभका मौका मिलना । - बारह होना- पासेमें जीतका दाँव पड़ना; विजय होना; लाभ ही लाभ होना; खूब बन आना । पौआ-पु० सेरका चौथा हिस्सा मिट्टी या धातुका वह बरतन जिसमें पावभर दूध, पानी आदि अँटे । पौगंड - पु० [सं०] पाँच से दस (किसी-किसी के मत से सोलह ) वर्षतककी अवस्था, पोगंडावस्था । वि० बालोचित; बालकों जैसा ।
पीठ - स्त्री० जमीनका एक तरहका बंदोबस्त जिसमें खेत हर साल नये काश्तकारको जोतनेके लिए दिया जाता है। पौड़ना * - -अ० क्रि० दे० 'पौढ़ना' ।
पौड़ना - अ० क्रि० लेटना; झूलना ।
पौढ़ाना - स० क्रि० सुलाना, लेटाना; झुलाना ।
पौतवाध्यक्ष - पु० [सं०] मालकी तौलकी देखरेख करने पौराण - वि० [सं०] प्राचीन कालका; पुराण-संबंधी; पुराणका;
वाला अधिकारी (कौ० ) ।
पौदर - स्त्री० पैरका निशान, चरणचिह्न; लोगों के पैदल चलनेसे बनी हुई राह, पगडंडी; कोल्हूके चारों ओरका वह मार्ग जिससे होकर उसे खींचनेवाला बैल घूमा करता है; मोट खींचनेवाले बैलोंके कुएँके पासतक बार-बार आने जानेका ढालवाँ रास्ता । पौदा - पु०दे० 'पौधा'; बुलबुलकी कमर में बाँधा जानेवाला फुंदना । -गाह - पु०, स्त्री० वह जगह जहाँ छोटे पौधे लगे हों ।
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पौध-स्त्री० उपज, पैदाइश ।
पौधा - पु० छोटा पेड़; नया पेड़ । पौधि* - स्त्री० दे० 'पौद' ।
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परना - पौला
पौना- पु० पौनका पहाड़ा; गोल और चिपटे सिरेकी छेददार या बिना छेदवाली लोहे आदिकी कलछी । पौनार - स्त्री० कमलकी नाल । पौनारि - स्त्री० दे० 'पौनार' |
पौनी-स्त्री० नाई, बारी आदि जिन्हें विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर इनाम दिया जाता है; छोटा पौना । पौने - वि० जो किसी संख्याका तीन चौथाई हो (संख्यावाचक शब्दों के साथ - जैसे पौने तीन - २१) । पौमान* - पु० दे० 'पवमान'; जलाशय । पोरंध्र - वि० [सं०] स्त्री-संबंधी ।
पौर- *स्त्री० ड्योढ़ी । वि० [सं०] पुर-संबंधी; नगरका; जो नगर में पैदा हुआ हो । पु० पुरवासी, नागरिक । -कार्यपु० नगर-संबंधी कार्य; जनताका कार्य । -जन-पु० नागरिक । -जनपद-वि० नगर और जनपदका । - मुख्यपु० नगरका प्रमुख व्यक्ति । वृद्ध-पु० प्रमुख नागरिक । - सख्य- पु० एक नगरका नागरिक होना, सहनागरिकता । पौरना - अ० क्रि० तैरना ।
पौरव - वि० [सं०] पुरु-संबंधी; पुरुका; पुरुके गोत्र में उत्पन्न । पौरांगना - स्त्री० [सं०] नगरकी स्त्री, नागरी । पौरा+ - पु० रखे हुए चरण, कदम, आगमन ।
जिसका कथन या उल्लेख पुराण में हो । पौराणिक - वि० [सं०] दे० 'पौराण'; पुराणोंका जानकार । पु० पुराणका जानकार व्यक्ति; पुराणवाचक | पौरिक - पु० [सं०] नागरिक; नगरका शासक | पौरिया - पु० ड्योढ़ीदार, द्वारपाल ।
पोरी - स्त्री० मकानका वह कोठरी या गलीकी तरहका भीतरी भाग जो प्रवेश करते ही पड़ता है, ड्योढ़ी; खड़ाऊँ । पौरुष - वि० [सं०] पुरुष संबंधी; : पुरुषका । पु० पुरुषका भाव, पुरुषत्व; पुरुषार्थ; शुक्रः उद्यमः पराक्रमः ऊँचाई या गहराई की एक नाप, पुरसा; एक आदमीके ले जानेभरका बोझ ।
पौरुषेय - वि० [सं०] पुरुष संबंधी; पुरुषका; मानवीय, मनुष्यका बनाया हुआ मनुष्यकृत । पौरुष्य - पु० [सं०] साहस, मरदानगी । पौरोहित्य- पु० [सं०] पुरोहितका पद या कर्म । पौर्णमासिक - वि० [सं०] पूर्णिमा-संबंधी पूर्णिमा के दिन होनेवाला ।
पौर्णमासी - स्त्री० [सं०] पूर्णिमा,पूनो । पौर्णमी, पौर्णिमा - स्त्री० [सं०] पूर्णिमा, पूनो । पौर्व - वि० [सं०] पहलेका; पूरबी ।
पौर्वापर्य - पु० [सं०] पूर्वापरका भाव, पूर्वापरत्व; अनुक्रम । पौर्वाह्निक- वि० [सं०] पूर्वाह्न संबंधी ; पूर्वाह्न में किया जानेवाला ।
पौल-स्त्री० रास्ता; सिंहद्वार । पौलना* - स० क्रि० काटना |
पौनःपुनिक- वि० [सं०] बार-बार होनेवाला । पौनःपुन्य- पु० [सं०] अनेकशः आवृत्ति, बार-बार होना । पौन - पु०, स्त्री० हवा, वायु; जीव, प्राण, भूत, प्रेत । वि० तीन-चौथाई, पूर्णसे चतुर्थांश कम । पौनरुक्त, पौनरुक्त्य - पु० [सं०] दुबारा उक्त होनेका भाव, पौला - पु० एक प्रकारकी खड़ाऊँ जिसमें खूँटीकी जगह आवृत्ति ।
पौलस्त्य - वि० [सं०] पुलस्त्य-संबंधी; पुलस्त्य के गोत्र में उत्पन्न । पु० रावण; कुबेर; विभीषण; चंद्रमा ।
रस्सी लगी रहती है ।
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