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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६७ जंगली - जक्त जंपना* - स० क्रि० कहना, बोलना । " जिसमें लोहे या लकड़ीकी छड़ें या जाली जड़ी हो; छड़ जंद-पु० आर्योंकी ईरानी शाखाकी प्राचीन भाषा; जरथुस्त्री या जाली लगी हुई खिड़की । पारसियों का प्रथम धर्मग्रंथ, जंद अवेस्ता । जंगली - वि० जंगलमें मिलने या पैदा होनेवाला, वन्य जंदरा - पु० जाँता; कल । बिना बोये उगनेवाला; जो पालतू न हो, बनैला, असभ्य, उजड्डु | पु० जंगलमें रहनेवाला, वनवासी । जंगार - पु० [फा०] ताँबेका कसाव, तूतिया; एक रंग । जंगारी - वि० [फा०] जंगारके रंगका, नीला । जंगाल - पु० [सं०] बाँध; मेंड़; दे० 'जंगार' | जंगाली - वि० दे० 'जंगारी' । पु० एक तरहका रेशमी कपड़ा । जंबीर- पु० [सं०] जैबीरी नीबू; मरुवा; वनतुलसी । जंबीरी नीबू - पु० एक तरहका अधिक खट्टा नीबू । जंबु, जंबू - पु० [सं०] जामुनका पेड़ और फल | - खंडपु० दे० 'जंबुद्वीप' | -द्वीप-पु० पुराणानुसार धरती के सात महाद्वीपों में से एक जिसके नौ खंडों में से एक भारतवर्ष भी है । जंगी-वि० [फा०] युद्ध-संबंधी; सेना-संबंधी, फौजी; युद्धो चित ( जंगी काररवाई ); युद्धोपयोगी; विशालकाय, बड़े डील-डौलका; लड़ाका, झगड़ालू । -जवान - पु० लंबाचौड़ा, बड़े डील-डौलका जवान जहाज़ - पु० लड़ाई में काम आनेवाला जहाज, युद्धपोत । - बेड़ा - पु० जंगी जहाजों का बेड़ा | जंघा - स्त्री० [सं०] जाँध, रान; पिंडली; कैचीका दस्ता । जँचना-भ०क्रि० जाँचमें ठीक आना; अच्छा मालूम होना, ठीक लगना; पसंद आना; जाँचा जाना । जंजर, जंजल * - वि० टूटा-फूटा, जीर्ण; निकम्मा | जंजार*, जंजाल - पु० झंझट, वखेड़ा; फँसाव, झमेला; लंबी नलीकी भारी बंदूक (प्रा० ); बड़े मुँहकी तोप (प्रा० ) । जंजालिया - वि० दे० 'जंजाली' | जंजाली - वि० बखेड़िया, फसादी । स्त्री० वह रस्सी और घिरनी जिनसे पाल चढ़ाने उतारनेका काम लेते हैं । जंजीर - स्त्री० [फा०] साँकल, श्रृंखला, लड़ी; बेड़ी । जंजीरा - पु० जंजीरकी शकल में बटा हुआ डोरा; कशीदेकी सिलाई जिससे जंजीरसी बनती जाती है, लहरिया - ( ३ ) दार - वि० लहरियादार (सिलाई) । जंतर-पु० यंत्र, तावीज; ताँबे-चाँदी आदिका तावीज जिसमें यंत्र भरकर पहनाया जाय; गलेमें पहननेका एक गहना । - मंतर - पु० यंत्र-मंत्र; जादू-टोना; वेधशाला । अंतरी - स्त्री० पंचांग, पत्रा; छोटा जंतर । पु० जंतर-मंतर । करनेवाला; दे० 'जंत्री' । जैतसार - स्त्री० वह घर या स्थान जहाँ जाँता गड़ा हो । जंता - पु० यंत्र; तार खींचनेका औजार । वि० यंत्रणा देनेवाला; नियमन करनेवाला । जंतु - पु० [सं०] प्राणी, जीव; पशु; कीड़ा-मकोड़ा; जीवात्मा । - विज्ञान - पु० (, जूलॉजी) जंतुओं - पशु-पक्षियों आदि - की उत्पत्ति, विकास, स्वभाव, वर्गीकरण इत्यादिका विवेचन करनेवाला शास्त्र । - शाला - स्त्री० वह स्थान जहाँ प्रदर्शन या अध्ययन करनेके लिए जीवित जंतु रखे जायँ, चिड़ियाघर | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंत्र - पु० यंत्र, तावीज; ताला । - मंत्र - पु०दे० 'जंतर-मंतर' | जंत्रना* - स० क्रि० ताला लगाना - 'भरत भगति सबकै मति जंत्री' - रामा० । स्त्री० दे० 'यंत्रणा' । जंत्रित* - वि० यंत्रित, जकड़ा हुआ; बंद | जंत्री- पु० वीणा । वि० वीणावादक । स्त्री० तिथिपत्र | जंबुक - पु० [सं०] जामुन; स्यार, शृगाल; केवड़ा | जंबुमान् ( मत्) - पु० [सं०] पहाड़ | जंबूर - पु० [अ० जन्बूर] भिड़; शहद की मक्खी; पुराने समयकी एक छोटी तोपख़ाना-पु० भिड़ या शहदकी मक्खियोंका छत्ता । -ची- पु० तोपची । जंबूरक-स्त्री० दे० 'जंबूर'; तोपकी चर्ख; भँवरकली । जंबूरा - पु० दे० 'जंबूरक'; एक औजार, बाँक । जंभ - पु० [सं०] डाढ़; ढुड्डी, चबाना, भक्षण; अंश; जम्हाई; कर्कशः महिषासुर का बाप जो इंद्रके हाथों मारा गया; जंबीरी नीबू । - द्विद्(ष्),-भेदी ( दिन), -रिपु- पु० इंद्र | जंभक- वि० [सं०] जम्हाई लेनेवाला; भक्षण करनेवाला । जंभा - स्त्री० [सं०] जम्हाई । जंभाई-स्त्री० दे० 'जम्हाई' । जँभाना - अ० क्रि० दे० 'जम्हाना' । जंभारि - पु० [सं०] इंद्र; वज्र; अग्नि । जैतसर - पु०, जँतसारी - स्त्री० वह गीत जो चक्की पीसते जकंदना * - अ० क्रि० छलाँग मारना; झपटना । वक्त स्त्रियाँ गाती हैं । जकंदनि * - स्त्री० दौड़धूप; उलझन ज - पु० [सं०] मृत्युंजय; जन्म; पिता । वि० सामासोत में 'में या से उत्पन्न' (जैसे- जलज, वातज, अंडज इ० ) । जई - स्त्री० जौकी जातिका एक अनाज, ओट; जौका अँखुआ; खीरे, कुम्हड़े आदिकी बतिया । ज़ईफ़ - वि० [अ०] बूढ़ा; दुर्बल जईफी - स्त्री० [अ०] बुढ़ापा; दुर्बलता | जऊ * - अ० यद्यपि । जकंद - स्त्री० दे० 'ज़क़द’। ज़क्रंद, जगंद - स्त्री० [फा०] छलाँग, चौकड़ी । जक- स्त्री० हठ; धुन, रटना । ( - बँधना-रट लगना) । ज़क - स्त्री० [अ०] हार, पराजय; नीचा देखना; हानि । जकड़ - स्त्री० जकड़ने, कसकर बाँधनेकी क्रिया या भाव । - बंद - वि० कसकर बाँधा हुआ । पु० कड़ा बंधन, पकड़ । जकड़ना-स० क्रि० कसकर बाँधना । अ० क्रि० ( किसी अंगका ) अकड़ना । जकना * - अ० क्रि० भौचक्का होना, स्तंभित होना । जकरना * - स० क्रि० दे० 'जकड़ना' । जकात - स्त्री० दे० 'जकात'; देसावर से आनेवाले भालपर लगनेवाला कर, आयातकर । जकात - स्त्री० [अ०] दान, खैरात । जकाती - पु० जकात वसूल करनेवाला | जकित * - वि० चकित, भौचक्का । जक्त * - पु० जगत्, संसार । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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