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उल्का - स्त्री० [सं०] लुक; लौ; रातमें आकाशसे टूटकर गिरनेवाला प्रकाशमय पिंड या तारा; मशाल । -धारी (रिन् ) - पु० मशालची । -पात-पु० आकाशसे जलते fuser टूटकर गिरना । - पाषाण-पु० जमीनपर गिरी हुई उल्का जो पत्थरकी सिल-जैसी हो ( मीटियर स्टोन) । - मुख- पु० प्रेतोंका एक भेद, अगियाबैताल; गीदड़ । उल्था - पु० भाषांतर, तर्जुमा; अनुवाद |
उल्लंघित - वि० [सं०] लाँधा हुआ; तोड़ा हुआ; अतिक्रांत । उल्लसन - पु० [सं०] उल्लसित होना; हर्ष; रोमांच, पुलक । उल्लसित - वि० [सं०] हर्षयुक्त, मुदित; चमकता हुआ । उल्लाला - पु० एक मात्रिक छंद । उल्लास - पु० [सं०] हर्ष; आह्लाद; उमंग; आरंभ; कांति; प्रकाश; परिच्छेद; वह अर्थालंकार जहाँ किसीके गुण या दोष से किसी दूसरेका गुण या दोष होना दिखलाया जाय । उल्लासना * - स० क्रि० प्रकट करना; प्रसन्न करना । उल्लिखित - वि० [सं०] लिखा हुआ; पूर्वकथित; वर्णित । उल्लू - पु० एक पक्षी जिसे दिनमें नहीं दिखाई देता और जो बहुत मनहूस माना जाता है, उलूक । वि० मूर्ख, नासमझ । मु० - का गोश्त खिलाना - बेवकूफ बनाना; वश में कर लेना । - का पट्टा - निपट मूर्ख । -बनानाबेवकूफ बनाना; ठगना । -बोलना- उजड़ जाना, वीरान होना ।
उणमा (मन्) - स्त्री० [सं०] गरमी । उष्णीष-पु० [सं०] पगड़ी, साफा; मुकुट |
उल्लंघन - पु० [सं०] लाँधना; विरुद्धाचरण; (आज्ञा, नियम उष्म- पु० [सं०] गरमी; ऊमस; धूप, ग्रीष्म ऋतु; जोश ।
आदिको तोड़ना |
- ज - पु० पसीने या मैलसे पैदा होनेवाले कीड़े-जूँ, खटमल आदि ।
उल्लंघना* - स० क्रि० उल्लंघन करना |
उष्मा (मन्) - स्त्री० [सं०] ताप; वाप; ग्रीष्म ऋतु; जोश । उसकन - पु० बरतन माँजनेका तृणादिका मुट्टा । उसकाना, उसकारना* - स० क्रि० उभाड़ना; चला देना; ऊपर उठना ।
उल्लेख- पु० [सं०] चर्चा, जिक्र; वर्णन; खुदाई; वह अर्था लंकार जहाँ एक ही वस्तुका विषयभेद या द्रष्टाभेद के कारण अनेक प्रकार से वर्णन किया जाय । उल्लेखनीय, उल्लेख्य - वि० [सं०] उल्लेख करने योग्य; कहने योग्य, बताने योग्य ।
उल्व - पु० [सं०] गर्भस्थ बच्चेपर लिपटी रहनेवाली झिल्ली, आँवल ।
उवना* - अ० क्रि० दे० 'उगना' |
उवनि * - स्त्री० उदयः प्रकट होना ।
उशी (पी) र, उशी (पी)रक - पु० [सं०] खस । उषः ( प ) - स्त्री० [सं०] भोर, तड़का, भोरकी लाली । - काल - पु० भोर, तड़का -पान-५० बहुत सबेरे उठकर नाकके द्वारा पानी पीना ।
ऊ - देवनागरी वर्णमालाका छठा (स्वर) वर्ण । ॐध-स्त्री० नींदका झोंका, निद्रागम; तंद्रा, झपकी । ऊँघन - स्त्री० झपकी, हलकी नींद ।
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उल्का - ऊँच
का, अधिक गरम, भाग। -कर,-दीधिति - पु० सूर्य । उष्णता स्त्री०, उष्णत्व - पु० [सं०] गरमी । उष्णांक - पु० [सं०] (कैलरी) तापकी वह मात्रा जो एक ग्राम पानोको एक अंश सेंटीग्रेटतक गरम बनानेके लिए आवश्यक हो ( तापमापक इकाई) ।
उषा - स्त्री० [सं०] भोर, प्रत्यूषः तड़का; भोरकी लाली; बाणासुर की कन्या जिसका ब्याह अनिरुद्ध से हुआ था । उष्ट्र - पु० [सं०] ऊँट । - यान-५० ऊँट-गाड़ी | उष्ट्रिका, उष्टी-स्त्री० [सं०] ऊँटनी ।
उष्ण- वि० [सं०] गरम गरम तासीरवाला; तीखा । - कटिबंध- पु० पृथ्वीका कर्क और मकर रेखाओंके बीच
|उसारा - पु०, उसारि - स्त्री० सायबान, बरामदा । उसास - स्त्री० दे० 'उसाँस' |
उसाखी * - स्त्री०छनभर सुस्ताने की मुहलत - ' जाने को केशव केतिक बार मैं सेसके सीसन्ह दीन्ह उसासी' - राम० । उसिनना - स० क्रि० दे० 'उसनना' । उसीर *-५० दे० 'उशीर' ।
उसीला * - पु० वसीला; सहायक - 'साहब कहूँ न रामसे तोसे न उसीले'- विनय० । उसीस (सा)* -
* - पु० सिरहाना; तकिया ।
उसनना-स० क्रि० उबालना, पकाना । उसनाना - स० क्रि० उसननेके कार्य में लगाना, उबलवाना। उसनीस* - पु० दे० 'उष्णीष' ।
उसरना* - अ० क्रि० घटना; अलग होना; बीतना; भूलना । उसलना* - अ० क्रि० दे० 'उसरना'; पानी में उतराना । उससना * - अ० क्रि० साँस लेना; उसाँस लेना; खिसकना । उसाँस - स्त्री० ऊपरको खींची हुई या लंबी साँस; दुःखसूचक साँस; साँस ।
उसाना-स० क्रि० दे० 'ओसाना' ।
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उसार (ल) ना*[* - स० क्रि० उखाड़ना; भगाना; + मकान या दीवार आदि खड़ी करना ।
उसूल - पु० [अ०] नियम, कायदा; सिद्धांत ('असल' का बहु ० ) । उसूली - वि० [अ०] उसूलका; सैद्धांतिक । उस्तरा - पु० दे० 'उस्तुरा' |
उस्ताद - पु० [अ०] गुरु; शिक्षक । वि० प्रवीण; विश; धूर्त । उस्तादी - स्त्री० [अ०] गुरुआई; प्रवीणता; चालाकी । उस्तानी - स्त्री० [अ०] गुरुआनी; शिक्षिका; धूर्त स्त्री । उस्तुरा - पु० [फा०] छुरा, बाल मूँड़नेका औजार । उस्वास * - स्त्री० दे० 'उसाँस' । उहाँ*
* - अ० वहाँ ।
| उहार-५० पालकी आदिपरका परदेका कपड़ा ।
ऊ
ऊँघना - अ० क्रि० नींद में झूमना, उनींदा होना; ढिलाईसे काम करना ।
ऊँच * - वि० ऊँचा; बड़ा; कुलीन, ऊँची जातिका । -नीच
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