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मुंडी-मुँह
६४२ मुंडी-स्त्री. वह स्त्री जिसका सिर मुंड़ा हुआ हो; बेवा बात करना)। -माँगा-वि० अपना माँगा हुआ (दाम); औरत; गोरखमुंडी।
मनका माँगा हुआ, मनोभिलषित (मुँहमाँगी मुराद)। मुंडी(डिन्)-वि० [सं०] जिसके सिरके बाल मूंड़ दिये -लगा-वि० ढीठ, शोख, सिरचढ़ा। मु०-आँसुओं
गये हों; बिना सींगका । पु० नाई; शिव; संन्यासी। से धोना-बहुत रोना । -आना-मुँहमें छाले पड़ना । मुड़ेर-स्त्री० खेतकी मेंड़, दे० 'मुँडेरा'।
-इतना-सा निकल आना-चेहरा धंस जाना, बहुत मुँडेरा-पु० छतके चारों ओरकी मेंड़ जैसी दीवार पुश्ता। दुबला हो जाना; लज्जित हो जाना । -उजला होनामुंडेरी-स्त्री० छोटा मुंडेरा।
इज्जत रह जाना, बेआबरूईसे बच जाना। -उठाकर मुंडो-स्त्री० सिरमुँड़ी स्त्री; राँड़ ।
कहना-बेसोचे-समझे बोलना, जो जीमें आये बक देना। मुंतज़िम-पु० [अ०] इंतजाम करनेवाला, प्रबंधक । -उठाये चले जाना-बेधड़क, बिना इधर-उधर देखे मुंतज़िर-पु० [अ०] इंतजार करनेवाला ।
चले जाना। -उतरना-मुंहपर तेज, कांति न रहना मुंदना--अ० क्रि० आँखका बंद होना, पलक लगना चेहरेसे सुस्ती, उदासी प्रकट होना ।-औंधा कर पड़ना ढकना, बंद होना; छिपना, तिरोहित होना।
या लेटना-दुःख, रोष या मानसे अलग जाकर पड़ना । मुदरी-स्त्री० छल्ला, अँगूठी ।
-करना-फोड़ेका फूटना । (किसी ओरको)-करनामुंशियाना-वि० मुंशियों जैसा; मुंशीके उपयुक्त ।
किसी ओर जानेका विचार करना ।-का कच्चा-जिसके मुंशी-पु० [अ०] मजमून सोचने, लिखनेवाला; लेखक; पेटमें बात न पचे जिसकी बातका भरोसान हो; लगामका सुंदर भाषा, सुंदर अक्षर लिखनेवाला; किरानी; मुहरिर; झटका न सहनेवाला (घोड़ा)। -का कड़ा या सख़्तउर्दू-फारसी पढ़ानेवाला। -ख़ाना-पु० उर्दू-फारसीका मुँह जोर लगामका अंकुश न माननेवाला (घोड़ा)। -का दफ्तर । -गिरी-स्त्री० लेखनवृत्ति, मुहरिरी।
कौर या निवाला-बहुत आसान काम 1-का निवाला मुंसरिम-पु० [अ०] प्रबंध करनेवाला; जजी, कलेक्टरी | छीनना-किसीकी रोटी छीनना, मिलती हुई वस्तुसे आदिके दफ्तरका प्रधान ।
वंचित करना। -का मीठा-ऊपरसे भला, पर दिलका मुंसिफ-पु० [अ० ] इंसाफ करनेवाला, न्यायाधीश खोटा; चिकनी-चुपड़ी बातें करनेवाला ।-काला करनान्याय विभागका एक अधिकारी जिसका पद सब-जजसे (अपना) मुँहमें कालिख पोतना; व्यभिचार, बुरे कर्म छोटा होता है।
करना; दूर होना, फिर मुँह न दिखाना (जा अपना मुँह मुंसिफी-स्त्री० [अ०] न्यायशीलता; मुंसिफका पद; काला कर); (दूसरेका) बेइज्जती करना; दूर करना, फेंकना; मुंसिफकी अदालत ।
लानत भेजना (मुँहकाला करो ऐसी चीजका)। (किसीमह-पु० प्राणिदेहके शिरोभागमें स्थित वह छिद्र जिसमें का)-काला हो-मुँहमें कालिख लगे नाश हो (शाप)।
आहारग्रहण और बोलनेके साधनरूप अवयव होते हैं, -काला होना-मुँहमें कालिख लगना, बेइज्जत होना; मुख; चेहरा; छेद, सूराख; बरतन आदिका वह छेद दूर होना; नष्ट होना। -का सच्चा-बातका धनी, जिससे कोई चीज अंदर डाली जाय; बाढ़, धार; किनारा; वादेका पक्का । -किलना-मुँह कील दिया जाना, जबान योग्यता, लियाकत, सामर्थ्य हिम्मत; मजाल । अ० की बंद हो जाना। -की खाना-थप्पड़ खाना, पिटना; ओर, दिशामें (पूरब मुँह, किस मुँह वैठे हो ?)। -अंधेरे कियेका फल पाना; बुरी तरह हारना, जलील होना। या उजाले-अ० बहुत सबेरे, तड़के। -अखरी*-वि० -की या मुँहसे बात छीनना-एक आदमी जो बात जबानी, मौखिक ।-चंग-पु० एक बाजा ।-चटौवला- कहना चाहता हो दूसरेका उससे पहले कह देना। स्त्री० चूमाचाटी; बकवाद । -चोर-वि. जो दूसरोंसे -कील देना-मंत्र-बलसे जबान बंद कर देना, चुप करा मुँह छिपाये, दूसरोंके सामने जानेसे बचनेवाला; झेंपू । देना; घूससे मुँह बंद कर देना। -के कौए उड़ जाना-चोरी-स्त्री० मुँहचोर होना । -छुआई-स्त्री० पूछने
चेहरेपर हवाइयाँ उड़ने लगना; हवास गायब हो जाना। की रस्म अदा करना। -छट-वि० मुँहफट । -ज़ोर- -के बल गिरना-किसी वस्तुकी प्राप्ति के लिए आतुर वि० बहुत बोलनवाला; लड़ाका, कल्लादराज; लगामको हो जाना; धोखा खाना। -खुलना-(फोड़े आदिका) न माननेवाला (घोड़ा)। -ज़ोरी-स्त्री० लड़ाकापन, मुँह बड़ा हो जाना; बोलने में ढीठ हो जाना, बदजबानीकी कल्लादराजी; बदलगामी। -दर-मुह-अ० सामने, दू
आदत लगना। -खुलवाना-बोलनेको लाचार करना; बदू । -दिखाई-स्त्री० दुलहिनका मुंह देखनेकी रस्म गुस्ताख बनाना। -खुश्क होना-दे० 'मुँह सूखना' । वह धन, आभूषण आदि जो दुलहिनका मुँह देखकर -खोलकर रह जाना-कुछ कहते-कहते चुप हो जाना। उसे दिया जाय । -देखा-वि०बिलकुल ऊपरी, दिखाऊ -चपड़ा कर देना-कल्लेपर जोरका तमाचा लगाना। मुँह ताकता रहनेवाला। -पातर-वि० मुँहका हलका, -चलाना-खाना; घोड़ेका काटना;जबानदराजी करना। बकनेवाला । (रत्नाव०)। -फट-वि० जो मुँह में आये -चाटना-प्यार करना; खुशामद करना ।-चिढ़ानावह बक देनेबाला, जबान-दराज, बदजबान । -बंद- किसीकी मुखाकृति, बोलनेके ढंग आदिकी नकल (चिढ़ानेके वि०जिसका मुँह खुला न हो; बिनखिला ।-बंधा-पु० लिए) मुँह बिगाड़कर करना। -चूम लेना-किसीकी मुँहपर कपड़ा बाँध रखनेवाला जैन साधु । -बोला- शक्ति, योग्यताका कायल हो जाना, अपनेसे बहुत बड़ा वि० मुँहसे कहकर बनाया हुआ, माना हुआ, अवास्तविक मान लेना (कोई कठिन काम करनेकी चुनौती देनेका (भाई, बेटा)।-भर-अ० अच्छी तरह, दिलसे (बोलना, भाव होता है-तुम अमुक काम कर सके तो तुम्हारा मुँह
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