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सूर्याशु-संगर तरहका स्फटिक जिससे सूर्य के सामने करनेसे आँच निक- स० क्रि० भालेसे छेदना; दुःख देना । लती है, आतशी शीशा; स्फटिक; एक पुष्प (आदित्य- सूली-स्त्री० नुकीला लोहेका छड़ इलाकर प्राणदंड देनेका पणी)। -कांति-स्त्री० सूर्यकी दीप्ति, चमक । -ग्रहण- एक प्रकार । * पु०३० 'शूली' । पु. चंद्रमाकी छाया पड़नेसे सूर्य बिंबका छिप जाना | सूचना*-अ० क्रि० बहना, सवना । पु० सुग्गा, तोता। (पौराणिक मतसे राहु या केतु द्वारा सूर्यका ग्रास)। सूवरी-पु० दे० 'सूअर'। -ज-पु० दे० 'सूर्य-तनय'। -जा-स्त्री० दे० 'सूर्य- सूवा-पु० सुग्गा। तनया' । -तनय-पु० शनि; यमसावणि मनु; रेवंत; सूस-पु. एक जलजंतु, शिशुमार। स्त्री० [अ०] मुलेठी; सुग्रीवः कर्ण। -तनया-स्त्री० यमुना। -तेज(स)- [फा०] एक जंतु, गोह । पु० सूर्यका तेज, धूप । -नंदन-पु० दे० 'सूर्य-तनय'। सूसमार-पु० सैंस । स्त्री० [फा०] गोह । -नगर-पु० कश्मीरका एक प्राचीन नगर, कश्मीरकी | सूसि* -पु० दे० 'सूस' । राजधानी। -नारायण-पु० सूर्य भगवान् । -पक्क- सूहा-पु० एक तरहका गहरा लाल रंग; एक संकर राग। वि० सूर्यतापसे पका हुआ, स्वयं पक्क ! -पत्नी-स्त्री० वि० लाल । -कान्हड़ा-पु० एक संकर राग ।-टोड़ीसंज्ञा; छाया। -पर्व(न्)-पु० सूर्यके नयी राशिमें | स्त्री० एक रागिनी। -बिलावल-पु० एक संकर राग । प्रवेश या सूर्यग्रहण आदिका पुण्यकाल । -पुत्र-पु० -श्याम-पु० एक संकर राग । - वरुण शनि; यम; अश्विनीकुमार; सुग्रीवः कर्ण -पुत्री- सूही-वि० स्त्री० दे० 'सूहा' । स्त्री० लालिमा। स्त्री० यमुना बिजली। -पुर-पु० दे० 'सूर्यनगर'। सुंखला*-स्त्री० दे० 'शृंखला'। -प्रभ-वि० सूर्यके समान प्रकाशित, प्रभायुक्त ।-बिंब- सुंग*-पु० शृंग, चोटी, सिरा, कगूरा; सींग; शृंगबाजा। पु० सूर्यका मंडल । -मंडल-पु० सूर्यका घेरा; एक | -बेर-पु. अदरका सोंठ । -बेर पुर*-पु० दे० ' गंधर्व । -मणि-पु० सूर्यकांत मणि; एक फूल ।-मुखी
'शृंगवेरपुर'। (खिन)-पु० पीले रंगका एक बड़ा फूल जो सूर्यकी संगी*-पु० दे० 'शृगी'। गतिके साथ ऊपर उठता और नीचे झुकता है। -यंत्र- सूकंड-स्त्री० [सं०] कंडू रोग, खुजलीकी बीमारी। पु० सूर्योपासनामें व्यवहृत सूर्यका चित्र या प्रतिमा सूर्यके सक-पु० [सं०] वायु, हवा कमल, बाण,त वेधमें काम आनेवाला एक यंत्र। -रश्मि-स्त्री० सूर्यकी * स्त्री० माला। किरण; सविता। -लोक-पु० सूर्यका लोक, सौरभुवन । | सकाल*-पु० दे० 'शृगाल'। -वंश-पु० भारतवर्षके दो प्रमुखतम राजवंशोंमेंसे एक सृग-पु० [सं०] भिदिपाल, एक प्रकारका बरछा; भाला; जिसकी उत्पत्ति वैवस्वत मनुके पुत्र इक्ष्वाकुसे मानी जाती बाण । * स्त्री० माला। है, इक्ष्वाकुवंश। -वंशी(शिन)-वि० सूर्यवंशका। सृगाल-पु० [सं०] गीदड़, दुष्ट, धूर्त, बुरे स्वभावका या पु० सूर्यवंशमें उत्पन्न पुरुष । -संक्रम,-संक्रमण-पु०, कटुभाषी मनुष्य कायर आदमी । -संक्रांति-स्त्री० सूर्यका दूसरी राशिमें प्रवेश ।। सृगालिनी, सृगाली-स्त्री० [सं०] गीदड़ी; लोमड़ी। -सिद्धांत-पु० भास्कराचार्य रचित गणित ज्योतिषका | सृग्विनी*-स्त्री० दे० 'स्रग्विणी'। एक प्रसिद्ध ग्रंथ । -सुत-पु० शनि सुग्रीवा कर्ण, यम। सृजक*-पु० स्रष्टा, रचनेवाला । सूर्यांशु-पु० [सं०] सूर्यको किरण ।
सुजन*-पु० दे० 'सर्जन'।-शीलता-स्त्री० रचनाशक्ति । सूर्या-स्त्री० [सं०] सूर्यकी पत्नी संज्ञा; इंद्रवारुणी; नव- -हार-पु० स्रष्टा, सृष्टिकर्ता । विवाहिता स्त्री।
सृजना*-स० क्रि० रचना करना, बनाना, उत्पन्न करना। सूर्याणी-स्त्री० [सं०] सूर्यपत्नी, छाया ।
सृज्य-वि० [सं०] छोड़ने योग्य; उत्पन्न करने योग्य । सूर्यातप-पु० [सं०] धूप ।
सृत-वि० [सं०] गत; विचलित; खिसका हुआ। सूर्यात्मज-पु० [सं०] शनि कर्ण; सुग्रीव यम । |:सृष्ट-वि० [सं०] निर्मित, बनाया हुआ; युक्तत्यक्त,
पु० [सं०] हुरहुरका पौधा; सुवर्चला; गज, त्यागा हुआ, फ्रेंका हुआ; सजित, विभूषित संपन्न, 'से पिप्पली; अर्द्धकपाली, आधासीसी; समाधिका एक प्रकार । युक्त तुला हुआ; प्रचुर; निश्चित । सूर्यास्त-पु० [सं०] सूरजका डूबना सूरजके डूबनेका | सृष्टि-स्त्री० [सं०] परित्याग; निर्माण, निर्मिति; जगत् , समय, संध्या।
संसार; प्रकृति; संसारकी उत्पत्ति, संसारके बनानेकी सूर्योदय-पु० [सं०] सूरजका उगना; सूरजके उगनेका | क्रियाः समुह । -कर्ता(6)-पु० ब्रह्मा। -कृत्-पु० समय, सबेरा । -गिरि-पु० उदयाचल ।
सृष्टि करनेवाला; ईश्वर; ब्रह्मा। -विज्ञान,-शास्त्रसूर्योपासक-पु० [सं०] सूर्यको उपासना करनेवाला, पु० सृष्टिकी रचना आदिकी, मीमांसा करनेवाला शास्त्र सूर्यपूजक ।
दे० 'विश्वोत्पत्ति विज्ञान' (कॉस्मोजेनी)। सूर्योपासना-स्त्री० [सं०] सूर्यदेवकी पूजा, आराधना । सृष्टयंतर-पु० [सं०] अंतर्जातीय विवाहसे उत्पन्न संतान । सूल*-पु० दे० 'शूल', मालाका फुलरा। -धर-पु० सैंक-स्त्री० सेंकनेकी क्रिया । दे० 'शूलधर'। -धारी-पु० दे० 'शूलधारी'।-पानि- सेकना-सक्रि० आगपर पकाना; गरम करना।मु०पु० दे० 'शूलपाणि'।
आँखें सेंकना-सुंदर छवि देखकर नेत्रोंकी तृप्ति करना । सूलना*-अ० क्रि० दुखना, चुभना, व्यथित होन
पु. एक पौधा; बबूलकी छीमी; एक धान; राज५५-क
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