________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छनिक-छल
२६० छनिक*-वि० दे० 'क्षणिक' । अ० छनभर । पु० एक क्षण । घुघरू, पायल आदिकी बार-बार होनेवाली आवाज; छन्न-वि० [सं०] छिपा हुआ ढका हुआ; लुप्त ।
जोरका मेह पड़नेकी आवाज; छमाछम । अ० 'छमछम' छन्ना-पु० दे० 'छनना'। -पत्र-पु० (फिल्टर पेपर) तेल शब्दके साथ। आदि छाननेका मसिशोष जैसा कागज ।
छमक-स्त्री० ठसक, चाल-ढालकी बनावट (स्त्रियोंकी)। छन्य-पु० (फिलट्रट) वह द्रव जी छन्नापत्र आदिकी सहा- छमकना-अ० क्रि० गहने बजाना; धुंघरू आदि बजाकर यतासे छनकर नीचे आ जाता है।
आवाज करना; ठसक दिखाना। छप-स्त्री० पानी में किसी चीजके जोरसे गिरने या किसी छमछमाना-अ० क्रि० 'छम-छम' शब्द करना या 'छमगाढ़ी चीज(कीचड़, दही इ०)के किसी अन्य वस्तुपर गिरनेसे छम' करते हुए चलना। होनेवाली आवाज। -छप-स्त्री० 'छपकी आवाज छमना*-स० क्रि० क्षमा करना । बार-बार होना।
छमा*-स्त्री० दे० 'क्षमा'। -पन-पु० क्षमा करनेकी छपक-स्त्री० तलवार आदिसे कटनेकी आवाज । क्रिया। -वान-वि० सहनशील, क्षमा करनेवाला । छपका-पु० सिर में पहननेका एक गहना; पानीका छींटा; | छमाई*-स्त्री० क्षमा । पानीमें हाथ-पैर मारना; दे० 'छपाका'।
छमाछम-स्त्री० 'छम-छम'की आवाज। अ० 'छम-छम' छपछपाना-अ० क्रि० पानीपर हाथ-पैर मारना। स० शब्दके साथ । क्रि० पानीपर छड़ी आदि मारकर 'छप-छप'की आवाज | छय-पु० दे० 'क्षय' । निकालना।
छयना*-अ० क्रि० क्षय, नाश होना; छा जाना। छपन*-पु० नाश, संहार ।-हार-वि० नाश करनेवाला। छर-स्त्री० छरों या कंकड़ियोंके गिरनेकी आवाज । * वि० छपना-अ० कि० छापा जाना, छपनेका काम होना; नाशवान् । * पु० दे० 'छल' । -छंद-पु० दे० छलटीका लगना।
छंद' | -छंदी*-वि० धूर्त, कपटी। छपरखट, छपरखाट-स्त्री० वह पलंग जिसपर मसहरी छरकना-अ० कि० बिखरना, छिटकना दे० 'छलकना' । लगानेके लिए डंडे लगे हों। .
छरकीला -वि० लंबा और सुडौल, छहरीला। छपरछपर*-वि० तराबोर ।
छरछराना-अ० क्रि० घावपर नमकया खार लगनेसे पीड़ा छपरबंदी-स्त्री० छप्पर छानेका काम या उजरत ।
होना। छपरी*-स्त्री० झोपड़ी।
छरछराहट-स्त्री० धावपर नमक या खार लगनेसे होनेवाली छपवाना-स० क्रि० दे० 'छपाना'।
पीड़ा। छपवैया -वि०, पु० छापनेवाला छपानेवाला । छरना-अ० क्रि० चूना; चुचुवाना; नष्ट होना; क्षीण होना; छपा*-स्त्री० रात; हलदी। -कर-नाथ-पु० चंद्रमा छटना, अलग होना; * छला जाना; भूत-प्रेतको देखकर
मोहित, पीड़ित होना। * स० क्रि० छलना, ठगना; छपाई-स्त्री० छापनेका काम या उसकी उजरत ।
मोहना; भूत-प्रेतका बनावटी रूप दिखाकर मोहना, आतंछपाका-पु०पानीपर किसी चीजके गिरनेकी आवाज;पानी, कित करना। दही, कीचड़ आदिके किसी चीजपर पड़नेकी आवाज । छरभार*-पु० प्रबंधभार, कामका बोझा झंझट । छपाना-स० क्रि० छापनेका काम दूसरेसे कराना; छापा- छरहरा-वि० इकहरे बदनका; चुस्त, फुरतीला । खाने (प्रेस)में पुस्तक आदि मुद्रित कराना; टीका लग- छरा*-पु० छड़ लड़ी रस्सी; नीबी, इजारबंद। वाना; * छिपाना । * अ०क्रि० लगा रहना।
छरिया-पु० दे० 'छड़िया' । छपाव*-पु० छिपाव, दुराव ।
छरी*-स्त्री० दे० 'छड़ी' । वि० दे० 'छली'।-दार-वि. छप्पन--वि० पचास और छ । पु० छप्पनकी संख्या, ५६। पु० दे० 'छड़ीदार' । छप्पय-स्त्री० छ चरणोंवाला एक मात्रिक छंद ।
छरीदा-वि० अकेला, तनहा; जिसके पास कोई गठरीछप्पर-पु० फूस, पताई आदिकी छाजन; तलैया । -बंद- मुटरी न हो। पु. छप्पर छानेवाला । वि० जो (गाँवमें) बस गया हो, छरीला-पु० एक परोपजीवी पौधा जो मसाले में पड़ता और आबाद (पाहीका उलटा-'छप्परबंद असामी')। -बंदी- दवाके भी काम आता है, शैलेय, शिलापुष्प । स्त्री० छप्पर छानेका काम । मु०-फाड़कर देना-बिना छर्दि(स्)-स्त्री० [सं०] कै, वमन; मतली; घेरा, मकान । कुछ श्रम किये, घर बैठे देना।
छर्रा-पु० कंकड़ी; धुंघरुओं, गहनों में भरी जानेवाली कंकछब*-स्त्री० दे० 'छबि'। -तरुती-स्त्री० देहकी सुंदर ड़ियाँ सीसे, लोहे के छोटे टुकड़े जो बंदूक में भरे जाते है । गठन, गात्र और वक्षस्थलकी सुंदरता ।
छरी-स्त्री० छोटां छर्रा । छबि-स्त्री० शोभा, सुंदरता । -धर-मान-वि० सुंदर। | छल-पु० [सं०] अपने असली रूपको छिपाना, यथार्थका छबीला-वि० छबिवाला, सुंदर, सजीला।।
गोपन; दुसरेको ठगने, धोखा देनेवाली बात; व्याज, छब्बीस-वि० बीस और छ । पु० छब्बीसकी संख्या, २६ ।। बहाना धूर्तता; दुश्मनपर युद्ध-नियमके विरुद्ध वार करना। छब्बीसी-स्त्री० छब्बीस गाहीका सैकड़ा (१३०)।
-कपट-पु० मकरफरेब, धोखेबाजी। -छंद-पु० छलछम-स्त्री० धुंधरू बजने या मेह पड़नेकी आवाज । + वि० कपट । -छंदी(दिन)-वि० छल-कपट करनेवाला, योग्य, समर्थ । पु० सामर्थ्य, शक्ति। -छम-स्त्री० धोखेबाज। -छात-पु० छल-छिद्र । -छाया-स्त्री०
कपूर।
For Private and Personal Use Only