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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६५ करना या बढ़ाना । पसारा - पु० दे० 'पसार' | पसाव - पु० वह वस्तु जो पसानेसे निकले, पसाकर निकाली जानेवाली वस्तु; * प्रसाद, अनुग्रह । पसावन - पु० पसानेपर निकलनेवाला पदार्थ, माँड़ आदि । पसाहनि* - स्त्री० 'अंगरांग' ( विद्यापति ) । पसित* - वि० बँधा हुआ, पाशबद्ध । पसीजना -- अ० क्रि० ताप या गरमीके कारण किसी ठोस चीजका ऐसी स्थितिको प्राप्त होना कि उसका जलांश रस- रसकर बाहर निकले या उसमेंसे पानी छूटे; खिन्न होना; दयासे आर्द्र होना । पसीना - पु० वह पानी जो श्रम करने या गरमी लगनेसे शरीर में से निकलता है, स्वेद, श्रमजल । (गाढ़े ) ( पसीने) की कमाई - बड़ी मेहनत और सचाईसे कमाया हुआ धन । मु० -पसीने होना- पसीने से तर-बतर होना । पसु* - पु० दे० 'पशु' । पसुरी, पसुली* - स्त्री० दे० 'पसली' । पसेउ* -- पु० प्रस्वेद, पसीना । पसेरी-स्त्री० पाँच सेरकी एक तौल । www.kobatirth.org पसेव- पु० वह पानी जो किसी वस्तु के पसीजने से उसमें से निकलता है; किसी वस्तुमेंसे रस-रसकर निकलनेवाला तरल पदार्थ या जलांश; सुखाते समय कच्ची अफीम में से निकलनेवाला द्रव पदार्थ; पसीना । पस्त - वि० [फा०] नीच, कमीना; छोटा, तुच्छ; हारा हुआ; शिथिलं ( बोलचाल ) । - क़द - पु० छोटा कद । वि० छोटे कदका, नाटा, बौना । - क़िस्मत- वि० भाग्यहीन । - ख़याल - पु० छोटा खयाल, तुच्छ विचार । वि० छोटे खयालवाला | - हिम्मत- वि० जिसकी हिम्मत टूट गयी हो, हतोत्साह | मु० - करना - दबा देना, हरा देना; ( हिम्मत) तोड़ देना । होना- हार जाना; पराजित होना; (हिम्मत) टूट जाना । पहँ * - अ० पास; से । पह* - स्त्री० दे० 'पौ' । मु०- फटना - दे० 'पौ फटना' । पहचनवाना - स० क्रि० किसीसे पहचाननेका काम कराना । पहचान - स्त्री० पहचाननेकी क्रिया या भाव, कभीके देखे या जाने हुए व्यक्ति या पदार्थको दुबारा देखने पर उसे उसी रूप में जान लेनेकी क्रिया या भाव, पूर्व परिचित व्यक्ति या वस्तुको देखने से होनेवाला यह ज्ञान कि यह अमुक है; किसी पदार्थ की वस्तुस्थिति जाननेकी क्रिया या भाव, परख; वह वस्तु या बात जिससे यह जाना जाय कि यही अमुक पदार्थ है, निशान, चिह्न; परखने की शक्ति परिचय (क्क० ); विवेक । | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पसारा- पहल पहन * - पु० पत्थर, पाषाण । पहनना - स० क्रि० (कपड़े, गहने आदि ) शरीर या अंगविशेषपर धारण करना । पहनवाना - स० क्रि० किसीके द्वारा किसीको कपड़े, गहने आदि धारण कराना; किसीको पहनने या पहनाने में प्रवृत्त करना । पहनाई - स्त्री० पहननेकी क्रिया; पहनानेकी उजरत । पहनाना-स० क्रि० किसीको कपड़े, गहने आदि धारण कराना । पहनावा - पु० पहनने के कपड़े, पोशाक, नीचे से ऊपर तक पहने जानेवाले कपड़े; वेश; विशेष प्रकारका वेश; किसी तरहका खास पहननेका वस्त्रः कपड़े पहननेका ढंग । पहपट - पु० एक प्रकारका स्त्रियोंका गीत; हल्ला, शोर; बदनामीका हल्ला; छिपे तौरसे की जानेवाली बदनामी; धोखा, दगाबाजी । -बाज़- वि० हल्ला मचानेवाला; ऊधमी, फसादी; धोखा देनेवाला, दगाबाज । पहर - पु० तीन घंटेका समय; समय, काल, जमाना । पहरना। - स० क्रि० पहनना । पहरा - पु० किसी व्यक्ति या वस्तुको उसी रूप या स्थिति में बनाये रखने के लिए एक या अनेक व्यक्तियोंका नियुक्त होना, चौकी, निगरानी, देखरेख; रक्षकदलके तैनात रहनेका समय; रक्षकदल; रक्षकदलका फेरा; गइतके समयकी बोली; हिरासत; * युग, जमाना । (पहरे) दारपु० पहरा देनेवाला, रक्षक । मु०- देना - रखवाली करना, निगरानी करना, किसीकी रक्षाके लिए तैनात रहना । - पड़ना - पहरा दिया जाना, रक्षाके लिए चौकीदार तैनात रहना । - बदलना -- एक रक्षक या रक्षकदलके स्थानपर दूसरेका नियुक्त होना । - बैठानाकिसीकी निगहबानीके लिए उसके आस- पास पहरेदार नियुक्त करना । ( पहरे ) मैं देना - निगहबानी के लिए पहरेदारों या सिपाहियों के सिपुर्द करना, हिरासत में करना । - मेँ रखना - हिरासत में रखना । - मेँ होना - हिरासत में रखा जाना । पहराइत * - पु० पहरा देनेवाला - ' पहराइत घर मुसो सावको रच्छा करने लागो चोर' - सुन्द० । पहराना। - स० क्रि० पहनाना । पहरावनी - स्त्री० दान या खिलअत के रूपमें दी जानेवाली पोशाक । For Private and Personal Use Only पहरावा - पु० दे० 'पहनावा ' | पहरी- पु० पहरेदार | पहरु, पहरू* - पु० पहरेदार | पहरुआ - पु० पहरेदार । पहचानना - स० क्रि० किसी पूर्वपरिचित व्यक्ति या वस्तु- पहल- पु० किसी ठोस या पोली चीजके तीन या अधिक को देखकर यह जान लेना कि वह अमुक है; किसी व्यक्ति कोरों या कोनोंके बीचकी चौरस सतह; धुनी हुई रुईकी या पदार्थको इस प्रकार जानना कि जब कभी देखे तब या उनकी मोटी और जमी हुई तह या परत; रजाई, यह ज्ञान हो जाय कि यह अमुक है अथवा नहीं; विवेक तोशक आदिके भीतरकी रुईकी परत; पुरानी रुईकी वह करना; किसीका गुण-दोष जानना, किसीके गुण-दोषसे जमी हुई तह जो रजाई, तोशक आदिमेंसे निकाली गयी अच्छी तरह परिचित होना । हो; किसी ऐसे कार्यका आरंभ जिसमें प्रतिकारस्वरूप पटना। - स० क्रि० भगाने या पकड़नेके लिए दौड़ना; दूसरे भी कुछ करें, छेड़; बगल; * पटल, परत । - दारपत्थर आदिपर रगड़कर धार तेज करना । वि० जिसमें पहल हों, पहलवाला । मु० - निकालना -
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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