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चितानेके र
चित-चित्रांगद ठिकाने न रहना।
चित्तरसारी*-स्त्री० चित्रशाला। चित-वि० जिसका मुँह-पेट ऊपर की ओर हो, उत्तान, चित्ताकर्षक-वि० [सं०] मनको खींचने, लुभानेवाला । पटका उलटा । अ० पीठके बल । मु०-करना-कुश्ती में | चित्ती-स्त्री० छोटा धब्बा रोटीमें जल जानेका दाग चिपटी प्रतिपक्षीको पछाड़ना, उसकी पीठ लगा देना । -होना- कौड़ी जिससे जुआ खेलते हैं। कुम्हारके चाकके किनारेका कुश्ती में हार खाना।
गढ़ा, इमलीका चिआँ जिसका एक ओरका छिलका रगड़चितउर*-पु०चित्तौर ।
कर दूर कर दिया गया हो; चीतल या चित्तीदार साँप चितकबरा-वि०जिसमें एक रंगकी जमीन पर दूसरे गके मुनिया चिड़िया। धब्बे हों, चितला; रंग-बिरंगा।
चित्तीर-पु० मेवाड़के महाराणाओंकी पुरानी राजधानी । चितकूट*-पु० चित्रकूट ।
चित्र-पु०[सं०] कागज, कपड़े आदिपर बनायी हुई वस्तुकी चितगुपित*-पु० दे० 'चित्रगुप्त' ।
प्रतिमूर्ति, तसवीर; आलेख्य; तिलका शब्दचित्र; चित्रचितरना*-स० क्रि० चित्र, बेल-बूटे बनाना, उरेहना। काव्य; चित्रगुप्त, चित्रक। वि० रंग-बिरंगा; चितकबरा चितला-वि० चितकबरा। पु० चित्तीदार खरबूजा।
चमकीला; कई वर्णोंवाला; विचित्र; * ठीक, दुरुस्त । चितवन-स्त्री० किसीकी ओर देखनेका ढंग, दृष्टि; कटाक्ष ।
-कंठ-पु० कबूतर । -कर्म(न)-पु० चित्र बनाना चितवना*-स० क्रि० देखना, निरखना।
आलेखन; बाजीगरी; विचित्र कार्यः अलंकरण । -कर्माचितवनि*-स्त्री० दे० 'चितवन' ।
(मन्)-पु० विचित्र कार्य करनेवाला बाजीगर चित्रकार। चिता-स्त्री० [सं०] मुरदेको जलाने के लिए चुनकर रखी
-कला-स्त्री० चित्रविद्या, चित्र बनानेकी कला ।-कायहुई लकड़ियाँ ढेर, समूह; * श्मशान ।
पु० चीता। -कार-पु० चित्र बनानेवाला, चितेरा। चिताना-स० क्रि० चेत कराना, याद दिलाना; किसी
-कारी-स्त्री० [हिं०] चित्रकारका काम, धंधा, चित्रकला । खतरे-बुराईके बारेमें सावधान करना; शानोपदेश करना ।
-काव्य-पु०चित्र (छत्र, चमर आदि)के आकरमें लिखित चितारी -पु० दे० 'चितेरा।
काव्य । -कूट-पु० बाँदा जिलेका एक पर्वत जिसपर चितारोहण-पु० [सं०] (विधवाका) सती होनेके लिए | वनवास-कालमें राम-सीता कई बरस रहे । -केतु-पु० चितापर जाना।
लक्ष्मणका एक पुत्र। -गुप्त-पु० १८ यमों से एक चितावनी-स्त्री० चितानेकी किया; चितानेके लिए कही
यमके दरबारके लेखक जो सब मनुष्योंका पाप-पुण्य लिखा गयी बात, आगाही, तंबीह (देना)।
करते हैं और जो कायस्थ जातिके आदिपुरुष माने जाते हैं। चिति-स्त्री० [सं०] चयन, चनाई; ढेर चिता; चेतना -पट-पु० चित्र; वह कपड़ा, चमड़ा या कागज जिसपर ईटोंकी जोड़ाई; समझ; दुर्गा दे० 'चित्ती' ।
चित्र बनाया जाय, चित्राधार सिनेमाकी फिल्म-फलकचितेरा-पु० चित्रकार ।
पु० काठ, हाथीदाँत आदिकी पटिया जिसपर चित्र बनाया चितेरिन, चितेरी-स्त्री० स्त्री चित्रकार: चित्रकारकी पत्नी।। जाय । -मृग-पु० चीतल हिरन। -युद्ध-पु० नकली चितैना*-स० क्रि० दे० 'चितवना' ।
लड़ाई। -योग-पु० बूढ़ेको जवान, जवानको बूढ़ा बना चितौन, चितौनि*-स्त्री० दे० 'चितवन'।
देनेकी विद्या; ६४ कलाओंमसे एक। -रथ-पु० सूर्य चितौना*-स० कि० दे० 'चितवना'।
कुबेरका सखा एक गंधर्व ।-रेखा-स्त्री० बाणासुरकी कन्या चितौनी-स्त्री० दे० 'चितावनी'।
उषाकी एक सहेली।-ल-वि० चितकबरा ।-लिखितचित्-स्त्री० [सं०] चेतना शान; आत्मा ब्रह्मा चित्त । ।
वि०चित्रित गतिहीन; मूक। -लिपि-स्त्री. वह लिपि चित्त-पु०[सं०] अंतरिंद्रिय, अंतःकरण, मन; अंतकरणकी
जिसमें अक्षरोंकी जगह सांकेतिक चित्र काममें लाये जायें। चिंतना, अनुसंधानकारिणी वृत्ति (वे०)। -ज,-जन्मा
-लेखक-पु० चित्रकार । -लेखा-स्त्री० चित्र; बाणा(मन)-पु० कामदेव । -निवृत्ति-स्त्री० संतोष, सुख । सुरके मंत्रीकी कन्या जो उपाकी एक सखी थी; एक अप्सरा -विकृति-स्त्री० (अनसाउंडनेस ऑफ माइंड) चित्त या तसवीर बनानेकी ।ची। -विचित्र-वि० रंगबिरंगा; मनका विकार या त्रुटि मानसिक सदोषता। -विक्षेप- वेल-बूटेदार ।-विद्या-स्त्री० चित्र बनानेकी विद्या, चित्रपु० चित्तकी अस्थिरता, अनेक विषयोंमें भटकते रहना। कला। -शार्दूल-पु० चीता (जंतु) । -शाला-स्त्री० -विभ्रंश,-विभ्रम-पु० भ्रांति; उन्माद । -वृत्ति- वह भवन, मंडप आदि जिसमें बहुतसे चित्र लगा रखे गये स्त्री० चित्तकी अवस्था; मनका भाव ।-वृत्ति-निरोध-पु० हो, जहाँ चित्रकलाका प्रदर्शन किया जाय (पिक्चर-गैलरी); चित्तको बाह्य विषयोंसे हटाकर अंतर्मुख करना ।-शुद्धि- वह स्थान जहाँ चित्र बनाये जायँ ( स्टूडियो); दे० 'रंगस्त्री० चित्तका निर्मल, कुवासनाओंसे रहित होना। शाला; भित्ति-चित्रीसे भरा भवन, मंडप । -सारी-स्त्री० मु०-उचटना-जी न लगना, मन उदास होना। [हिं०] चित्रशाला। -चढ़ना-दे० 'चित्तपर चढ़ना'। - टना-चित्तमें चित्रक-पु० [सं०] चीता, बाध; चीता नामका क्षुप एरंडा पीड़ा उत्पन्न करनन ।-चुराना-मन मोह लेना-देना- तिलक चित्रकार युद्धका एक ढंग; एक विशेष वन । मन लगाना; ध्यान देना। -पर चढ़ना-बराबर याद चित्रना*-स० क्रि० चित्र बनाना, उरेहना रंग भरना। रहना या बराबर याद आना। -बटना-मनका किसी चित्रमय-वि० [सं०] चित्रोंसे भरा हुआ, सचित्र । एक विषयमें न लग सकना, चित्तमें बहुत-सी चिताएँ चित्रवत्-वि० [सं०] चित्र जैसा (ला०) स्थिर, गतिरहित। होना ।-से उतरना-अप्रिय हो जाना; याद न रहना। चित्रांगद-पु० [सं०] शांतनुका पुत्र, विचित्रवीर्यका भाई ।
, तंबीह (
चति-स्त्री०
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