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हिममय वृष्टि-हिरण्य पार्वती। -गु-पु० चंद्रमा। -गृह-गृहक-पु. वह एक पर्वतमाला (इसकी चोटियाँ बहुत ऊँची-ऊँची हैं और कमरा जो ठंढक लानेवाली चीजोंके जरिये ठंढा बनाया उनपर बराबर बर्फ जमी रहती है):-सता-स्त्री०पार्वती। गया हो। -गौर-वि० बर्फ जैसा सफेद । -न-वि० | हिमि*-पु० दे० 'हिम' । हिमका निवारण करनेवाला । -जा-स्त्री. पार्वती, | हिमिका-स्त्री० [सं०] पाला, तुषार । गिरि-सुता; शची; खिरनीका पेड़। -ज्वर-पु० जाड़ा- हिमीकर-वि० (रिफ्रीजरेटर) हिमकी तरह (ठंढा) बना बुखार । -दीधिति-पु० चंद्रमा । -दुर्दिन-पु० पाला, देनेवाला । पु० (खाद्य पदार्थोंको) ठंढा बनाकर सड़ने या अति ठंढक पड़नेके कारण कष्टदायक दिन या मौसिम । | नष्ट होनेसे बचानेका यंत्र । -धुति-पु० चंद्रमा । -धर-पु. हिमालय पर्वत । | हिमेश-पु० [सं०] हिमालय ।
न)-पु० चंद्रमा। -ध्वस्त-वि० पालेका | हिम्मत-स्त्री० [अ०] साहस, वीरता, बहादुरी; पौरुष, मारा हुआ।-पात-पु०पालेका पड़ना ओलेका गिरना। पराक्रम । मु०-पड़ना-साहस होना। -हारना-पस्त -भानु,-मयूख-पु० चंद्रमा । -रश्मिा -रुचि-पु० | हो जाना, साहस छोड़ना। चंद्रमा। -रेखा-स्त्री० (स्नोलाइन) पर्वतोंकी ऊँचाईपर हिम्मती-वि० [अ०] साहसी वीर; पराक्रमी, पुरुषार्थी । मानी गयी वह रेखा जिसके ऊपर बर्फ निरंतर जमी हिय-पु० हृदय, मन; वक्षःस्थल, छाती, सीना। मु०रहती है, गर्मी में भी नहीं पिघलती। -वृष्टि-स्त्री० हारना-हिम्मत हारना, शारीरिक या मानसिक दृष्टिसे पाला पड़ना; ओले गिरना । -शिलास्खलन-पु. थक जाना। (एवेलांश) हिमराशिका मिट्टी, पत्थर आदिसे मिलकर | हियरा-पु० दे० 'हिय' । बड़ी चट्टान जैसा रूप धारण करनेके बाद वेगपूर्वक नीचे हियाँt-अ० यहाँ। खिसक पड़ना । -शीतल-वि० बहुत ठंढा; जमा देनेहिया-पु०दे० 'हिय' । मु०-जलना-बहुत गुस्सा करना। वाला (शीत)। -शुभ्र-वि० बर्फ जैसा सफेद ।-शैल- -ठंढा होना-कलेजा ठंढा होना, सुख, आनंदका अनुपु० हिमालय पर्वत । -संघात-पु०,-संहति-स्त्री० भव होना ।-फटना-कलेजा फटना, शोक, दुःख, पीड़ाबर्फका ढेर।
के अतिरेकका अनुभव होना। -भर आना-करुणा हिममय वृष्टि-स्त्री० ( स्लीट ) वह वर्षा जिसमें पानोके । होना, शोककातर होना, दुःखात होना। -भर लेनासाथ-साथ ओलों या हिमकी भी वर्षा हो ।
शोक, दुःख, पीड़ा आदिके कारण लंबी साँस लेना; शोक, हिमर्तु-स्त्री० [सं०] हेमंत ऋतु, जाड़ेका मौसिम । दुःख, पीड़ा आदिकी अभिव्यक्ति करना ।-शीतल होना हिमवान् (वत्)-पु० [सं०] हिमालय कैलास । वि० -दे० 'हिया टंढा होना' । -(ये)का अंधा-भीतरी बीला । -सुत-पु० मैनाक । -सुता-स्त्री० पार्वती; आँखोंसे हीन, अज्ञान, मूर्ख, बेवकूफ । -की फूटनागंगा।
सत् असत्का विवेक न रहना, ज्ञानका न रहना। -पर [सं०] (फ्रीजिंग पाइंट) वह तापमान जहाँ । पत्थर धरना-सब कर लेना।-में लोन सा लगनापानी जमकर बर्फ बनने लगता है (फारेन हाइटका ३२ कटेपर लोन लगनेकी तरह मनमें बहुत पीड़ा होना ।
अंश अथवा सेंटीग्रेड तापमापक यंत्रमें शून्य अंश)। -लगना-हृदयसे लगना, भेंटना । हिमांत-पु० [सं०] जाड़ेके मौसिमकी समाप्ति ।
हियाव-पु. साहस । मु०-खुलना-धड़क खुलना; हिमांबु, हिमांभ (स)-पु०सं०] ठंढा पानी ओस। साहस, एढ़ताका आना। -पड़ना-हिम्मत पड़ना। हमांशु-पु० [सं०] चंद्रमा कपूर ।
हिरकना*-अ० क्रि० किसी व्यक्ति या वस्तुसे सटना, हिमानत-स्त्री० दे० 'हमाकत'।
विपकना-'फिरै फिरकीसी मौन फिरकी रहैं न नेक, हिमाचल-पु० [सं०] हिमालय पर्वत ।
कोउ खिरकीमें कोऊ हिरकी किवारमें'-रामरसा। हिमाच्छन्न-वि० [सं०] तुषारावृत ।
हिरकाना*-स० क्रि० निकट ले जाना, सटाना, स्पर्श हिमाद्रि-पु० [सं०] हिमालय पहाड़। -जा-स्त्री० गंगा कराना।
पावेती; खिरनी । -तनया-स्त्री० दुर्गा; गंगा पार्वती। | हिरण-पु० [सं०] स्वर्ण; * हिरन, मृग । हिमानिल-पु० [सं०] सर्द हवा, बफीली हवा। हिरण्मय-वि० [सं०] सोनेका, सोनेका बना; सुनहरा । हिमानी-स्त्री० [सं०] हिम-समूह, पालेका समूह; ओस- पु० ब्रह्मा; एक ऋषि; अग्नीध्रका एक पुत्र; संसारके नौ कण-समूह हिमशर्करा।
खंडों में से एक । -कोश-पु. सूक्ष्म शरीर, आत्माके सप्त हिमाज-पु० [सं०] नील कमल ।
आवरणों मेंसे एक जो अंतिम है। हिमायत-स्त्री० [अ०] तरफदारी; मदद; रखवाली। हिरण्य-पु० [सं०] सुवर्ण; स्वर्णपात्र; चाँदी। वि० स्वर्णहिमायती-वि० [फा०] तरफदारी करनेवाला, पक्ष ग्रहण निर्मित । -कंठ-वि० सोनेके कंठवाला । -कर्ता करनेवाला।
पु० सुनार । -कवच-वि० सोनेके कवचवाला। पु० हिमाराति-पु० [सं०] सूर्य; अग्नि अर्क वृक्ष चित्रक वृक्ष । शिव । -कशिपु-पु. कश्यप और अदितिका पुत्र और हिमारि-पु० [सं०] अग्नि ।
प्रसिद्ध भक्त प्रह्लादका पिता जिसे विष्णुने नरसिंहके रूपमें हिमात-वि० [सं०] पालेसे ठिठुरा, जमा हुआ।
खंभेसे प्रकट होकर मारा था । -कार-पु० सुनार । हिमाउ-पु० [सं०] हिमालय ।
-केश-वि० सोनेके केशवाला । पु० विष्णु । -गर्भहिमालय-पु० [सं०] भारतवर्षकी उत्तरी सीमापर स्थित पु० ब्रह्मा (सोनेके अंडेसे उत्पन्न होनेके कारण); विष्णुः
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