SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारस्य-पाव १७६ सिद्धांत । जहाँ लोग हवाखोरीके लिए जाया करते हैं। पारस्य-पु० [सं०] पारस या फारस देश । पार्टी-स्त्री० [अं॰] दल, मंडली; फरीक, वादी या प्रतिपारा-पु० एक प्रसिद्ध धातु; बड़ी परई; टुकड़ा। मु०'पिलाना-किसी क्रिया द्वारा भारी बनाना । पार्थ-पु० [सं०] युधिष्ठिर, अर्जन और भीम (विशेषतः पारापत-पु० [सं०] कबूतर । अर्जुन) । -सारथि-पु० कृष्ण । पारापार-पु० [सं०] दोनों किनारे, उभय तट; समुद्र । | पार्थक्य-पु० [सं०] पृथक् होनेका भाव, भेद, जुदाई । पारायण-पु० [सं०] किसी ग्रंथका आद्यंत पाठ; संपूर्णता पार्थव-पु० [सं०] पृथु होनेका भाव, विशालता, स्थूलता। पार जाना। वि० पृथु-संबंधी; पृथुका । पारायणिक-पु० [सं०] पारायण करनेवाला, पुराणादिका पार्थिव-वि० [सं०] पृथ्वी-संबंधी; पृथ्वीका, पृथ्वीसे उत्पन्न पाठ करनेवाला; छात्र । मिट्टीका बना हुआ; राजोचित, राजसी । पु० पृथ्वीपर पारायणी-स्त्री० [सं०] सरस्वती; मनन, चिंतन । रहनेवाला प्राणी; राजा; मृत्तिका-निर्मित शिवलिंग। - पारावत-पु० [सं०] कबूतर, पंडुक; बंदर पर्वत । कन्या-सुता-स्त्री० राजकुमारी । -दूरबीन-सी० पारावार-पु० [सं०] दे० 'पारापार'। [हिं०] (टेरेरिट्रयल टेलिस्कोप) पृथ्वीपर रखी हुई दूरकी पाराशर-पु० [सं०] पराशरके पुत्र वेदव्यास । वस्तुओंको देखनेके काम आनेवाली दूरबीन । पारि*-स्त्री० दिशा, ओर; नदी, समुद्र आदिका किनारा पार्थिवी-स्त्री० [सं०] सीता, लक्ष्मी। मेंड़, सीमा। पार्थी-पु० मिट्टीका बनाया हुआ शिवलिंग । पारिख*-पु०पारखी, परखनेवाला । स्त्री० दे० 'परख'। | पार्लमेंट, पार्लिमेंट-स्त्री० [अं०] राष्ट्रकी, विशेषतः ब्रिटेनकी, पारिजात-पु० [सं०] पाँच देववृक्षों मेंसे एक हरसिंगार । निर्वाचित विधान-सभा। पारिजातक-पु० [सं०] एक देववृक्ष; हरसिंगार फरहद । पार्वण-वि० [सं०] जो किसी पर्वपर या अमावस्याके दिन पारिणामिक-वि० [सं०] पचनेवाला, किसीके परिणाम किया जाय (श्राद्ध)। स्वरूप होनेवाला। पार्वत-वि०[सं०] पर्वतपर होनेवाला; पर्वतपर रहनेवाला। पारित-वि० (पास्ट) (प्रस्ताव, विधेयक आदि) जो किसी पार्वती-स्त्री० [सं०] शिवकी अर्धांगिनी गौरी जो हिमालय सभा, विधानसभा आदिमें विधिपूर्वक स्वीकृत हो चुका हो। की पुत्री है, उमा, भवानी। -कुमार,-नंदन-पु० पारितोषिक-वि० [सं०] संतुष्ट करनेवाला प्रसन्न करने कात्तिकेय; गणेश। वाला । पु० पुरस्कार, इनाम । पार्वतीय-वि० [सं०] पर्वतपर रहनेवाला; पहाड़ी। पु० पारिपंथिक-पु० [सं०] लुटेरा; चोर । वह जो पर्वतपर रहे, पहाड़ी। पारिपावक, पारिपाश्चिक-पु० [सं०] अनुचर, सेवकः पाशुका-स्त्री० [सं०] पसली । नाटकके स्थापकका एक सहायक नट । पार्श्व-वि० [सं०] निकट, पासका। पु० कक्षके नीचेका पारिभाग्य-पु० [सं०] प्रतिभू या जामिन होनेका भाव । या छातीके दायें-बायेंका भाग, पाँजर; अगल-बगलकी -धन-पु० (कॉशन मनी) जमानत या प्रतिभूतिके रूप जगह सामीप्य; गाडीके धुरेके छोर । -ग,-गम-वि० में अथवा सद्व्यवहार या सदुपयोगका निश्चय करानेके साथ रहनेवाला । पु० परिचारक, सेवक, नीकर । लिए पहलेसे जमा की या करायी गयी रकम । ' -टिप्पण-पु० (मार्जिनल नोट) पुस्तक, कापी आदिके पारिभाषिक-वि० [सं०] परिभाषा-संबंधी; जिसका प्रयोग पृष्ठपर किनारेकी तरफ लिखे गये विचार, ज्ञातव्य बातें किसी विशिष्ट अर्थ में किया जाय, जो कोई विशिष्ट अर्थ आदि ।-नाथ-पु० जैनोंके तेईसवें तीर्थकर ।-नायकसूचित करे, लाक्षणिक | -शब्दावली-स्त्री० (ग्लॉसरी पु० (विंग कमांडर) वायु-सेनाके दो-तीन दस्तोंकी बनी ऑफ टैक्निकल वर्ड ज) विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होनेवाले टुकड़ीका नायक (ग्रप-कप्तान तथा रकाड्रन लीडरके बीच. शब्दोंकी सूची। का अधिकारी) । -परिवर्तन-पु० करवट बदलना। पारिश्रमिक-पु० [सं०] परिश्रमके बदले दिया जानेवाला -प्रसारण-पु. (इनडेंट) टाइपके अक्षर बैठाते समय धन या पारितोषिक (रिम्यूनरेशन)। नये अनुच्छेदकी पहली पंक्तिके पूर्वका हाशिया (पाश्र्व) पारिषद-वि० [सं०] परिषद्-संबंधी; परिषद्का । पु० बढ़ा देना या किसी उद्धरण आदिकी पंक्तियोंके एक ओर परिषद् या सभामें बैठनेवाला, सभासद् (काउंसिलर) अथवा दोनों ओरका हाशिया अधिक चौड़ा कर देना। परिषद्का सदस्य; अनुचर वर्ग । -रक्षक सेना-स्त्री० (फ्लैकगार्ड) पावकी रक्षा करने. पारी-स्त्री० बारी, ओसरी; + गुड़ आदिका जमाया हुआ वाली सेना। -वर्ती (तिन)-वि० साथ रहनेवाला; बड़ा ढोंका। बगल में या आसपास रहनेवाला। पु० परिचारक, सेवका पारीक्षित-पु० [सं०] राजा परीक्षित् ; उनका वंशधर, सहचर । -शीर्षक-पु० (मार्जिनल हेडिंग) किसी छपे जनमेजय । हुए या छपनेवाले लेख, पुस्तकके अध्याय आदिमें विषय पारीछत*-पु० दे० 'पारीक्षित'। आदिकी ओर संकेत करनेवाला वह शीर्षक जो बीचमें न पारुष्य-पु० [सं०] परुष होनेका भाव (बात या व्यवहार- दिया जाकर पार्श्व में, किनारेकी तरफ दिया जाय । में); कठोरता; रुखाई; दुर्वचन । -शूल-पु० (प्लूरिसी) ठंढ आदि लग जानेसे पाश्र्वपार्क-पु० [अं०] नगरके अंदरका वह सार्वजनिक उपवन देशमें होनेवाली सूजन जिससे छाती या पसलीमें पीड़ा For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy