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मसाहत - महतु
इ० ); गुण, स्वाद आदि बढ़ानेवाली सामग्री (दाल, तर कारी, पान आदिका मसाला), धनिया, लौंग, मिर्च इ०; साधन, सामान (दिल्लगीका मसाला) । - (ले) दारवि० जिसमें मसाला पड़ा हो ( - तरकारी ) ।- का तेलसुगंधित द्रव्यों के योगसे बनाया हुआ तेल । मसाहत - स्त्री० [अ०] नापना, पैमाइश; क्षेत्रमिति । मसाहति* - स्त्री० दे० 'मसाइत' । मसि - स्त्री० [सं०] स्याही, रोशनाई; कालिख; काजल; निर्गुडी; * मूछोंका आरंभिक रूप । - धान- पु०, - धानी - स्त्री० दवात । - जीवी ( विनू ) - पु० लेखनकार्य द्वारा जीविका चलानेवाला, लेखक । - पत्र-पु० (कार्बन- पेपर) वह कागज जिसपर कोयले आदिकी कालिख चढ़ा दी ( फैला दी गयी हो (इसे दो कागजोंके बीचमें रखकर लिखने या टाइप करनेसे ऊपरकी लिखी या टाइप की हुई सामग्री, ज्योंकी-त्यों, नीचे भी उतर आती है ) । - पात्र - पु० दवात । - बिंदु - पु० दिठौना । मसियर, मसियार - पु० मशाल । मसियारा* - पु० मशालची ।
मसी - स्त्री० [सं०] दे० 'मसि' |
मसीत, मसीद* - स्त्री० मसजिद ।
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मसीही - वि० मसीहका । पु० ईसाई |
मसुरिया - स्त्री० दे० 'मसूरिका' | मसुरी - स्त्री० दे० 'मसूर' । मसू* - स्त्री० कठिनाई |
मसूड़ा, मसूढ़ा -पु० दाँतोंके नीचे ऊपरका माँस । मसूर - पु० [सं०] दालके काम आनेवाला एक अन्न जो बीकी फसल में बोया जाता है ।
मसूरिका - स्त्री० [सं०] चेचकका एक भेद जिसके दाने बड़ी मातासे छोटे, मसूरकी दालके बराबर होते हैं । मसूरी - स्त्री० [सं०] मसूरिका ।
मह* - अ० में |
मसीह - पु० [अ०] ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा ।
महँगा - वि० जिसके दाम अधिक या उचितसे अधिक हों । महँगाई - स्त्री॰ महँगी; महँगीका भत्ता ।
मसीहा - पु० [फा०] मसीह; मुर्देको जिला देनेकी शक्ति महँगी - स्त्री० महँगा होना; आवश्यक वस्तुओंकी दुर्लभता । रखनेवाला ।
महंत - पु० मठाधीश, साधु-संघका मुखिया; मुखिया । महंती - स्त्री० महंतका पद या कार्य ।
मह* - वि० महत्, बड़ा । अ० दे० 'मह' । महक-स्त्री०गंध, वास । - दार - वि०महकनेवाला, खुशबूदार । महकना - अ० क्रि० मद्दक देना, वास आना । महकनि* - स्त्री० महक ।
महकमा - पु० [अ०] हुक्म करनेकी जगह; कचहरी; बिभाग | महकान - स्त्री० गंध, वास । महकीला - वि० महकदार |
महज़ - वि०, अ० [अ०] खालिस, निरा; केवल, सिर्फ सरासर । महज़र - पु० [अ०] हाजिर होनेकी जगह । -नामा - पु० किसी हत्या आदिके संबंध में लिखाया गया साक्ष्यपत्र या शहादतनामा जिसपर आस-पास के बहुत से लोगों के हस्ताक्षर हों ।
मसूस, मसूसन* - स्त्री० मन मसोसनेका भाव, अंतर्व्यथा । मसूसना - अ० क्रि० दे० 'मसोसना' |
मसृण- वि० [सं०] चिकना; मुलायम; चमकदार । मसेवरा * - पु० मांसकी बनी चीजें ।
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आया हुआ, कामवश, जिसकी संभोगेच्छा प्रबल हो रही हो ।
मस्तक - पु० [सं०] सिर, माथा । - शूल-पु० सिर-दर्द । मस्ताना - वि० मस्तीसे भरा हुआ, मस्तकी तरह (चाल); मस्त । अ० क्रि० मस्त होना, मस्तीपर आना । मस्तिष्क - पु० [सं०] भेजा, दिमाग | मस्ती - स्त्री० मस्त होनेका भाव, मतवालापन, नशा; जवानीका नशा; काम, संभोगेच्छा की प्रबलता; गर्व; वह पानी जो हाथी, ऊँट आदि के मस्त होनेपर उनकी कनपटी, गरदन आदिसे टपकता है, मद; कुछ वृक्षोंसे विशेष अवस्थाओं में टपकनेवाला पानी । मु० - झड़ना-मस्ती उतरना, दूर होना, अक्ल ठिकाने आना । - झाड़ना - मस्ती ( नशा, गर्व) दूर कर देना । - पर आना - मस्त होना । मस्तूल - पु० [पुर्त०] नाव, जहाजके बीच में गाड़ा हुआ लंबा लट्ठा जिसमें पाल बाँधा जाता है ।
मस्सा - पु० शरीरपर दानेके रूपमें उभरा हुआ मांसपिंड; बवासीर की बीमारी में गुदाके बाहर और भीतर निकल आनेवाला दाना ।
महजिद - स्त्री० दे० ' मसजिद' ।
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महजन - पु० [सं०] (महत् + जन) दे० 'महाजन' । महत* - पु० महत्त्व । स्त्री० प्रतिष्ठा - 'बचन कठोर कहत, कहि दाहत अपनी महत गँवावत' - सू० ।
मसोसना - अ० क्रि० दबाना, मरोड़ना; दुःख, आकांक्षा आदिको (किसी विवशतावश ) भीतर ही भीतर दबा रखना, मन ही मन दुःख करना, ऐंठना । मसोसा- पु० मसोसनेका भाव, दुःख, कुढ़न । मसौदा - पु० [अ० 'मसव्वदा '] दुहरानेके लिए लिखित - अशोधित - लेख, खर्रा, पुस्तकादिका मूल लेख; मनसूबा । -नवीस- पु० मसौदा बनानेवाला । - ( दे ) बाज़वि० युक्ति सोचनेवाला, चालाक । मु०- गाँठना-मजमून बनाना; मनसुबा बाँधना ।
मस्करी - स्त्री० दे० 'मसखरी' (अपढ़) | मस्खरा - वि०, पु० [अ०] दे० 'मसखरा' | मस्त - वि० नशे में चूर, मत्त, मतवाला; बेफिक्र, बेपरवा; | प्रसन्न ; जिससे मस्ती टपके, मदभरा (आँखें); मस्ती पर
महता - पु० गाँवका मुखिया, महतो; मुंशी, मुहर्रिर । * स्त्री० अपनेको बड़ा मानना; गर्व ।
महताब - स्त्री० [फा०] चाँदनी; मद्दताबी । पु० चाँद । महताबी - स्त्री० [फा०] एक तरहकी आतिशबाजी जिसके छूटनेपर सफेद रोशनी निकलती है; चाँदनीका आनंद लेने के लिए बनाया गया चबूतरा, (नहर आदि के किनारे) बारहदरी आदि ।
महतारी + - स्त्री० माता ।
महती - वि०स्त्री० [सं०] दे० 'महत्' । स्त्री० नारदकी वीणा । महतु - पु० महत्त्व, बड़ाई - 'वृंदावन ब्रजको महतु कापै
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