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पाथोज - पान
। -निकेत
पाथोज - पु० [सं०] कमल; शंख । पाथोद, पाथोधर - पु० [सं०] बादल | पाथोधि, पाथोनिधि - पु० [सं०] समुद्र | पाद - पु० अपान वायु; [सं०] चरण, पैर, श्लोक, पद्य या मंत्रका चौथा भाग; किसी 'वस्तुका चौथा भाग, चतुर्थांश; किसी पुस्तक या अध्यायका चौथा भाग; वृक्ष या पौधेकी जड़; किसी वस्तुका निचला भाग; एक पैर या बारह अंगुलकी माप । -क्षेप-पु० पैर रखना, चरणन्यास । - ग्रंथि - स्त्री०टखना । - ग्रहण - पु० ऐसा प्रणाम जिसमें चरणका स्पर्श किया जाय, पैर छूकर प्रणाम करना । - चारी (रिन् ) - पु० पैदल चलनेवाला; पैदल सिपाही । - ज - पु० शूद्र । - जल - पु० वह जल जिसमें किसीका पैर खारा गया हो; वह मट्ठा जिसमें चतुर्थांश जल मिलाया गया हो। - टीका - स्त्री० पादटिप्पणी (फुटनोट) । - तलपु० तलव । । - - श्राण- पु० खड़ाऊँ, जूता, चट्टी आदि । वि० जिससे पैरकी रक्षा हो । दलित - वि० पैरोंके नीचे कुचला हुआ, रौंदा हुआ; बुरी तरहसे दबाया हुआ (ला० ) । -दारिका, - दारी - स्त्री० बिवाई नामका रोग । - धावन - पु० पैर धोनेकी क्रिया पु० पैर रखनेकी छोटी चौकी, पादपीठ । न्यास - पु० पैर रखना, कदम रखना। पंकज, पद्म-पु० दे० 'चरणकमल' | -प- पु०वृक्ष, पेड़, पादपीठ । -प-शाखपु० (पैलियो बोटैनी) लाख वर्ष पुराने उन पेड़-पौधोंका विवेचन करनेवाला शास्त्र जो अब पत्थर इत्यादिके रूपमें परिणत हो गये हैं । - पथ - पु० पगडंडी | -पद्धतिस्त्री० पगडंडी । - पीठ-पु० ऊँचे आसनके पास रखी जानेवाली छोटी चौकी या आधार जिसपर पैर रखते हैं, पैर रखने के कामकी चौकी। पूरण-पु० किसी लोक या पथके किसी चरणको पूरा करना; वह अक्षर जिसके द्वारा कोई चरण पूरा किया जाय। - प्रक्षालन- पु० पैर धोनेकी क्रिया । - प्रहार - पु० पैरसे किया गया आघात, चरणका आघात । -बंधन - पु० जानवरों के पैर छाननेकी रस्सी; जानवरोंको छाननेकी क्रिया; पशुधन । -मूलपु० टखना; तलवा; एड़ी; वह स्थान जहाँ से पहाड़का आरंभ होता है; चरणका सान्निध्य (नम्रता सूचित करने के लिए प्रयुक्त) । - रज (स्) - स्त्री० पैर की धूल | - रज्जु - स्त्री० हाथी के पाँव बाँधने की रस्सी या जंजीर । - रोह, - रोहण - पु० बड़का पेड़ -वंदन- पु० चरण छूकर प्रणाम करना । - शोथ- पु० पैरका फूल जाना । - शौच - पु० पैर धोना । - सेवन - पु०, सेवा - स्त्री० पैर छूना; सेवा-शुश्रूषा । - स्वेदन - पु० पैर में पसीना होना । -हत- वि० जिसपर पादप्रहार किया गया हो । -हीन- वि० जो अपने चतुर्थ भाग या चरणसे रहित हो; जिसके पैर न हों ।
पादना - अ० क्रि० अपान वायुको गुदामार्गसे बाहर निकालना, गोज करना ।
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पादरी - पु० ईसाई धर्मका पुरोहित या आचार्य । पादशाह - पु० [फा०] बादशाह, सम्राट् पादशाही - स्त्री० [फा०] बादशाही | पादांक - पु० [सं०] पैरका निशान ।
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पादांगद - पु० [सं०] नूपुर ।
पदांगुलि, पादांगुली - स्त्री० [सं०] पैरकी उँगली । पादांगुष्ठ-पु० [सं०] पैरका अँगूठा । पादांत - पु० [सं०] पैरका अग्रभाग; श्लोक या पद्यके किसी पदका अंतिम भाग या अवसान ।
पादांबु - पु० [सं०] पैर धोनेका पानी; चतुर्थांश जलवाला मट्ठा । पादाक्रांत - वि० [सं०] पैरों तले दबाया हुआ; रौंदा हुआ । पादाघात - पु० [सं०] पैरका प्रहार, लात मारना । पादाति, पादातिक - पु० [सं०] पैदल सिपाही । पादारघ* - पु० दे० 'पाद्यार्ध' । पादारविंद - पु० [सं०] चरण कमल । पादावर्त - पु० [सं०] रहट ।
पादाहत - वि० [सं०] जिसपर पैरसे प्रहार किया गया हो । पादुका - स्त्री० [सं०] जूता; खड़ाऊँ । - कार - पु० मोची; बढ़ई ।
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पादोदक - पु० [सं०] पैर धोनेका जल; वह जल जिससे किसीका पाँव पखारा गया हो, चरणामृत ।
पाद्य-वि० [सं०] पाद-संबंधी; चरणका, पैरका । पु० पैर धोनेका पानी ।
पाद्यार्ध, पाद्यार्ध्य - पु० [सं०] पाथ और अर्ध, पैर धोनेका पानी और दूब, अक्षत, जल आदि पूजाके उपकरण (अर्धमें जल, दूध, दही, घी आदि आठ वस्तुएँ दी जाती है); भेंट, नजर (केशव) । पाधा-पु० आचार्य; पंडित ।
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पान-पु० [सं०] जल आदि पीनेकी क्रिया; पीनेका पात्र; शराब पीना; पेय द्रव्य ( शरबत, शराब ); शराब बेचनेवाला, शौडिक, कलवार; रक्षा करनेकी क्रिया, रक्षण; निःश्वास; उस्तरे तलवार आदिपर सान चढ़ाना, हाथयारोंकी धार तेज करना; नहर; चुंबन ('अधर पान') । - गोष्ठिका, -गोष्ठी - स्त्री० मद्य आदि पीनेके लिए एकत्र हुए लोगोंकी मंडली, शराबियोंकी मंडली; शराबकी दुकान । - दोष- पु० शराब पीनेकी कुटेव । प-वि० शराब पीनेवाला, मद्यप । पात्र, भांड, -भाजन - ५० शराब आदि पीनेका बरतन भू - भूमि- स्त्री० शराब पीनेकी जगह, वह स्थान जहाँ शराबी इकट्ठे होकर शराब पीयें । - मंडल - पु० मद्यपोंकी मंडली । -मत्त - वि० नशे में चूर । -मद- पु० शराबका नशा । विभ्रमपु० अधिक शराब पीने से होनेवाला एक प्रकारका विकार जिसमें वमन, मूर्छा, सिर में पीड़ा आदि केश होते हैं । पान - पु० एक लता जिसके पत्ते सुपारी, कत्था आदिके साथ मुखशुद्धिके लिए खाये जाते हैं; इस लताका पत्ता; * पत्ता; * पानी; वह चमक जो अत्रोंपर उन्हें आगमें तपाकर पानी आदिमें बुझानेसे आती है; * प्राणवायुः पौसरा; हारमें गूथा जानेवाला पानके आकारका तावीज; एक प्रकारका ताशका पत्ता जिसपर पानकी लाल-लाल आकृतियाँ बनी रहती हैं; * पाणि, हाथ । - दान-पु० पान के पत्ते और उसके मसाले रखने के कामका डिब्बा; पानके बीड़े रखनेका डिब्बा, पनडिब्बा । - पत्ता- पु० लगा हुआ पान; साधारण उपहार, तुच्छ भेंट। - फूल