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आग्नेयास्त्र-आज़ार से उत्पन्न; अग्निगर्भ; जिससे आग निकले; अग्निदीपन; आचार-व्यवहार बिगड़ गया हो, पतित । -विचारअग्नि-जैसा (कीड़ा)। पु० स्कंद; अगस्त्यः किष्किधाके पु० आचार और शौचादिका ध्यान । पासका एक प्राचीन जनपद; अग्नि-पूजक; अग्निको आचारज*-पु० दे० 'आचार्य' । अर्पित हवि आदि; कृत्तिका नक्षत्र, सोना; रक्त; लाख, आचारजी*-स्त्री० पौरोहित्य आचार्य होनेका भाव । बारूद; आग्नेयास्त्र; वह कीड़ा जिसके काटनेसे जलन हो आचारवान (वत्)-वि० [सं०] शास्त्रोक्त कर्म करनेवाला, (भिड़ आदि); ज्वालामुखी पर्वत, आग्नेयी दिशा। कर्मनिष्ठ, सदाचारी। -पुराण-पु० अग्निपुराण ।
आचारी(रिन्)-वि० [सं०] आचारवान्; शुद्ध आचरणआग्नेयास्त्र-पु० [सं०] अभिमंत्रित बाण जिससे आग वाला । पु० रामानुज संप्रदायका अनुयायी, श्रीवैष्णव । निकले; तोप-बंदूक आदि ( फायर आर्स)।
आचार्य-पु० [सं०] गुरु, शिक्षक, उपनयन करने और वेद आग्नेयी-स्त्री० [सं०] अग्निपत्नी, स्वाहा; पूर्व-दक्षिणके पढ़ानेवाला गुरु; (किसी विषयका) असाधारण पंडित; पूज्य बीचकी दिशा प्रतिपदा; अग्नि उद्दीप्त करनेवाली औषध । पुरुष; मतप्रवर्तक; यज्ञमें कर्मका उपदेश करनेवाला; आग्रह-पु० [सं०] लेना, पकड़ना; अनुरोध; हठ; अनुग्रह; पांडवों आदिके गुरु, द्रोणका उपनाम; महाविद्यालयका नैतिक बल; निश्चयः जोर देना; मुस्तैदी ।।
प्रधान अधिकारी (प्रिंसिपल)। -देव-वि० जो आचार्यको आग्रहायण-पु० [सं०] अगहनका महीना ।
अपना आराध्य देव मानता है । आग्रही (हिन्)-वि० [सं०] आग्रह करनेवाला, हठी। आचार्या-स्त्री० [सं०] स्त्री गुरुमंत्रकी व्याख्या करनेवाली। आघ*-पु० अर्घ, मूल्य ।
आचार्यानी-स्त्री० [सं०] आचार्यपत्ली। आधर्षणी-स्त्री० [सं०] ब्रश रबर ।
| आचित्य*-वि. जो चितनमें न आ सके। पु० ईश्वर । आघाट-पु० [सं०] सरहद, सिवान; अपामार्ग; नृत्यके | आच्छन्न-वि० [सं०] छिपा हुआ; ढका हुआ। साथ बजाया जानेवाला एक वाद्य ।
आच्छादक-वि० [सं०] ढकने, छिपानेवाला । आघात-पु० [सं०] चोट; प्रहार घाव; धक्का; वध; बूचड़- आच्छादन-पु० [सं०] ढकना; छिपाना; ढक्कन; खोल; खाना विपत्ति; पेशाबका रुकना।-स्थान-पु० वधालय । वस्त्र, पहनावा; छाजन, ठाट लोप । आघूर्ण-वि० [सं०] चक्कर खाता हुआ, धूमता हुआ। आच्छादित-वि० [सं०] ढका, छिपा हुआ । आघर्णित-वि० [सं०] घुमाया या चक्कर खाया हुआ। आछत*-अ० होते, रहते हुए, मौजूदगीमें । आघोष-पु० [सं०] जोरसे पुकारना, ऊँची आवाजमें आछना*-अ०क्रि० होना, मौजूद होना। कहना मुनादी।
आछा*-वि० दे० 'अच्छा'। आघ्राण-पु० [सं०] सूधना; तृप्ति ।
आछी*-वि० स्त्री० अच्छी । वि० खानेवाला। आघ्रात-वि० [सं०] सूं घा हुआ; तृप्त; स्पृष्ट
आछे*-अ० अच्छी तरह । आघ्रय-वि० [सं०] जो सूघा जाय; सूंघने योग्य । आछेप*-पु० दे० 'आक्षेप' ।। आचमन-पु० [सं०] पूजन आदिके पहले शुद्धिके लिए आज-पु० वर्तमान, बीतता हुआ दिन । अ० वर्तमान हथेलीपर जल लेकर पीना; इस प्रकार पीनेका जल; गर- दिनमें; वर्तमान कालमें; इस घड़ी, इस वक्त। -कलगर शब्दके साथ कुल्ली करना।
पु० वर्तमान काल; नया जमाना । अ० वर्तमान कालमें, आचमनक-पु० [सं०] शूकनेका पात्र, पीकदान । इन दिनों। मु०-कल करना, बताना-टालमटोल करना। आचमनी-स्त्री० कलछीके आकारका चम्मच जिसमें जल -कलका-हालका; नये जमानेका । -कलमें-दो-चार लेकर आचमन करते हैं।
दिनोंमें ही, बहुत जल्द । -कल लगाना-मौत करीब आचरज*-पु० दे० 'अचरज' ।
होना। -को-इस समय । भाचरजित*-वि० दे० 'आश्चर्यित'।
आजन्म-अ० [सं०] जन्मसे, जन्मकालसे लगाकर; जन्मआचरण-पु० [सं०] करना; बताना; अनुसरण; शुद्धि; भर, आजीवन । लक्षण; चरित्र; चाल-चलनः आगमन; नियमः रथ, आज़माइश-स्त्री० [फा०] परीक्षा, जाँचपरीक्षार्थ प्रयोग । गाड़ी। -पंजी,-पुस्तक-स्त्री० (कांडक्टबुक) वह पुस्तक आज़माइशी-वि० [फा०] परीक्षाके लिए किया गया। (पंजी) जिसमें कर्मचारीके आचरण, व्यवहार, कर्तव्य- आजमाना-सक्रि०परीक्षा करना परीक्षार्थ प्रयोग करना । पालन इत्यादिसे संबंध रखनेवाली बातें समय-समयपर आज़मूदा-वि० [फा०] आजमाया हुआ, परीक्षित, अनुभूत। लिखी जाती है।
आजा-पु० दादा, पितामह । आचरणीय-वि० [सं०]आचरण करने योग्य, अनुसरणीय । आज़ाद-वि० [फा०] स्वाधीन, जो दास या बंधुआ न हो; आचरन*-पु० दे० 'आचरण'।
निडर; उद्धत; हाजिरजवाब शास्त्र या लोकाचारके बंधनको आचरना*-स० कि० व्यवहार करना ।
न माननेवाला; बे-परवाह । -खयाल-वि० स्वतंत्र आचरित-वि० [सं०] किया हुआ, अनुसृत निर्दिष्ट । । विचारका । -तबीयत-वि० खुले दिलका, सरल । आचार-पु० [सं०] चरित्र, चाल; अच्छा चाल-चलन; आज़ादी-स्त्री० [फा०] स्वाधीनता, मुक्ति । शील; व्यवहार; शास्त्रोक्त आचार; रिवाजी या रूढ आजानु-अ० [सं०] जाँधके अंत या घुटनेतक ।-बाहुव्यवहार (लोकाचार, कुलाचार ); व्यवहारका तरीका | वि० जिसकी बाँहें घुटनेतक पहँचती हों। आहार; आचरण-संबंधी नियम । -भ्रष्ट-वि०जिसका | आज़ार-पु० [फा०] रोग; कष्ट, पीड़ा।
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