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क्षमाना- क्षुधा
राजा - भृत् पु० - युक्त, - शील- वि०
नदी; दक्षकी एक कन्या; एककी संख्या; खदिर वृक्ष; एक वृत्त । - भुक् (ज्) - पु० पहाड़ | - मंडल - पु० भूमंडल । क्षमा करनेवाला, सहनशील । क्षमाना * - स० क्रि० क्षमा कराना । क्षमान्वित - वि० [सं०] दे० 'क्षमायुक्त' ।
क्षाम - वि० [सं०] क्षीण, पतला, दुबला; कमजोर; अल्प । क्षार - पु० [सं०] जड़ी-बूटियोंकी राख या खनिज द्रव्योंका रासायनिक विधिसे बनाया हुआ नमक, खार; नमक; शोरा; सुहागा ; काला नमक; जवाखार; काँच; राख । वि० खारा; क्षरणशील | - लवण - पु० खारी नमक | क्षारित -- वि० [सं०] टपकाया हुआ । क्षारोद क्षारोदक, क्षारोदधि - पु० [सं०] लवणसमुद्र । क्षालन - पु० [सं०] धोना, साफ करना । क्षालित - वि० [सं०] धोया हुआ, साफ किया हुआ । क्षिति- स्त्री० [सं०] पृथ्वी; घर, वासस्थान; क्षय; प्रलयकाल; एककी संख्या । - ज - पु० वृक्ष; मंगल ग्रह; केंचुवा; वह स्थान जहाँ धरती और आकाश मिले हुए दिखाई देते हैं, दृष्टिसीमा ; नरकासुर । -जा-स्त्री० सीता । - तनय
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पु० मंगल ग्रह । - तनया - स्त्री० सीता । -देव- पु० ब्राह्मण । - घर - पु० पहाड़ । -नंदन, सुत- पु० मंगल ग्रह । - नाग - पु० केंचुवा । - नाथ, पति, प्राण, - - भुक् (ज्) - पु० राजा । - मंडल - पु० भूमंडल | - रुह - पु० वृक्ष ।
क्षितींद्र, क्षितीश, क्षितीश्वर - पु० [सं०] राजा । क्षिप्त - वि० [सं०] फेंका हुआ; त्यागा हुआ; अवज्ञात, उपेक्षित; चंचल; बहिर्मुख (चित्त); वातरोगग्रस्त | पु० चित्तकी पाँच वृत्तियोंमेंसे एक (योग०) ।
क्षमापन - पु० [सं०] क्षमा कराना, माफी माँगना । क्षमावान् (वत्) - वि० [सं०] दे० 'क्षमायुक्त' । क्षमित- वि० [सं०] क्षमा किया हुआ । क्षमता (तृ) - वि० [सं०] क्षमाशील, सहिष्णु । क्षमी (मिन्) - वि० [सं०] क्षमाशील; समर्थ । क्षम्य - वि० [सं०] क्षमा करने योग्य । क्षयंकर - वि० [सं०] नाश करनेवाला, क्षयकारक । क्षय- पु० [सं०] वासस्थान; छीजन, हास; नाश; अर्थहानि; मूल्यादिका गिरना; प्रलय; यक्ष्मा रोग; ६० संवत्सरोंमेंसे अंतिम । - कर- वि० क्षयकारक । -कारी रोगपु० (वेस्टिंग डिजीज ) क्रमशः क्षीण या दुर्बल करते जानेवाला रोग । -काल- पु० प्रलयकाल । -तिथिस्त्री० वह तिथि जो व्यवहार में लुप्त मानी जाय । -मासपु० दो संक्रांतियोंवाला चांद्र मास जो १४१ वें वर्ष और कभी-कभी १९ वें वर्ष भी आता है, हीन मास । -रोगपु० एक दुस्साध्य रोग जिसमें रोगीको सदा मंदज्वर बना रहता है और उसके फेफड़े में जख्म हो जाता है । क्षयाह- पु० [सं०] वह चांद्र दिन जो चांद्र और सौर पंचांग में मेल बैठाने के लिए छोड़ दिया जाता है । क्षयिष्णु - वि० [सं०] क्षय होनेवाला, छीजनेवाला, नश्वर । क्षयी (यिन) - वि० [सं०] क्षय होनेवाला; क्षय रोगग्रस्त; नष्ट होनेवाला । पु० चंद्रमा ।
क्षीण - वि० [सं०] दुबला-पतला, कमजोर; घटा हुआ; क्षतिग्रस्तः क्षयप्राप्तः मृतः समाप्त; थोड़ा; निर्धन । -कायवि० दे० ' क्षीणशरीर' । -चंद्र- पु० सात या इससे कम कलाओंवाला चंद्रमा । -धन- वि० जिसके पास पैसा न रह गया हो, निर्धन । - पुण्य - वि० जो अपने सब पुण्य कर्मों का फल भोग चुका हो। -वित्त-वि० दे० 'क्षीणधन' । - शक्ति - वि० जिसकी शक्ति नष्ट हो गयी हो । - शरीर - वि० दुबला-पतला, कमजोर । क्षीयमाण-वि० [सं०] जो बराबर घटता, छीजता जाय । क्षीर-पु० [सं०] दूध; बरगद, गूलर आदि वृक्षोंसे निकलनेवाला दुग्धरूप रस; जल । -कांडक - पु० थूहड़; मदार । - ज - पु० चंद्रमा; दही; मक्खन; अमृत; कमल । वि० दूधसे उत्पन्न । - जा - स्त्री० लक्ष्मी । - धात्री - स्त्री० दूध पिलानेवाली धाय । -धि-निधि-पु० समुद्र; क्षीरसागर। -प-पु० दुधमुहाँ बच्चा । - समुद्र, - सागर - पु० पुराण वर्णित सात समुद्रों मेंसे एक । क्षीराब्धि - पु० [सं०] क्षीरसागर ।
क्षय्य - वि० [सं०] जिसका क्षय हो सके ।
क्षर - वि० [सं०] चल; नाशमान | पु० जल; बादल; देह; क्षीरोद - पु० [सं०] क्षीरसमुद्र । - तनया - स्त्री० लक्ष्मी । क्षीरोदधि - पु० [सं०] क्षीरसागर ।
अज्ञान ।
क्षरण - पु० [सं०]चूना, रसना; छूटना; उँगलियोंका पसीजना । क्षीरोदन- पु० [सं०] दूधमें पका हुआ चावल, खीर । क्षरित - वि० [सं०] स्रवित, चुआ हुआ । क्षांत - वि० [सं०] क्षमाशील, सहनशील; क्षमा किया हुआ । क्षांति - स्त्री० [सं०] क्षमा, सहिष्णुता । क्षात्र - वि० [सं०] क्षत्रिय संबंधी; क्षत्रियोचित । पु०क्षत्रियका कर्म; क्षत्रिय जाति; क्षत्रियत्व ।
क्षुण्ण - वि० [सं०] चूर किया हुआ; पिसा हुआ; खंडित; दलित; अनुगत; पराजित; अभ्यस्त ।
क्षुत् स्त्री० [सं०] भूख, क्षुधा; छींक । -पिपासा - स्त्री० भूख-प्यास ।
क्षुद्र - वि० [सं०] छोटा, नन्हा; तुच्छ, नीच, खोटा, ओछा; कंजूस | पु० चावलका कण, खुद्दी मधुमक्खी या बरें । - कुलिश - पु० एक बहुमूल्य पत्थर, बैक्रांत मणि । - घंटिका - स्त्री० एक तरहकी करधनी जिसमें घंटियाँ या घुंघरू लगे रहते हैं । - प्रकृति - वि० खोटे, ओछे स्वभाववाला । - बुद्धि-वि० ओछे विचारवाला, जो सदा छोटी, ओछी बातें सोचे, देखे ।
क्षिप्र - वि० [सं०] तेज, शीघ्रगामी; लचीला । अ० जद, तत्काल । - हस्त - वि० जिसका हाथ तेजीसे चले; तेज काम करनेवाला |
क्षुद्रता - स्त्री० [सं०] छोटाई, नीचता, ओछापन । क्षुद्रा - स्त्री० [सं०] मक्खी; मधुमक्खी; वेश्या; अमलोनी । क्षुद्रात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] नीच, हीन विचारवाला । क्षुद्रावली - स्त्री० [सं०] क्षुद्रघंटिका । क्षुद्राशय - वि० [सं०] छोटी, ओछी तबीयतका । क्षुधा - स्त्री० [सं०] भूख, भोजनेच्छा । - निवृत्ति - स्त्री० भूखकी शांति, पेट भरना ।
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