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केशर-कौंछियाना
१७२ -मार्जन-पु० बालोंको मलना, साफ करना। -रचना कपड़ेके हाशियेपर लगाते हैं । -स्त्री०,-विन्यास-पु० बालोंको सँवारना; माँग-पट्टी। कैथ, कथा-पु० एक फल वृक्ष; उसका फल, कपित्थ । केशर-पु० [सं०] दे० 'केसर' ।।
कैथी-स्त्री० नागरी लिपिका एक भेद जिसमें कुछ अक्षर केशव-पु० [सं०] विष्णु, परमेश्वर ।
कम है और जिसमें शिरोरेखा नहीं होती।। केशांत-पु० [सं०] १६ संस्कारोंमेंसे एक जो उपनयन और कैद-स्त्री० [अ०] बंधन; कारावासा शर्त, प्रतिबंध ।
समावर्तनके अवसरपर होता है; मुंडना बालका सिरा। -खाना-पु० बंदीगृह, जेलखाना। -तनहाई-स्त्री० केशिका-स्त्री० [सं०] (कैपिलरी ट्यूब) बहुत ही पतले | कैदीको अकेला बंद रखने, कालकोठरीकी सजा। -महज़(केशके सदृश) सूराखवाली नलिका।
स्त्री० सादी कैद । -सखत-स्त्री० कड़ी कैद । केशिनी-स्त्री० [सं०] सुंदर बालोंवाली स्त्री रावणकी मातादी -वि०,०[अ०] बंधुआ वंदी, केदकीसजाभोगनेवाला। कैकसी; एक अप्सरा।
कंधो *-अ० या, वा, किधौं । केशी (शिन)-पु० [सं०] सिंह धोड़ा; एक असुर । कैफ-पु० [अ०] नशा, मस्ती; आनंद । केसर-पु० [सं०] फूलके बीचका सींका या रेशा; बाल; कैफ़ि(फ़ी)यत-स्त्री० [अ०] हाल, विवरण; लुत्फ, आनंद । एक विशेष फूलका सींका जो पीलापन लिये लाल रंगका मु०-तलब करना-जवाब माँगना कारण पूछना । और सुगंधयुक्त होता है, कुमकुम, जाफरान; सिंह या कैबर*-स्त्री० तीरकी गाँसी।। धोडेकी गरदनपरके बाल, अयाल; नागकेसर ।
कैबा-अ० कितनी बार, कई बार । केसरिया-वि० केसरके रंगका; केसरमें रँगा हुआ; केसर कैबार*-पु० किवाड़ ।
मिला हुआ। पु० केसरका रंग; केसर जैसा रंग। कैरव-पु० [सं०] कुई; श्वेत कमल; शत्रु । -बंधु-पु० केसरी (रिन)-पु० [सं०] सिंहघोड़ा, पुन्नाग; बिजौरा चंद्रमा । नीबू; नागकेसर: हनूमान्के पिता । वि. सिंह जैसा कैरा-पु० भूरा रंग; वह सफेदी जिसके भीतर सुखींकी पराक्रमी (महाराष्ट्र-केसरी, पंजाब-केसरी इत्यादि)। झलक हो; ऐसे रंगका बैल । वि० भूरा, कंजा। -किशोर-पु० सिंहशावक; हनूमान् । -तनय,- कैलास-पु० [सं०] हिमालयकी एक चोटी जो पुराणों में नंदन,-सुत-पु० हनूमान् ।
शिव और कुबेरका वासस्थान मानी गयी है; * स्वर्ग । केसारी-स्त्री० मटरकी जातिका एक मोग अन्न ।
-नाथ,-पति-पु. शिव; कुबेर । -वास-पु० मृत्यु । केसू*-पु० टेसू , पलासका फूल ।
कैवर्त-पु० [सं०] केवट, निषाद । केहरि*-पु० केसरी। -नहा-पु० बधनहा।
कैवल्य-पु० [सं०] आत्माका असंग, अलिप्त भाव; स्वरूपकेहरी-पु० दे० 'केसरी' ।
में स्थिति मोक्ष; एक उपनिषद् । केहा*-पु० मोर; तीतर जैसा एक पक्षी ।
कैशिक-वि० [सं०] केश जैसा; केशोंसे युक्त । केहि -वि० किस । सर्ब० किसे ।
कैशिकी-स्त्री० [सं०] नाटककी चार वृत्तियोंमेंसे एका दुर्गा । केहुनी-स्त्री० दे० 'कुहनी'।
कैशोर-पु० [सं०] किशोरावस्था । केहूँ, केह-अ० किसी तरह ।
कैसर-पु० [अ०] सम्राट , शाहंशाह; जर्मनी, आस्ट्रिया कैंकर्य-पु० [सं०] दासत्व, सेवा-टहल ।
आदिके पूर्व सम्राटोंकी उपाधि । कचा-पु० बड़ी कैची । दि० ऐंचा-ताना।
कैसा-वि०किस तरहका । कची-स्त्री० [तु०] कतरनी; दो लकड़ियाँ जो कैचीकी शकल- कैसिक*-अ० किस प्रकार ।
में बँधी या जड़ी हों; कुश्तीका एक पेंच, मालखंभकी कैसे-अ० किस प्रकार । - एक कसरत ।
कैसो*-वि० कैसा जैसा । कड़ा-पु० खाका उतारनेका आला; पैमाना, मोटा अंदाजा; काँइछा-पु० स्वीके अंचलका वह हिस्सा जिसमें कुछ ढंग; ढाँचा; चालाकी । मु०-लेना-खाका उतारना । बाँधकर छोर कमरमें खोंस लिये जाते हैं। को-वि० कितने । अ० या, अथवा ।
कौई-स्त्री० दे० 'कुई'। -स्त्री० [अ०] उलटी, वमन ।
कोंकण-पु० [सं०] सह्याद्रिके पच्छिमका प्रदेश । - स्थकैकस-पु० [सं०] राक्षस ।
वि० कोंकणमें रहनेवाला। पु० महाराष्ट्र ब्राह्मणोंकी एक कैकसी-स्त्री० [२०] रावणकी माता।
जाति । कैकेयी-स्त्री० [सं०] केकय नरेशकी बेटी, भरतकी माता। काँचना-स० मि० चुभी देना, गड़ाना । कैटभ-पु० [सं०] विष्णुके हाथों मारा गया एक दैत्य, कौंचा-पु० एक जलपक्षी; बालू निकालनेका भड़भूजेका
मधुका छोटा भाई । -जित्,-रिपु-पु० विष्णु । कलछा दे० 'खोंचा। कैटभारि-पु० [सं०] विष्णु ।
काँछ-पु० आँचलका कोना । मु०-भरना-सौभाग्यवती कैतव-पु० [सं०] धोखा, छल; ठगी; जुआ; लहसुनिया।। स्त्रीके आँचलमें (प्रस्थानके समय) चावल हलदी आदि कैतवापहनुति-पु० [सं०] अपह्नुति अलंकारका एक | डालना। भेद जिसमें यथार्थ बातका निषेध प्रत्यक्ष रूपसे न किया | कौंछना-स० क्रि० दे० 'को छियाना' । जाकर मिस, व्याज आदि शब्दों द्वारा किया जाय । कौंछियाना-स० क्रि० कोंछ भरकर आँचलके छोरोको कैतन-पु० [तु०] जरी और रेशमकी घटी हुई डोरी जिसे | कमरमें पीछेकी ओर खोंस लेना; फुबती चुनना।
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