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कंकन-कंठान
१२८ कंकन*-पु० दे० 'कंकण'।
कंजई-वि० कंजेके रंगका, गहरा खाकी । पु० खाकी रंग; कंकर*-पु० दे० 'कंकड़'।
इस रंगकी आँखोंवाला घोड़ा। कंकरीट-स्त्री० [अ० कांक्रीट] कंकड़, सीमेंट बालू आदिके कंजड़-पु० एक खानाबदोश जाति । मेलसे बना हुआ छत आदि बनानेका मसाला; छोटी कंजा-पु० एक कँटीली झाड़ी। वि० खाकी रंगका; कंजी कंकड़ी।
आँखोंवाला। . कंकाल-पु० [मं०] हड्डियोंका ढाँचा, ठठरी । -माली कजियाना-अ० क्रि० काला-सा पड़ना; मुरझाना। (लिन्)-वि० हड्डियोंकी माला पहननेवाला। पु० शिव। कंजूस-वि० सूम, कृपण, खसोस ।
-शेष-वि० जिसकी देहमें ठठरीभर रह गयी हो।। कंजूसी-स्त्री० कृपणता। कंकालिनी-स्त्री० [सं०] काली। वि० स्त्री० झगड़ालू, कंट*-पु० काँटा। कर्कशा (स्त्री)।
कंटक-पु० [सं०] काँटा; सुई या किसी नुकीली चीजकी कखवारी-स्त्री० काँखका फोड़ा।
नोक; बाधा; छोटा शत्रु; परेशान करनेवाला; रोमांच । कँखौरी-स्त्री० दे० 'कँखवारी'; काँख ।
-फल-पु० कटहल; गोखरूं; रेंड या धतूरेका पेड़ । कंगन-पु० कलाईमें पहननेका एक गहना, कंकण; वह -भक्षक,-भुक (ज)-पु० ऊँट। -शोधन-पु० धागा जिसमें हलदी, लोहेका छल्ला, पीली सरसों, चोकर काँटा निकालना, दूर करना; विघ्न-बाधाओंको दूर करना; आदि बाँधकर हलदीकी रस्मके समय वर-कन्याके हाथमें उपद्रवियोंका दमन ।। बाँध देते हैं।
कंटकारिका, कंटकारी-स्त्री० [सं०] भटकटैया, सेमल । कॅगना-पु० कंगन बाँधते समय गाया जानेवाला गीत दे० कंटकित-वि० [सं०] कँटीला; रोमांचयुक्त । 'कंगन' । स्त्री० एक तरहकी घास ।
कंटर-पु० शीशेकी सुराही जो शराब, गुलाबजल आदि कँगनी-स्त्री० छोटा कंगन, कलाई में पहननेका एक गहना; रखनेके काम आती है। लाखकी बनी दंदानेदार चूड़ी; दीवार में उमड़ी हुई लकीर, कंटिका-स्त्री० [सं०] (पिन) तार आदिका बहुत पतला कार्निसः दंदानेदार चक्कर या चक्करपरके उभड़े हुए दाने नुकीला टुकड़ा जिसमें ऊपरकी ओर चिपटी धुंडी या साँवाकी जातिका एक अन्न, काकुन
टोपी-सी होती है और जो कागजों, कपड़ों आदिमें खोंसी कॅगला-वि० दे० 'कंगाल'।
जाती है, शूक, अलपीन । कॅगहरा* -पु० दे० 'कंधेरा'।
कंटिकाधार-पु० [सं०] (पिनकुशन) काठ, पीतल आदिका कंगारू-पु० [अं०] आस्ट्रेलिया, न्यूगिनी आदिमें पाया वह गद्दीदार ढाँचा जिसमें अलपीने (कोटिकाएँ) खोसकर जानेवाला एक जानवर ।
रखी जाती है, शूकधानी ।। कंगाल-वि०निर्धन, गरीब मुहताज । -गुंडा-बांका। कटिया-स्त्री० छोटी कील मछली मारनेकी बंसी; अंकुसीके
-पु. वह आदमी जो कंगाल होते हुए शौकीनी करे। आकारकी चीज जिसमें कोई चीज फंसायी जाय । कंगाली-स्त्री० गरीबी, निर्धनता।
कँटीला-वि० काँटेदार । कंगुरिया -स्त्री० दे० 'कनगुरिया'।
कंठ-वि० कंठस्थ, याद । पु० [सं०] गला, हलका स्वर, कंगूरा-पु० शिखर बुर्ज। -(२) दार-वि० कंगूरेवाला। आवाज; घड़े आदिका गला; तोते आदिके गलेपरकी कंघा-पु० बाल सँवारने-सुलझानेका दंदानेदार आला; रंगीन वृत्ताकार लकीर; कोण; किनारा । -गतजुलाहोंका एक ओंजार।
वि० गलेमें आया, अटका हुआ । -च्छेदि स्पर्धा-स्त्री० कंघी-स्त्री० छोटा कंधा; जुलाहोंका एक औजार एक पौधा। (कटथ्रोट कांपिटीशन) गला काट देनेवाली, अत्यंत गहरी, कॅघेरा-पु०पंधी बनानेवाला।
प्रतियोगिता। -तालव्य-वि० जिसका उच्चारण कंठ कंच-पु० दे० 'काँच'।
और ताल दोनोंसे हो ('ए', 'ऐ'-च्या०)। -मणिकंचन-पु० सोना; धन-दौलत; धतूरा; एक जाति । वि०
पु० गले में पहना हुआ मणि प्रिय वस्तु; घोड़ेकी गरदनकी निर्मल; नीरोग। -पुरुष-पु० दे० कांचनपुरुष'
भँवरी। -माला-स्त्री० गलेका एक रोग जिसमें लगातार कंचनी-स्त्री० कंचन जातिकी स्त्री वेश्या ।
बहुतसे फोड़े निकलते हैं। -श्री-स्त्री० गले में पहननेका कंचुक-पु० [सं०] बक्तर; जामा, अंगरखा; चोली, अॅगिया
एक गहना । -संगीत-पु० (वोकल म्यूजिक) मानवकेंचुल; भूसी, छिलका तसभा।
कंठ द्वारा उच्चरित गीत-ध्वनि । -सिरी*-स्त्री०कटी। कंचुकी-स्त्री० चोली, अँगिया; * केचुल।
-स्थ-बि० कंठमें स्थित; कंठगत; जबानी याद । मु०कंचुकी (किन्)-वि० [सं०] बक्तरधारी । पु० रनिवास- खुलना-आवाज निकलना । -फूटना-आवाज निकका रक्षक, अंतःपुराध्यक्ष द्वारपाल ।
लना; जवानी आनेपर आवाजका बदलना। -बैठनाकंचुरि*- स्त्री० दे० 'केचुल'।
गला बैठना; बेसुरा होना । -होना-जबानी याद होना। कंचलिका, कंचुली-स्त्री० [सं०] चोली, अँगिया । कॅटला-पु० दे० 'कठला'। कॅचुली*-स्त्री० दे० 'केचुल' ।
कँठहरिया*-स्त्री० कंठी। कचेरा-पु० काँचका काम करनेवाला ।
कंठा-पु० बड़े मनकोंकी माला जो गलेसे सटी होती है। कंज-पु० [सं०] कमल; ब्रह्मा; केश; अमृत । वि० जलसे | तोते आदिके गलेकी रंगीन रेखा । उत्पन्न । -ज-पु० ब्रह्मा । -नाभ-पु० विष्णु कंठाग्र-वि० [सं०] कंठस्थ, बरजबान ।
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