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अध्यूढा-अनधिकारिक अर्थपूर्तिके लिए ऊपरसे जोड़ लेना; तर्क-वितर्क; (इंफरेंस) अनखी*-वि० अनख करनेवाला, क्रोधी। घटनावली आदिसे कोई निष्कर्ष निकालना, तथ्योंके अनखुला-वि० जो खुला न हो; जिसका कारण अज्ञात हो। आधारपर कुछ अनुमान लगाना, अनुमान ।
अनखौहाँ*-वि० अनख-भरा, कुपित, चिड़चिड़ा; अनुअध्यूढा-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पति दूसरा विवाह चित; क्रोधोत्पादक । कर ले, प्रथम विवाहिता स्त्री।
अनगढ़-वि० बिना गढ़ा हुआ; बे-डौल; टेढ़ा-मेढ़ा; असंअध्येतव्य, अध्यय-वि० सं०] पढ़नेके योग्य ।
स्कृत; उजड; *स्वयंभू । अध्येता (त)-पु० [सं०] अध्ययन करनेवाला ।
अनगन, अनगिन-वि० दे० 'अनगिनत' । अध्रव-वि० [सं०] अस्थिर; अस्थायी; अनिश्चित संदिग्ध ।। अनगना-वि० जो गिना न गया हो, बेशुमार । पु० गर्भअध्वर-पु० [सं० [ यशः सोमयश; आकाश ।
का आठवाँ मास । अध्वर्यु-पु० [सं०] चार ऋत्विजों-यश करानेवालोंमेंसे । अनगनिया*-वि० अगणित, बे-शुमार । एक, यजुवेंदश ऋत्विज ।
अनगवना*-अ० क्रि० जान-बूझकर देर लगाना; टालअनंग-वि० [सं०] देह-रहित । पु० कामदेव; आकाश;| मटोल करना। मन । -शत्रु-पु० शिव ।
अनगाना-अ० क्रि० देर लगाना। स० क्रि० सुलझाना अनंगना*-अ० क्रि० बेसुध होना, विदेह होना।
(केशादि)। अनंगारि-पु० [सं०] शिव ।
अनगिनत-वि० अगणित, बेहिसाब । अनंगी (गिन्)-वि० [सं०] बिना अंगका. अशरीरी। अनगिना-वि० दे० 'अनगिनत'; जो गिना न गया हो। पु० परमेश्वर; कामदेव ।
अनगिनित-वि० दे० 'अनगिनत'। अनंगीकार करना-स० क्रि० (रिपुडिएट) किसीकी सत्ता, अनगैरी-वि० अपरिचित वे-जाना; गैर । प्रभाव या आशा न मानना; ऋण, दायित्व आदिसे इन- अनघ-वि० [सं०] अघहीन, निष्पाप, पवित्र, अकलुष; कार करना; किसीके कथन, आरोप आदिको न मानना। निर्मल । पु० वह जो पाप न हो, पुण्य; विष्णु । अनंत-वि० [सं०] जिसका अंत न हो; असीम, अपार; अनघरी*-स्त्री० कुसमय, असमय । अक्षय । पु० विष्णु, विष्णुका शंख; शेषनाग; लक्ष्मण; | अनघेरी*-वि० अनिमंत्रित; अनाहूत । असीमता; नित्यता; बलराम; वासुकि; आकाश; बाँहपर | अनघोर-पु० अन्याय, ज्यादती। पहननेका एक गहना; अनंत चतुर्दशीके व्रतमें पहननेका | अनघोरी*-अ० चुपकेसे, अचानक 'जीति पाइ अनघोरी एक गंडा। -विजय-पु० युधिष्ठि रके शंखका नाम । | आये'-छत्र० । -शक्ति-वि० सर्वशक्तिमान् (परमेश्वर)।
अनचहा-वि० जो चाहा न गया हो, अप्रिय,अनिच्छित । अनंतर-अ० [सं०] तुरंत बाद पीछे। वि० अंतर-रहित; अनचाखा*-वि० न चखा हुआ। सटा या लगा हुआ; पास या पड़ोसका।
अनचाहत -वि० न चाहनेवाला, प्रेम-रहित । पु० न अनंता-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; पार्वती; अनंतमूल; दृब आदि । चाहनेवाला व्यक्ति ।। अनंद*-पु० दे० 'आनंद'।
अनचीता-वि० बिना सोचा हुआ, न चाहा हुआ। अनंदना*-अ० क्रि० आनंदित होना।
अनचीन्हा-वि० अपरिचित, बे-जाना । अन-पु० [सं०] श्वास-प्रश्वास । * अ० बिना, बगैर (उप- अनचैन -पु० बेचैनी।। सर्गके तौरपर यह व्यंजनादि शब्दोंके पूर्व भी लगता है- अनजान-वि० अज्ञान; न जाननेवाला,अनभिज्ञ; नासमझ जैसे अनहोनी, अनमेल) । वि० दूसरा।
अपरिचित । पु० अज्ञानावस्था; अज्ञान । अनअहिवात*-पु० वैधव्य ।
अनट-पु० अन्याय, अनाचार, अनीति । अनइच्छित*-वि० जिसकी इच्छा न की गयी हो। अनडीठ*-वि० न देखा हुआ, अदृष्ट । अनइस, अनइसा-वि० दे० 'अनेस', 'अनैसा'। | अनत-वि० [सं०] न झुका हुआ, अनम्र । * अ० अन्यत्र, अनऋतु-स्त्री० विरुद्ध ऋतु; अनुपयुक्त समय ।
और कहीं। अनकंप*-वि० कंपनरहित, स्थिर । पु० कंपनका अभाव। अनति-स्त्री० [सं०] नम्रता या विनयका अभाव; घमंड । अनक-*पु० दे० 'आनक'।
वि० अतिका उलटा, थोड़ा। अनकना-स० क्रि० सुनना; लुक-छिपकर सुनना। अनदेखा-वि० न देखा हुआ । अनकरीब-अ० [अ०] शीघ्र; करीब-करीब पास प्रायः। अनद्यतन-वि० [सं०] आजके दिनसे संबंध न रखनेवाला; अनकहा-वि०, बिना कहा हुआ, अनुक्त। [ स्त्री० अन- आजसे पहले वा पीछेका । पु० अद्यतनसे भिन्न काल । कही। ] मु०-(ही) देना*-चुप रहना।
अनधिक-वि० [सं०] जो अधिक न हो; असीम पूर्ण । अनख-पु. क्रोध, रोष; ग्लानि; डाह, जलन; * झंझट; अनधिकार-पु० [सं०] अधिकार, शक्ति, योग्यता, पात्रता, डिठौना । वि० [सं०] नखहीन ।।
हक आदिका अभाव । वि० अधिकाररहित । -चर्चाअनखना*-अ० क्रि० रुष्ट हीना, खीझना।
स्त्री० बिना जाने समझे या योग्यताके बाहर किसी विषयमें अनखाना-अ० क्रि० रुष्ट होना, खीझना । स० कि० रुष्ट वोलना, दखल देना । -चेष्टा-स्त्री० जिस बात या करना, खिझाना।
कार्यका अधिकार न हो वह करना। अनखाहट-स्त्री० दे० 'अनख'।
अनधिकारिक, अनधिकृत-वि० (अन-अथॉराइज्ड)जिसके
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