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शिखावान्-शिला
पु० मयूर मंजुघोष । -बंधन-पु० चोटियाका बाँधना। शिरम्पीडा-स्त्री० [सं०] सिरदर्द सिरदर्दका रोग । -मणि-पु० सिरपर पहननेका रत्न । -वृद्धि-स्त्री. शिरःशूल-पु० [मं०] दे० 'शिरःपीडा। प्रतिदिन बढ़नेवाला ब्याज। -सूत्र-पु० चोटी और | शिर-पु० [सं०] सिर । -ज-पु० बाल, केश ।-त्राण*जनेऊ, जो द्विजोंके चिह्न है।
पु०दे० 'शिरस्त्राण'।-पँच-पु० [हिं०] दे० 'सिरपंच'। शिखावान(वत)-वि० [सं०] शिखायुक्त; ज्वालयुक्त ।। -फूल-पु० [हिं०] सीस फूल नामक आभूषण ।
पु० दीपक; अग्नि; चित्रक वृक्षा केतु ग्रह; पुच्छल तारा। शिर(स)-पु० [सं०] सिर, पर्वतकी चोटी, शिखर शिखिनी-स्त्री० [सं०] मोरनी, मुगी ।
वृक्षाग्रा किसी वस्तुका सर्वोच्च अंश, भाग; सेनाका अगला शिखी(खिन्)-वि० [सं०] शिखायुक्त, शिखावाला; भाग, नासीर मुखिया, प्रधान । नुकीला अभिमानी। पु. मयूर; कुक्कुट, बैल, घोड़ा शिरकत-स्त्री० [अ०] शरीक होना; साझा। -नामाअग्नि दीपक, दीया; बाण, पर्वत; वृक्ष । -पिच्छ,- | पु. वह दस्तावेज जिसमें साकी शर्ते लिखी हों। पुच्छ-पु० मोरकी पूँछ । -वाहन-पु० कात्र्तिकेय । | शिरकती-वि० साझेका संयुक्त । शिगाफ-पु० [फा०] चीरा दरारा झरी; छिद्र । शिरश्छेद, शिरश्छेदन-पु० [सं०] सिर काटना ।-यंत्रशिगूफा-पु० [फा०] कली; अनोखी बात; चुटकुला। पु० (गिलोटिन) शिरश्छेद कर देने, धड़से सिरको उड़ा मु०-खिलाना-कोई अनोखी बात करना झगड़ा उठाना। देने के निमित्त प्रयुक्त होनेवाला यंत्र । -छोड़ना-झगड़ा-फसाद खड़ा करानेवाली बात कहना, | शिरसिज, शिरसिरह-पु० [सं०] दे० 'शिरज' । करना।
शिरस्क-पु० [सं०] पगड़ी; शिरस्त्राण । शित-वि० [सं०] तेज किया हुआ,सान धरा हुआ; दुबला- शिरस्त्र, शिरस्त्राण-पु० [सं०] लोहेका टोप, जो युद्धादिपतला, क्षीण, कृश; कमजोर, दुर्बल ।
के अवसरोंपर अस्त्र-शस्त्रसे शिरके रक्षार्थ पहना जाता शिताफल-पु० [सं०] सीताफल, शरीफा। शिताब-अ० [फा०] जल्द, झटपट । वि० जल्दबाज । शिरस्थ-० [सं०] मुखिया, नेता, प्रधान । शिताबी-स्त्री० जल्दी; उतावली, घबराहट ।
शिरहन*-पु० सिरहाना, तकिया।
| शिरा-स्त्री० [सं०] धमनी, खूनकी नाड़ी, रक्तवहा नाड़ी। पु० मोर; चातक शिव ।
शिराकती-वि० साझेका, संयुक्त । -कारबार-पु० साझेशिथिल-वि० [सं०] ढीला; बिन बधा, खुला हुआ; सुस्त, |
आलसी श्रमसे थका हुआ; (डालसे) गिरा, टूटा हुआ शिरीप, शिरीषक-पु० [सं०] अति कोमल फूलोंवाला बिना पूरे दबावका, जिसे कुछ छूट दी गयी हो, पूरी एक वृक्ष, सिरिस ।। सावधानीसे जिसका पालन न हो ।-बल-वि०जिसकी शिरोगृह, शिरोगह-पु० [सं०] अट्टालिकाके सबसे ऊपरताकत कम पड़ गयी हो।
का घर, चंद्रशाला। शिथिलता-स्त्री० [सं०] ढीलापन; सुस्ती, आलस्य श्रांति; शिरोज-पु० [सं०] बाल । छूट देना, नियमका पालन कराने पर पूरा ध्यान न देना; शिरोदाम(न)-पु० [सं०] पगड़ी, मुरेठा, साफा । काव्य रचना, वाक्य रचना आदिमें दोषके कारण चुस्ती- | शिरोधार्य-वि० [सं०] शिरपर धारण करने योग्य, सादर का न होना; तर्क आदिकी अपुष्टता।
स्वीकार करने योग्य, अतिशय मान्य । शिथिलाई-स्त्री० शिथिलता।
शिरोपाव-पु० दे० 'सिरोपाव' । शिथिलाना*-अ० कि. ढीला पड़ना, मंद पड़ना,थकना। शिरोभूषण-पु० [सं०] शिरपर पहननेका आभूषण शिथिलित-वि० [सं०] जो इलथ हो गया हो, जो ढीला (जैसे-कलँगी, टीका, सीसफूल मादि); श्रेष्ठ व्यक्ति। हो गया हो।
शिरोभ्यंग-पु० [सं०] सिरमें तेल मालिश करना । शिथिलीकरण-पु० [सं०] ढीला करनेका काम । शिरोमणि-पु० [सं०] मस्तकपर धारण करनेका रत्न, शिथिलीकृत-वि० [सं०] ढीला किया हुआ। | शिरोरत्न, चूड़ामणि । वि० सर्वश्रेष्ठ । शिथिलीभूत-वि० [सं०] दे० 'शिथिलित' ।
शिरोमाली(लिन)-पु० [सं०] मुंडमालधारी शिव । शिक्षत-स्त्री० [अ०] कठिनाई; कष्ट; तीव्रता; कठोरता शिरोरुह-पु० [सं०] सिरके बाल ।
अधिकता, प्रबलता (बारिशकी, जाड़ेकी शिद्दत)।-का- शिरोरोग-पु० [सं०] सिर-दर्द, मस्तक-पीड़ा। जोरका, तीव्र (शिद्दतका बुखार)।
शिरोवर्ती (तिन)-वि०, पु० [सं०] प्रधान, मुखिया । शिनाख्त-स्त्री० [फा०] पहचान; भले-बुरे, सच्चे-झूठेका | शिरोवेष्टन-पु० [सं०] शिरोदाम, पगड़ी, मुरेठा । भेद समझनेकी शक्ति, परख ।
| शिर्क-पु०[अ०] खुदाके साथ किसी औरको शरीक जानना, शिप्रा-स्त्री० [सं०] शिप्र सरोवरमे निकली एक नदीका | ईश्वर में द्वैतभावना रखना।
नाम जिसके तटपर उज्जयिनी नगर बसा हुआ है। शिल-पु० [सं०] उंछ, खेत कट जानेके पश्चात् उसमें से शिफर*-पु० सिपर, ढाल ।
शेष अन्न बीननेकी क्रिया। शिक्षा-स्त्री० [अ०] स्वास्थ्य, आरोग्य, रोगसे मुक्ति। शिलक, शिल्लक-स्त्री० नकद, रोकड़ ।
(देना, पाना)।-खाना-पु० चिकित्सालय, अस्पताल। शिला-स्त्री० [सं०] पत्थर: पत्थरकी पटिया, पट्टी, उंछ शिबिका-स्त्री० [सं०] दे० 'शिविका'।
| वृत्ति । -ज-पु० शिलाजीत; लोहा; पेट्रोल ।-जतु-पु.
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