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अंत्यानुप्रास-अंधेरी पहले पढ़े हुए पद्यके अंतिम अक्षरसे आरंभ होनेवाला अंधड़-पु० आँधी, तूफान । पद्य पढ़ना होता है।
अंधधुंध-पु० अंधेरा, अंधेर, दुराचार । अंत्यानुप्रास-पु० [सं०] पद्यके चरणोंके अन्तिमाक्षरोका अंधर*-पु० दे० 'अंधड़', अंधकार । मेल, तुक, काफिया।
अधरा*-पु० अंधा मनुष्य । वि० अंधा । अंत्यावसायी (यिन )-पु० सिं०] अति निम्नजातीय, | अंधा-वि० बिना ऑखका, देखनेकी शक्तिसे रहित; भलाडोम, चमार आदि ।
बुरा सोचनेमें असमर्थ , विचारहीन; बिना सोचे-समझे अंत्याश्रम-पु० [सं०] आखिरी आश्रम, संन्यासाश्रम । काम करनेवाला; अंधेरा ( अंधी गुफा)। पु० दृष्टिहीन अंत्याश्रमी (मिन)-वि० [सं०] अंतिम आश्रममें रहने- प्राणी। -आईना-पु० दे० 'अंधा शीशा'। -कुआँवाला । पु० संन्यासी।
पु० सूखा कुआँ, अंधकूप, लड़कोंका एक खेल । -कुप्पअंत्येष्टि-स्त्री० [सं०] अंतिम संस्कार, मृतककर्म ।
पु० (ब्लैकआउट) हवाई हमला होनेके समय या उसकी अंत्र-पु० [सं०] आँत, अंतड़ी। -कूज,-कूजन,-पु०
आशंका होते ही सार्वजनिक स्थानोंकी बत्तियोंका बुझा आँतोंमें होनेवाली गुड़गुड़ाहट । -प्रदाह-पु० आँतोंमें दिया जाना या उन्हें इस तरह ढंक देना जिससे बाहरसे, जलन होना। -वृद्धि-स्त्री० आँत उतरनेकी बीमारी; विशेषकर आसमानसे, रोशनी दिखाई न पड़े, चिरागअंडकोश बढ़नेका रोग ।
गुल । -घोड़ा-पु० जूता (साधु-फकीर )। -चिराग, अंत्री-स्त्री० [सं०] दे० 'अंत्र'।*
-दीया-पु० धुंधली रोशनीवाला चिराग । -तारा-पु० अंथऊ-पु० जैनियोंका संध्याकालीन भोजन ।
नेपचून तारा। -भैंसा-पु० लड़कोंका एक खेल । अंदर-अ० [फा०] भीतर । पु० दिल ( अंदरका साफ)। -शीशा-पु० ऐसा आईना जिसमें चेहरा साफ न अँदरसा-पु० एक प्रसिद्ध मिठाई ।
दिखाई दे । -मु०-बनना-बेवकूफ बनना; धोखा अंदरी-वि० भीतरका।
खाना, जान-बूझकर उपेक्षा करना। -बनाना-उल्लू अंदरूनी-वि० [फा०] भीतरी, अंदरका ।
बनाना ।-(धे) की लकड़ी,-लाठी-एकमात्र सहारा । अंदाज़-पु० [फा०] ढंग, ढबमोहक ढंग, अदा; अटकल, अंधाधुंध-अ० विना सोचे विचारे; बेहिसाब; बेतहाशा । उचित मात्रा। वि० फेंकनेवाला (संशाके अंतमें-जैसे | वि०विचारहीन । स्त्री० घना अंधकार; अंधेर, धींगाधांगी। तीरंदाज़, गोलंदाज)।
अंधानुकरण-पु० [सं०] आँख मूंदकर किसीके पीछे अंदाज़न-अ० [फा०] अटकलसे लगभग ।
चलना, किसी व्यक्ति या व्यवहारका बिना विचारे अनुअंदाज़ा-पु० [फा०] अटकल, अनुमान; तखमीना । करण करना। अदाना*-स० क्रि० बचाना, बरकाना। .
अँधार*-पु० अंधकार । अंद-पु० [सं०] अंजीर; हाथीके पाँव बाँधनेकी साँकल; | अधियार, रा*-पु० अंधकार । वि० अँधेरा। पाँवोंमें पहननेका एक गहता, पायजेब, पैरी, नपुर । अँधियारी-स्त्री० अंधकार; घोड़ों, शिकारी चिड़ियों आदि अदुआ-पु० हाथीके पीछेके पैर में डालनेके लिए काठका | की आँखोंपर बाँधी जानेवाली पट्टी । बना हुआ एक काँटेदार यंत्र।
अंधेर-पु० अनीति, अन्याय, धींगाधींगी नियमव्यवस्थाका अंदुक, अंदू, अंदूक-पु० [सं०] दे० 'अंदु' ।
अभाव ।-खाता-पु० गड़बड़, अव्यवस्था; हिसाब किताब अंदेशा-पु० दे० 'अंदेशा'।
का ठीक न रहना। -नगरी-स्त्री० वह स्थान जहाँ अंदेशा-पु० [फा०] सोच, चिंता; शक, आशंका; खतरा; कोई नियम-व्यवस्था न हो। हानि; दुविधा।
अंधेरना-स० क्रि० अंधेर करना; अँधेरा करना। . अंदेस*-पु० दे० 'अंदेशा' ।
अँधेरा-पु० अंधकार, नैराश्य; उदासी; छाया (अँधेरा अंदोर*-पु० शोरगुल, कोलाहल ।
छोड़ो)। वि० प्रकाशरहित; अंधकारमय । -उजालाअंदोह-पु० [फा०] दुःख, रंज; खटका।
पु० सफेद और रंगीन कागजोंको विशेष प्रकारसे लपेटकर अंध-वि० [सं०] अंधा; विचारहीन; निर्बुद्धि; अचेत बनाया हुआ एक खिलौना । -गुप्प, धुप्प-पु० गहरा उन्मत्त । पु० नेत्रहीन व्यक्ति, अंधकार, अज्ञान । -कार, अँधेरा, घोर अंधकार । -पाख-पु० कृष्ण पक्ष । मु०-काल-पु० अंधेरा। -कूप--पु० अंधेरा कुआँ; सूखा -छा जाना-अत्यधिक अंधकार होना; बहुत बड़ी हानि कुआँ जिसका मुँह घास-पातसे हँका हो; अज्ञान; एक आदिके एका-एक होनेपर कुछ दिखाई न देना। -(२) नरक। -खोपड़ी-वि० [हि० ] नासमझ, मुर्ख । | उजेले-समय-कुसमय । -(२) घरका उजाला-अति -तमस,-तामस-पु० घोर अंधकार, अंधेरा घुप्प । सुदर या कांतियुक्त; एकलौता बेटा । -(रे) मुंह-तामिश्र, स्र-पु० निविडांधकार; अशान; २१ नरकों- पौ फटते, उजाला होनेके पहले। मेंसे एक। -परंपरा-स्त्री० बिना सोचे-समझे पुरानी | अंधेरिया-स्त्री०अंधकार अँधेरा पाख; ईखकी पहली गोड़ाई । रीतिका अनुसरण, भेड़ियाधंसान। -बाई*-स्त्री० अंधेरी-स्त्री० अंधकार; अंधड़, घोड़े या बैलकी आँखपर आँधी। -मति-वि० अक्लका अंधा । -विंदु-पु० डालनेका पर्दा या जाली। वि० स्त्री० अंधकार भरी। आँखके भीतरी परदेका अप्रकाशग्राही विंदु या स्थल । -कोठरी-स्त्री० गर्भ, कोख; गुप्त भेद । -० का यार-विश्वास-पु० बिना सोचे-समझे कोई बात मान गुप्त प्रेमी । मु०-डालना या देना-आँख मूंदकर दुर्गति लेना, विचार रहित विश्वास; बहम ।
करना; धोखा देना।
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